Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से -सब पर हावी होता सोशल मीडिया

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

– सुभाष मिश्र

हमारे आसपास सोशल मीडिया का असर किस तरह बढ़ रहा है उसकी बानगी इस बार बिगबॉस में शामिल प्रतिभागियों से देखने को मिली। दरअसल इस बार बिग बॉस के घर पर कई ऐसे नामों की इंट्री हुई जो सोशल मीडिया के बड़े इनफ्युलेंसर हैं। जिनकी बड़ी फॉलोविंग है जबकि कुछ साल पहले तक इसमें ज्यादातर छोटे पर्दे के कलाकार और मॉडल नजर आते थे। टीआरपी के लिए कुछ भी करेगा के इस दौर में सोशल मीडिया के इन सितारों का चयन यूं ही नहीं हो रहा है। दरअसल इन सेलेब्स के माध्यम से कहीं न कहीं इनके फॉलोवर्स पर नजर है, इनकी फैन फॉलोविंग को भूनाने की कोशिश की जा रही है। हम यहां बिगबॉस के प्रतिभागियों पर पूरी चर्चा को केन्द्रित नहीं करना चाहते। दरअसल यहां आ रहे बदलाव के माध्यम से हम समाज में, बाजार में आ रहे बदलाव को समझना चाहते हैं। इन दिनों बड़े पैमाने पर लोग महसूस कर रहे हैं कि सोशल मीडिया टीवी से बड़ा माध्यम बन गया है। साथ ही इस पर भी बहस जारी है कि क्या सोशल मीडिया और स्मार्ट फोन मिलकर कहीं न कहीं टीवी के दर्शकों को कम किया है। इसका ताजा उदाहरण विश्व कप क्रिकेट है जहां भारत बनाम पाकिस्तान मैच डिजिटल प्लेटफॉर्म पर सबसे ज्यादा संख्या में देखा गया, जिससे लाइव स्ट्रीमिंग व्यूअरशिप का रिकॉर्ड बना। इस मैच को डिज्नी हॉटस्टार पर 3.5 करोड़ दर्शकों ने देखा। सोशल मीडिया का असर ही है कि पिछले लोकसभा चुनाव के वक्त भाजपा ने सभी दलों को पीछे छोड़ते हुए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर 25 करोड़ से ज्यादा का विज्ञापन दिया था। इस बार भाजपा ने अपने एक लाख सोशल मीडिया वॉलिंटियर्स के माध्यम से 10 करोड़ वोटर्स तक पहुंचने का लक्ष्य बनाया है। सोशल मीडिया में अपने फॉलोवर्स बढ़ाने को लेकर भाजपा ने सभी सांसद और विधायकों को निर्देश बहुत पहले दे रखा है। इससे अंदाजा लग रहा है कि आने वाले समय में चुनाव और राजनीति में खासतौर पर चुनाव के दौरान सोशल मीडिया कितनी बड़ी भूमिका निभाएगा। आज जिस तरह छोटे बड़े सभी नेता इस प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल कर रहे हैं और अपने साथ एक ऐसे व्यक्ति को रखते हैं जो इस तरह के डाटा को सुरक्षित रख सके और उसका जरूरत पडऩे पर इस्तेमाल कर सके।
आज नेता युवाओं को कनेक्ट करने के लिए बड़े पैमाने पर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और उसको प्रभावित करने इनफुलेंसर को अपने से जोड़ रहे हैं। कुछ समय पहले हमने इसी कड़ी में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का एक इंटरव्यू देखा था जिसमें राजनीतिक गैर राजनीतिक कई तरह की बातें होती हैं ये बातचीत उनके सबसे ज्यादा वायरल इंटरव्यू में से एक है। इसी तरह भाजपा ने विधानसभा चुनाव से पहले सदस्यता अभियान को ऑनलाइन किया है और भूपे जैसा ऐप लॉच कर वर्तमान सरकार को घेरने की कोशिश की है। सूचना पर कब्जा करने के इस मॉडल ने व्यवसायों और सरकारी एजेंसियों जैसी पार्टियों को डेटा संग्रह के नए मोर्चे का पता लगाने और डिजिटल इंटरफ़ेस के माध्यम से अधिक प्रभावशाली सिमुलेशन का प्रतिनिधित्व करने में मदद की है। आज जिस तरह ऑनलाइन एक बाजार खड़ा हुआ उससे काउंटर बिजनेस को बड़ी चुनौती मिली है, साथ ही कारोबारियों के सामने एक नई संभावना ने जन्म लिया है। आज आम शहरी अच्छा रेस्टारेंट चुनने से लेकर फिल्म और अन्य सेवा के लिए डिजिटल रिव्यू पर निर्भर है। इससे भी डिजिटल की ताक़त

समझी सकती है। अगर चीजें इस तरह आगे बढ़ते रही तो आने वाले समय में डिजिटल मीडिया का प्रभाव और बढऩे वाला है। इसके फायदे औऱ नुकसान दोनों हैं इनके बीच संतुलन का समीकरण बैठाने से ही सबका भला होगा।

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