रायपुर: छत्तीसगढ़ राज्य महिला आयोग के कार्यालय में महिला उत्पीड़न से संबंधित प्रकरणों पर सुनवाई हुई। इस सुनवाई में डॉ. किरणमयी नायक के अध्यक्षता में एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया। इस प्रकरण में आवेदिका ने आयोग में अपने द्वारा दो दिन की उम्र की बच्ची के लिए चाइल्ड एडॉप्शन हेतु की गई योजना के खिलाफ आई.आई.एम. रायपुर के खिलाफ प्रकरण दर्ज कराया था। इस मामले में प्रकट हुआ कि रायपुर जिले में एक मां को छुट्टी नहीं दी गई थी जिसके कारण उसे अपनी बच्ची को सही ढंग से देखभाल नहीं कर पाने की समस्या उत्पन्न हो गई थी। इस संदर्भ में आयोग ने महत्वपूर्ण निर्णय लिया और आवेदिका को सही ढंग से अपने बच्ची की देखभाल के लिए छुट्टी देने का आदेश दिया।
महिला उत्पीड़न से संबंधित मामलों का न्यायिक और संवैधानिक दृष्टिकोण से समीक्षा किया गया और आवेदिका के अधिकारों की सुरक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाए गए। यह मामला अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह एक मां के अधिकारों की सुरक्षा और उनके बच्चे के हित को लेकर है। आयोग ने न्यायिक तंत्र के माध्यम से इस मामले को सुलझाने का प्रयास किया है और आवेदिका को न्यायिक अधिकारों के अनुसार उसकी सुरक्षा और हक की प्राप्ति में मदद की गई है।
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इसके अलावा, मामले में इन्श्योरेंस कंपनी के खिलाफ भी कार्रवाई की गई है, जिसने मां को उसके अधिकारों से वंचित कर दिया था। इस मामले में साक्ष्य प्रस्तुत किए गए और आयोग ने इसे सुनिश्चित किया कि न्यायिक तंत्र के माध्यम से इंसाफ किया जाए और मां को उसके अधिकारों की प्राप्ति हो।
यह घटना महिला उत्पीड़न और संबंधित मामलों में न्यायिक अदालत की महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाती है। इसके जरिए समाज में महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा की जा सकती है और उन्हें न्याय मिल सकता है। यह मामला भी दिखाता है कि न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से गलत
किये गए निर्णयों को सुधारा जा सकता है और अधिकारों की सुरक्षा की जा सकती है।
इस तरह के मामलों के जरिए समाज को संविधानिक मूल्यों और मानवाधिकारों के महत्व को समझाने का मौका मिलता है और इससे समाज में सामाजिक बदलाव आ सकता है। इसलिए, इस प्रकार के मामलों को संविधानिक और न्यायिक दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए और उन्हें समाधान करने के लिए संविधानिक प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए।