Exclusive- थर्ड डिग्री नहीं बल्कि पुलिस की भाषा प्रभावी हो: डॉ. अभिषेक पल्लव

Exclusive- थर्ड डिग्री नहीं बल्कि पुलिस की भाषा प्रभावी हो: डॉ. अभिषेक पल्लव

0 मनोविज्ञान की जानकारी से जनता के करीब जाने का मिलता है मौका
0 आज की जनधारा के सीईओ सौरभ मिश्रा ने की खास चर्चा

 

Exclusive- थर्ड डिग्री नहीं बल्कि पुलिस की भाषा प्रभावी हो: डॉ. अभिषेक पल्लव
Exclusive- थर्ड डिग्री नहीं बल्कि पुलिस की भाषा प्रभावी हो: डॉ. अभिषेक पल्लव

जनधारा समाचार
रायपुर। छत्तीसगढ़ कैडर के वर्ष 2013 बैच के आईपीएस अधिकारी डॉ. अभिषेक पल्लव ने बहुत ही कम समय में अपनी एक खास मुकाम बनाई है। हमारे चैनल एशियन न्यूज के लिए आज की जनधारा के सीईओ सौरभ मिश्रा ने उनसे खास बातचीत की। यूथ आईकॉन बन चुके इस आफिसर के डॉक्टर से आईपीएस तक के सफर को जानने उनसे रुबरु हुए।

सवाल- आपके पिताजी सेना में रहे हैं उनसे किस तरह प्रेरणा मिली ?
जवाब- मेरे पिता सैन्य सेवा में थे, वे तीनों सेनाओं में रहे, मैंने आर्मी स्कूल से पढ़ाई की और देश के अलग अलग राज्यों में मेरी पढ़ाई हुई। इसका फायदा ये हुआ कि सर्विस में आने के बाद ट्रांसफर पोस्टिंग से डर नहीं लगता। मैं खुद आर्मी में जाना चाहता था। एनडीए के टेस्ट में सफल भी हुआ था लेकिन मेडिकल में सलेक्शन होने की वजह से मेडिकल फिल्ड को चुना वहां पढ़ाई पूरी की फिर आईपीएस के लिए चयनित हुआ।

सवाल- ऐसा बहुत कम होता है कि एमबीबीएस डॉक्टर आईपीएस ज्वाइन करे, जानना चाहेंगे कि आखिर मेडिकल की पढ़ाई पूरी करने के बाद किस तरह आईपीएस बनने के लिए प्रेरित हुए?
उत्तर- सिविल सेवा में आपको लोगों के बीच रहकर काम करने का मौका मिलता है. उनके जीवन में आ रहे बदलाव को आप सामने से देख और समझ सकते हैं. आप अच्छा कार्य कर लोगों के जीवन में बदलाव ला सकते हैं. सिविल सर्विस के प्रति शुरू से झुकाव था. मैंने और मेरे छोटे भाई ने एक साथ तैयारी की. मैं आईपीएस के लिये चयनित हुआ भाई भारतीय वन सेवा में मध्यप्रदेश कैडर में है. देश की सेवा के लिए ये बहुत अच्छी सर्विस है.

सवाल- आपने मनोविज्ञान की पढ़ाई की है तो इस क्षेत्र में आपकी जानकारी आपको पुलिस सेवा में किस तरह की मदद करती है ?
जवाब- अक्सर माना जाता है कि पुलिस थर्ड डिग्री का इस्तेमाल कर कुछ भी उगलवा सकती है, सामान्य अवधारणा है कि पुलिस अधिकारी की भाषा थोड़ी कठोर होनी चाहिए. लेकिन मेरा मानना है कि 21वीं सदी में पुलिस को कुछ सुधार करना चाहिए. उसकी भाषा अच्छी होनी चाहिए. हां उसे प्रभावी जरूर होना चाहिए जिससे कानून का पालन कराया जा सके लेकिन मानव अधिकार का सम्मान होना चाहिए. मनोविज्ञान की जानकारी से जनता के करीब जाने का मौका मिलता है. उन्हें समझने में आसानी होती है. इसी के चलते लोग मुझसे बेझिझक कई विषयों पर बात करने आते हैं. करियर गाइडेंस लेने युवा पहुंचते हैं.

सवाल- पुलिस सेवा में जो लोग फ्रंट लाइन में कार्यरत हैं, उन पर काफी दबाव होता है. उनके लिए आप क्या सोचते हैं ?
जवाब- मुख्यमंत्री के शासन में आने के बाद यहां पुलिसकर्मियों के लिए अवकाश की घोषणा हुई इससे उन्हें काफी राहत मिली है. इस तरह लगातार तनाव में रहने के कारण बहुत से लोग डायबिटीज और हाइपर टेंशन का शिकार हो चुके हैं। आत्महत्या जैसे मामले भी सामने आते हैं. इसे दूर करने के योग और स्पोर्टस को बढ़ावा दिया गया है। साथ ही आपस में मिलजुलकर बातचीत भी समय-समय पर की जाती है जिससे उनकी समस्याओं को समझ सकें और उसे दूर करने की दिशा में प्रयास किया जाता है। पुलिस में छुट्टी और घर मिल जाए तो जवानों में काफी संतोष रहता है। अगर घर के आसपास ही पोस्टिंग हो जाए तो बहुत सहुलियत हो जाती है।

सवाल- आपने नक्सल प्रभावित जिला दंतेवाड़ा में लोन वर्राटू अभियान को काफी प्रभावी ढंग से संचालित किया इसके बारे में बताइए?
जवाब- 2017 में मेरी दंतेवाड़ा में पदस्थापना हुई पुलिस अधीक्षक के रूप में. मैंने देखा की कहीं न कहीं नक्सलियों ने ग्रामीणों को अपने अलग-अलग संगठनों से जोड़ रखा है. इसके चलते इनके खिलाफ कई तरह के मामले दर्ज हो जाते हैं. अक्सर ये ग्रामीण पुलिस के हत्थे चढ़ते हैं और इन्हें कई साल की सजा हो जाती है. इसे देखते हुए लोन वर्राटू अभियान छेड़ा गया ये गोंडी शब्द है जिसका अर्थ होता है घर वापसी ऐसे लोग जो किसी बहकावे में आकर हिंसा की राह पर चल पड़े हैं वो अगर मुख्यधारा में लौटना चाहते हैं तो उन्हें मौका देना चाहिए इस अभियान का बहुत अच्छा असर दिखा. साल भर के भीतर  600 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया इनमें कई ईनामी नक्सली भी शामिल थे. आत्मसमर्पण नक्सल समस्या को खत्म करने की दिशा में बहुत प्रभावी कदम है. जिन लोगों ने सरेंडर किया है वे आज कई तरह के कामकाज में लगे हैं और अपनी जिंदगी अच्छे से बीता रहे हैं.

सवाल- बताया जाता है कि आपने एक नक्सली का इलाज किया था जो आपकी ही गोली से घायल हुआ था, इस घटना के बारे में बताना चाहेंगे ?
जवाब- 2017 मार्च की घटना है दंतेवाड़ा के अरनपुर इलाके की घटना है यहां कुछ दिन पहले बड़े धमाके में करीब 10 जवान शहीद हुए थे. इस इलाके में सर्चिंग अभियान चलाया जा रहा था तभी नक्सलियों के साथ मुठभेड़ हो गई गोली लगने से हमारे दो पुलिस जवान शहीद हो गए थे. तीन घायल हुए थे. 5 माओवादी भी मारे गए जबकी एक घायल नक्सली को पकड़ लिया गया था. साथियों को खोने वाले हमारे जवान घायल नक्सली को भी ढेर करना चाह रहे थे लेकिन मैंने मना किया और उसे उसी एम्बलेंस में लेकर जिसमें घायल जवानों को लाया गया अस्पताल लाया, जब वो पूरी तरह स्वस्थ हो गया तो उसे दो साल की सजा भी हुई जब अपनी सजा काटकर वापस आया तो उसने शादी की और मुझसे मिलने भी आया था.

सवाल- आपने नक्सल समस्या को काफी करीब से देखा है और प्रभावित इलाकों में काफी काम भी किया. क्या लगता है इस समस्या का हल किस तरह से हो सकता है ?
जवाब- नक्सल समस्या के लिए राज्य और केन्द्र सरकार काफी प्रभावी ढंग से काम कर रहे हैं. इसी का परिणाम है की देशभर एक समय 200 से ज्यादा जिले इससे प्रभावित थे वे अब सिमटकर 70 जिलों तक पहुंच गए हैं. सिवियर इफेक्टेड जिलों की संख्या लगातार कम हो रही है. एक तरफ़ फोर्स का दबाव बढ़ा है तो दूसरी ओर सड़क स्कूल अस्पताल बनाए जा रहे हैं इससे लोगों की सोच बदल रही है और नक्सलवाद का प्रभाव घट रहा है.

सवाल- आप दुर्ग जिले में पदस्थ थे सड़क सुरक्षा को लेकर बेहद गंभीर नजर आए, इसके चलते बहुत से युवाओं ने हेलमेट पहनना शुरू किया. हमारे यहां लगातार हादसे होते हैं फिर भी लोग ट्रैफिक नियमों की अनदेखी करते हैं ?
जवाब- सड़क हादसे में हमारे देश में हर साल कई लोगों की मौत हो जाती है. दुर्ग जिले में भी लापरवाही से वाहन चलाने, ट्रैफिक नियमों की अनदेखी के चलते बहुत से लोग अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं. हादसे के शिकार लोगों में 80 फीसदी टू व्हीलर सवार होते हैं यूथ होते हैं. हेलमेट पहनने से इनमें से कई लोगों की जान बचाई जा सकती है. इसी तरह कार चालक अक्सर सीट बेल्ट लगाने से बचते हैं इसे लगाने से भी कई लोगों की जान बचाई जा सकती है. हमने कोशिश की इसका लाभ भी देखने को मिला. कहीं न कहीं लोगों को समझना होगा कि ट्रैफिक नियम उन्हीं के लिए बने हैं.

सवाल- हालांकि, आपका जॉब ऐसा है कि जहां खुद के लिए समय निकालना बहुत मुश्किल होता है फिर भी टाइम मिलता है तो क्या करना पसंद करते हैं…?
जवाब- पर्सनल समय निकाल पाना बहुत मुश्किल है क्योंकि मंैने अपना पर्सनल नंबर पब्लिक कर रखा है. इसलिए छुट्टी में भी लोगों के कॉल आते हैं उन्हें अटैंड करता हूं करियर गाइडेंस करता हूं. मानसिक रूप से काउंसलिंग करता हूं फिर समय मिलता है तो परिवार के साथ समय बिताता हूं, टीवी देख लेता हूं.

 

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