Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से- बढ़ी उम्र में सदाचार, वाणी संयम और सदव्यवहार की सीख

हाल ही में भाजपा ने एकाएक अपने सांसदों, विधायकों और महापौर आदि के लिए छत्तीसगढ़ के मैनपाट में एक प्रशिक्षण शिविर की शुरुआत की है, जिसमें ‘लोक व्यवहार एवं समय प्रबंधन, वक्तृत्व कौशल विषय पर प्रशिक्षण दिया जा रहा है। मध्य प्रदेश के बाद छत्तीसगढ़ में भी इसकी शुरुआत हुई। ऐसा क्या कारण है कि भाजपा को एकाएक लगने लगा कि उनके विधायकों, सांसदों, महापौर आदि में इस तरह के कौशल की कमी है? पार्टी प्रमुखों को ऐसा लगने लगा है कि मंत्रियों, विधायकों और सांसदों को सामान्य शिष्टाचार, लोक व्यवहार और विनम्रता की कमी का सामना करना पड़ रहा है। आम लोगों का यह मानना है कि राजनीति में किसी को यह पद उसके अच्छे व्यवहार, उसकी शिष्टता, सदाचार और विनम्रता के कारण मिलता है। तो क्या यह सदगुण राजनीति से विदा हो रहे हैं? इस तरह के अभियान के पीछे एक कारण यह भी देखा जा रहा है कि पिछले कुछ सालों से भाजपा के विधायकों, सांसदों और विशेष कर मंत्रियों की जुबान साधारण रूप से नहीं फिसली बल्कि बहुत अराजक और अभद्र रूप से आम जनता के साथ व्यवहार और भाषणों में सामने आई है। मध्य प्रदेश के मंत्री विजय शाह एक बड़े उदाहरण के रूप में सामने है। उसके बाद मध्य प्रदेश में तो लंबी फेहरिस्त है। मध्य प्रदेश के उपमुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा, फग्गन सिंह कुलस्ते, मनगवा से पार्टी विधायक नरेंद्र प्रजापति के बिगड़े हुए बोल बहुत ज्यादा चर्चा में रहे हैं। मध्य प्रदेश से बाहर बदायूं में सहसवान विधानसभा क्षेत्र में भाषण के दौरान जिला पंचायत सदस्य भाजपा नेता राजेश सिंह उर्फ झंडू भैया ने कहा कि जिसके जूते में दम होता है, सरकार उसी की चलती है। एक अन्य राज्य में एक दलित के मुंह पर विधायक का पेशाब कर देना एक और उदाहरण है। ऐसे अनेक उदाहरण हैं।

प्रसंगवश ऐसे में मोमिन का एक शेर याद आता है-

उम्र तो सारी कटी इश्क़े-बुता में मोमिन
आख़िरी वक़्त में क्या खाक मुसलमां होंगे

जब यह संख्या बढऩे लगी और भाजपा की छवि बिगडऩे लगी तो पार्टी को चिंता हुई है। अटल बिहारी वाजपेयी के समय में भी भाजपा की सरकार थी। अन्य राज्यों में भी समय-समय पर भाजपा की सरकार रही है। 2014 के बाद भाजपा केंद्र में ही नहीं देश के अनेक राज्यों में सत्ता में है। फिर क्या कारण है कि इतने लंबे समय से भाजपा सत्ता में है, उनके अनेक मंत्री और विधायक कईं-कईं बार पद पर रह चुके हैं लेकिन हाल ही में कुछ वर्षों से उनके बोल बिगडऩे लगे हैं। दरअसल सत्ता की शक्ति से पैदा हुए दम्भ को संभालना कोई आसान काम नहीं है। भाजपा शुरू से ही जीवन में आदर्शों ,संस्कृति की पक्षधरता और समाज में अच्छे आचरण को सामने रखने की बात करती आई है, और काफी हद तक ऐसा रहा भी था। लेकिन लंबे समय तक सत्ता में रहने से व्यक्ति की मनोदशा बदलने लगती है। सत्ता और शक्ति का दम्भ पहले व्यक्ति के मस्तिष्क पर कब्जा करता है उसके बाद वह उसकी वाणी को अपने हिसाब से चलाने लगता है। आम जनता और सरकारी कर्मचारी और विशेष कर अफसरों को अपने आगे झुका हुआ देखकर और लगभग पैरों में झुका हुआ देखकर यह दम्भ और बढ़ता जाता है। इसे संभाल पाना हर किसी के लिए आसान नहीं होता है। यही भाजपा के अधिकांश नेताओं के साथ हो रहा है। यह सारा कुछ भाजपा की स्थापित सदाचारी, सांस्कृतिक और आदर्श पार्टी के आचरण के बेहद खिलाफ जाता है। देशभर में नेताओं के बिगड़े बोल और कदाचरण की ऐसी अनेक घटनाएं हो रही हैं। बहुत कुछ मीडिया में आ जाता है, बहुत कुछ छुपा रह जाता है लेकिन पार्टी के बड़े और प्रमुख नेताओं तक हर बात पहुंच जाती है। भाजपा इस समय विपक्ष के साथ अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर संघर्ष कर रही है। ऐसे में पार्टी के ही नेताओं द्वारा पैदा किये जा रहे ऐसे संकट और चिंताजनक हो गए थे। कहा जाता है कि इन्हीं सब बातों को लेकर पार्टी ने इस तरह के प्रशिक्षण शिविर आयोजित करने का तय किया अन्यथा मंत्रियों, विधायकों, सांसदों को जिनमें अनेक वरिष्ठ हैं और लंबे समय से राजनीति में सक्रिय और बड़े पदों पर हैं उन्हें सदाचार, वाणी पर संयम, आम जनता के साथ सदव्यवहार का पाठ सिखाने की जरूरत नहीं थी। लेकिन ऐसी बढ़ती घटनाओं ने पार्टी के प्रमुख नेताओं को मजबूर किया कि ऐसे प्रशिक्षण शिविर आयोजित किए जाएं अन्यथा आने वाले समय में पार्टी की छवि आम जनता में धूमिल होगी। यह आने वाला समय बताएगा कि ऐसे शिविरों पर पार्टी का किया जाने वाला धन और समय का खर्च कितना लाभकारी प्रमाणित होता है!
छत्तीसगढ़ का शिमला कहे जाने वाले मैनपाट में भाजपा का तीन दिवसीय चिंतन शिविर सम्पन्न हुआ। शिविर में सांसद, विधायकों को आचरण से लेकर जनता से सीधे जुड़ाव और सोशल मीडिया का किस तरह उपयोग किया जाये, इसके लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा, केन्द्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान, संगठन के पदाधिकारी बी एल संतोष, विनोद तावडे, मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष किरण सिंह देव ने ज़रूरी टिप्स दी।
केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मंत्रियों, सांसदों और विधायकों को लोक व्यवहार एवं समय प्रबंधन विषय पर व्याख्यान देते हुए कहा कि जनता ने प्रदेश की बागडोर आप सब को सौंपी है, तो इसका लाभ में उन्हें मिलना चाहिए। जनता के लिए सिर्फ योजना बनाकर भूल नहीं जाना है। योजना का लाभ हर हितग्राही को मिलें इसका बराबर ध्यान रखना है। उन्होंने ने कहा कि लोक व्यवहार ऐसा रखें कि सत्ता में रहते और सत्ता जाने के बाद भी हमें याद रखें। एक जनप्रतिनिधि के लिए समय प्रबंधन बहुत जरूरी है। राजनीति और प्रशासनिक कार्य के लिए समय अलग से निकालें। लेकिन अपने विधानसभा क्षेत्र जरूर जनता के बीच जाकर उनकी समस्याओं को सुनने के लिए निकालें। ताकि जिस जनता ने हमें चुना है उनके मन में ऐसा भाव बिल्कुल भी नहीं आना चाहिए चुनाव के बाद नेताजी तो भूल ही गए। अब अगली बार सोचेंगे। लोक व्यवहार ही एक राजनेता की छवि बिगाड़ता और बनाता है।
भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री विनोद तावड़े ने सोशल प्लेटफॉर्म और मीडिया मीडिया प्रबंधन पर सांसदों और विधायकों को प्रशिक्षण दिया। इस दौरान तावड़े ने मंत्रियों, सांसदों और विधायकों से सोशल प्लेटफॉर्म पर उनकी उपस्थिति के बारे में जानकारी ली। उन्होंने कहा, तकनीक का यह युग सोशल मीडिया का युग है। आप सबको सोशल मीडिया को एक हथियार की तरह इस्तेमाल करना चाहिए। सोशल मीडिया पर आपका आक्रामक रूप भी दिखना चाहिए। अगर विपक्षी सदस्य किसी तरह का कोई पोस्ट कर रहे हैं तो इसका करारा जवाब सोशल प्लेटफार्म पर भी आप लोगों की तरफ से किया जाना चाहिए। इसके पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी सोशल मीडिया की महिमा का बखान अपने लोगों के बीच कर चुके हैं। बहुत लोगों का मानना है कि हिन्दूत्व की विचारधारा के लिए जो काम संगठन के लोगों सालों साल नहीं कर पाये, उसे सोशल मीडिया के ज़रिए कुछ सालों में हो गया। सोशल मीडिया नरेटिव बनाने में अब अहम रोल प्ले कर रहा है।
यहाँ सवाल यह भी है कि जिन नेताओं की आदत में दुर्व्यवहार संस्कार की तरह शामिल हो चुका है ,वह इतनी जल्दी से जाएगा, यह संभव तो नहीं लगता है। दरअसल आदर्श और सदाचार संस्कार के हिस्से होते हैं। बद जुबानी और कदाचार को सत्ता का दम्भ आदत में शामिल कर देता है, और कहा गया है कि आदत है कि इतनी जल्दी जाती नहीं है। कुछ नेताओं को बदजुबानी और बुरा व्यवहार अपने व्यक्तित्व की शान और खूबी लगता है ,ऐसे नेताओं को दिक्कत आएगी। पार्टी जो कोशिश कर रही है वह होनी चाहिए थी क्योंकि कम से कम इससे भाजपा के आंतरिक संगठन में एक संदेश तो जाएगा। सुधार कितना होता है यह भविष्य में छुपा है!

वो जो हममें तुममें करार था तुम्हें याद हो कि न याद हो ।
वही यानी वादा निबाह का तुम्हें याद हो कि न याद हो ।

वो नए गिले वो शिकायतें वो मजे मजे की हिकायतें
वो हरेक बात पे रूठना तुम्हें याद हो कि न याद हो

कोई बात ऐसी अगर हुई जो तुम्हारे जी को बुरी लगी
तो बयान से पहले ही रूठना तुम्हें याद हो कि न याद हो ।

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