BHatapara Good News : अब मैना और बगुला की मदद से कीट प्रकोप पर अंकुश

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राजकुमार मल

BHatapara Good News : चींटी, झींगुर, मकड़ी और ततैया भी रोकते हैं शत्रु कीट

BHatapara Good News : भाटापारा- आसरा दीजिए मैना, बगुला, नीलकंठ और किंग-क्रो को।आने दीजिए झींगुर, चींटी और ततैया को। यह सब मिलकर फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले शत्रु कीट को खत्म करेंगे। इनके अलावा 11 अन्य ऐसे परभक्षी कीटों की पहचान हुई है जो फसलों को कीट प्रकोप से बचाते हैं।

BHatapara Good News : सामान्य से कम या ज्यादा मात्रा में हुई बारिश के बाद किसान फिलहाल खरपतवार प्रबंधन में लगे हुए हैं।

उर्वरक की चाही जा रही मात्रा का छिड़काव भी किया जा रहा है लेकिन किसानों को शत्रु कीट से निपटने में इस बार खासी मेहनत और रकम की जरूरत होगी।

कीटनाशक की बढ़ चली कीमत और खाद्यान्न की गुणवत्ता पर प्रतिकूल असर को देखते हुए कीट वैज्ञानिकों ने ऐसे मित्र पक्षियों और परभक्षी कीट की पहचान की है, जिनकी मदद से शत्रु कीट पर काबू पाया जा सकेगा।

हमारे मित्र पक्षी

BHatapara Good News :  कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार मैना और बगुला, फसलों में लगने वाले सूक्ष्म शत्रु कीट को चुन-चुन कर खाते हैं। इसकी वजह से नए शत्रु कीट तैयार नहीं हो पाते।

ठीक ऐसा ही काम किंग-क्रो भी करता है। पक्षी की यह प्रजाति कीट के साथ उनके अंडे भी खाती है। इसलिए फसलों में नए शत्रु कीट,अपना परिवार नहीं बढ़ा पाते।

करती हैं मदद चींटियां भी

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BHatapara Good News : शत्रु कीट को खत्म करने में 14 ऐसे परभक्षी कीट की पहचान हुई है, जिनकी मदद से कीट प्रकोप पर नियंत्रण पाया जा सकेगा।

झींगुर,चीटीं, ततैया,मकड़ी के अलावा मैंटिस, लेडी बर्ड बीटल, कोटेसिया,ट्राइकोग्रामा कीट,रोवर फ्लाई,रीडूविड,मड-वेस्प,ड्रेगन फ्लाई,और सिरफिड फ्लाई, ऐसे परभक्षी कीट हैं जो फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीट को नष्ट करते हैं।

जैविक मददगार

नीम के बीज और अलसी की खल्ली। यह भी फसलों को कीट प्रकोप से सुरक्षित रखती है। जहां नीम के बीज के पाउडर की मदद से तरल कीटनाशक बनाया जा सकता है !

वहीं अलसी की खल्ली से बना पाउडर के छिड़काव से दीमक और नुकसान पहुंचाने वाले कटुवा सूंडी और सफेद मक्खियों से बचाव किया जा सकता है। ट्राईकोग्रामा और ट्राइकोडर्मा को पहले से ही सुरक्षा कवच माना जा चुका है।

किसानों के हित संवर्धन तथा पर्यावरण संरक्षण के लिए यह जरूरी है कि हम लुप्त हो रहे पक्षियों को बचाने की दिशा में जागरूक हो जाए ।

पंख वाले मित्रों की संख्या यदि इसी प्रकार कम होती गई तो पर्यावरण में जो असंतुलन पैदा होगा उसका खामियाजा हमारी आने वाली पीढ़ियों को भी भोगना होगा।

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