अतिरिक्त दूध का प्रबंधन दे रहा चुनौती
राजकुमार मल
भाटापारा- सरप्लस मिल्क प्रोडक्शन अब डेयरियों और ग्वालों के लिए परेशानी की बड़ी वजह बन रही है क्योंकि घरेलू के साथ केवल होटल और टी काॅर्नरों का ही साथ मिल रहा है जबकि शेष मांग क्षेत्र मौन हैं।
जिले के दूध उत्पादक अब परेशान नजर आने लगे हैं क्योंकि बढ़े हुए उत्पादन के लिए उपभोक्ता मांग अब तक नहीं निकल पाई है। सीजन ने तो खूब साथ दिया लेकिन बाजार का साथ नहीं मिल रहा है। ऐसे में बच रहे दूध का प्रबंधन चुनौती बन रही है। उपाय तो कई हैं लेकिन इन उपायों के तहत बनी सामग्री के लिए भी मांग नहीं है।
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यह मात्रा बच जा रही
सामान्य दिनों में 9000 से 10 हजार लीटर प्रतिदिन। अब 10 से 12 हजार लीटर दूध रोज। बढ़ी हुई मात्रा, पूरी की पूरी बच जा रही है। यह इसलिए क्योंकि स्वीट कॉर्नर के साथ पनीर और खोवा के लिए मांग नहीं है। इसी तरह शुद्ध घी की मांग भी ठहरी हुई है। ऐसे में घरेलू और टी कार्नरों पर ध्यान दिया जा रहा है लेकिन यहां से भी अपेक्षित मांग नहीं है।
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अंतरजिला मांग शांत
दूध उत्पादन के लिए जाना जाता है अपना शहर। यहां से न्यायधानी और राजधानी के साथ ऊर्जाधानी यानी कोरबा जिला तक नियमित रूप से दूध की आपूर्ति होती है। लेकिन इन तीनों क्षेत्रों से भी अपेक्षित मांग दूध में नहीं निकल रही है। फलत: डेयरियां और ग्वाले सांसत में हैं, अतिरिक्त उत्पादन के प्रबंधन के लिए।
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प्रतीक्षा सीजन की
ग्रीष्म ऋतु और वैवाहिक अवसर। दूध के लिए सीजन के दिन माने जाते हैं। शुरुआत फरवरी माह से होता हैं। डेयरियां और ग्वाले पखवाड़े भर बाद आ रहे फरवरी की प्रतीक्षा में हैं। मांग, इस बरस दूध में दोगुनी होने की संभावना बन रही है क्योंकि स्वीट कॉर्नर के साथ लस्सी, आइसक्रीम और कुल्फी बनाने वाली इकाइयों की पूछ- परख शुरू होने लगी है।