CII सीआईआई की चिंताएं

CII सीआईआई की चिंताएं

CII सीआईआई चाहती है कि आय कर में छूट देकर और ग्रामीण इलाकों में सरकारी योजनाओं के जरिए लोगों की क्रय शक्ति बढ़ाई जाए। अनेक अर्थशास्त्री यह सुझाव पहले से दे रहे हैं। लेकिन सरकार ने उन ‘हार्वर्ड’ शिक्षित अर्थशास्त्रियों की बात नहीं सुनी।

CII कॉन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्रीज (सीआईआई) ने अगले साल के बजट के लिए सरकार को जो कदम उठाने के सुझाव दिए हैं, सामान्य दिनों में इस संगठन से जुड़े उद्योगपति उन्हें ‘समाजवाद’ कहते।

CII लेकिन मोनोपॉली के स्तर पर पहुंची मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था की नीतियों ने इन उद्योगपतियों का बाजार इस तरह सिकोड़ दिया है कि उन्हें अब अर्थशास्त्री जॉन मेनार्ड कीन्स के फॉर्मूले में ही रास्ता नजर आ रहा है। ये बात ध्यान में रखने की है कि सीआईआई परंपरागत उद्योगपतियों की संस्था है- यानी उद्योगपतियों की जिनका कारोबार कारखाना उत्पादन और उनकी बिक्री पर निर्भर करता है।

CII अब ये संस्था क्या सुझाव दे रही है, इस पर गौर कीजिए। इसने कॉरपोरेट टैक्स में कटौती की मांग नहीं की है। बल्कि कहा है कि इसे मौजूदा स्तर पर ही बनाए रखा जाए। इसके बदले उसने निजी आय कर में छूट देने और जीएसटी की 28 प्रतिशत दर के तहत आने वाली वस्तुओं पर यह कर घटाने का सुझाव दिया है। साथ ही ग्रामीण इलाकों में रोजगार पैदा करने वाली योजनाएं लागू करने की मांग उसने सरकार से की है।

CII साफ कहा है कि इस समय उपभोग और मांग बढ़ाने वाली नीतियों की जरूरत है। सरकार इन सुझावोँ को सुनेगी या नहीं, यह हमें नहीं मालूम। लेकिन सीआईआई ने जो कहा है, उससे देश की असल अर्थव्यवस्था का हाल जरूर जाहिर हुआ है।

CII यही हाल तेल साबुन जैसी रोजमर्रा की जरूरत की चीजें बनाने वाली (एफएमसीजी) कंपनियों की हालिया तमाम रिपोर्टों से भी सामने आया है।

CII सरकार की आम जेब से निकाल कर कॉरपोरेट सेक्टर को पैसा ट्रांसफर करने वाली नीतियों ने जमीन पर बाजार को सिकोड़ दिया है। कोरोना महामारी और उसके बाद तेजी से बढ़ी महंगाई ने मध्य वर्ग के पास भी अतिरिक्त उपभोग की गुंजाइश नहीं छोड़ी है।

CII तो सीआईआई चाहती है कि आय कर छूट देकर उसकी जेब अधिक पैसा छोड़ा जाए और ग्रामीण इलाकों में सरकारी योजनाओं से लोगों की क्रय शक्ति बढ़ाई जाए।

अनेक अर्थशास्त्री यह सुझाव पहले से दे रहे हैं। लेकिन ‘हार्ड वर्क’ वाली सरकार ने उन ‘हार्वर्ड’ शिक्षित अर्थशास्त्रियों की बात नहीं सुनीं। तो पानी अब सिर से ऊपर से गुजरने लगा है।

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