Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – असरदार या सरदर्द है नोटबंदी?

Editor-in-Chief

From the pen of Editor-in-Chief Subhash Mishra – Is demonetisation effective or a headache?

– सुभाष मिश्र

भारत के रिज़र्व बैंक ने 2000 रुपये के नोटों को वापस लेने की घोषणा की है। भारतीय जनता पार्टी ने इसे भ्रष्टाचार पर सर्जिकल स्ट्राइक बताया है तो विपक्ष ने इसे लेकर सरकार पर हमला बोला है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने शुक्रवार को आरबीआई द्वारा 2,000 रुपये के नोटों को चलन से वापस लेने की घोषणा के बाद केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि दो हजार रुपये का नोट 2016 में हुई नोटबंदी में 500 और 1000 हजार रुपये के नोट को बंद करने के मूर्खतापूर्ण निर्णय को छिपाने के लिए लाया गया था। उन्होंने कहा कि नोटबंदी के कुछ हफ्ते बाद सरकार और आरबीआई को 500 रुपये के नोट फिर से छापने पड़े थे। अब अगर 1000 रुपए का नोट फिर से पेश कर दिया जाए तो आश्चर्य नहीं होगा। इसी तरह ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल, अखिलेश यादव ने भी सरकार के इस फैसले पर तीखी प्रतिक्रिया दी है।
आर्थिक मामलों के जानकार मानते हैं कि जिस तरह 2016 में नोटबंदी के बाद देश में खलबली मची थी और बैंकों के बाहर लंबी लाइन नजर आने लगी थी। उस तरह की स्थिति 2000 के नोट को बंद करने पर नहीं आएगी क्योंकि ज्यादातर बैंक काफी पहले से इसे जारी करना लगभग बंद कर दिए थे। ज्यादातर एटीएम से भी 2 हजार के नोट निकलना लंबे समय से बंद है, ऐसे में बहुत से लोगों के पास ये नोट बहुत कम संख्या में है या फिर है ही नहीं। हां, आशंका जरूर है कि घरों में मोटा माल दबाकर बैठे लोग हो सकता है इस नोट को सहेजकर रखे हों। इसके अलावा पिछले कुछ सालों में देश में जिस तरह से डिजिटल लेन-देन बढ़ा है उससे भी अब नोटों पर निर्भरता कम हुई है। इसके बाद भी इस फैसले से बैंकों पर कामकाज का बोझ बढ़ेगा और लोगों को बैंक में अतिरिक्त समय लगेगा। हालांकि, कुछ विश्लेषक मानते हैं कि भले ही इससे बड़ी आबादी प्रभावित ना हो लेकिन इसका असर कैश की विश्वसनीयता पर पड़ सकता है। इसके अलावा देश की अर्थव्यवस्था पर भी ये फैसला भारी पड़ सकता है। भारत के इतिहास में अभी तक तीन बार नोटबंदी हो चुकी है। पहली बार भारत में अंग्रेज सरकार ने 1946 में 1000, 5000 और 10 हजार रुपये के नोट बंद कर दिए। इसके बाद साल 1978 में मोरारजी देसाई ने 1000, 5000 और 10,000 रुपये के नोट बंद कर दिए थे। तीसरी नोटबंदी पीएम मोदी ने 8 नवंबर 2016 को की थी। जिसमें 500 और 1000 रुपये के नोट बंद कर दिए गए थे। वहीं पूरी दुनिया की बात की जाए तो अब तक जिन देशों ने कालाधन के नाम पर या अर्थव्यवस्था सुधारने के नाम पर इस तरह के फैसले लिए हैं उन्हें बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है। इसका उदाहरण नाइजीरिया, घाना, जिम्बाब्वे, उत्तर कोरिया जैसे देश हैं। यहां हुई नोटबंदी के बाद अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई है। सोवियत संघ और म्यांमार जैसे देशों में तो इसको लेकर हिंसक प्रदर्शन और सरकार के खिलाफ विद्रोह भी हुआ।
भारत में इस बार आरबीआई की तरफ से 2000 के नोट को लीगल टेंडर ही रखा गया है। मतलब 2000 के नोट अब भी वैध रहेंगे और इसका बाजार में चलन जारी रहेगा। आरबीआई की मानें तो 2019 से ही 2000 के नोटों की छपाई का काम बंद कर दिया गया है। अब आरबीआई बाजार में जो नोट मौजूद है उनको धीरे-धीरे वापस लेने का काम करेगी।
इतिहास में नोटबंदी से अर्थव्यवस्था को गति मिलने, भ्रष्टाचार से मुक्ति मिलने, कालाधन के सामने आने जैसे किसी भी मोर्चे पर सफलता नहीं मिली है। ऐसे में आने वाला समय तय कर देगा कि इस फैसले का असर कितना होता है और लोगों व बैंकों पर कितना दबाव पड़ता है।

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