Bhagat Singh भगत सिंह को इतना छोटा मत कीजिए!

Bhagat Singh

अजीत द्विवेदी

Bhagat Singh इस देश के वीर सपूतों का अपमान मत कीजिए

Bhagat Singh साहित्य में कई अलंकारों में एक अतिशयोक्ति अलंकार होता है, जिसमें हर चीज को बहुत बढ़ा चढ़ा कर कहा जाता है। रीतिकालीन कवि इस अलंकार का बहुत इस्तेमाल करते थे। बाद में यह राजनीति में इस्तेमाल की जाने वाली चीज बन गई।

Bhagat Singh हर नेता थोड़ी बहुत मात्रा में इस अलंकार का इस्तेमाल करता है। लेकिन दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अतिशयोक्ति अलंकार के इस्तेमाल में रीतिकालीन कवियों से मुकाबला करते हैं। वे हर चीज को बहुत बढ़ा चढ़ा कर कहते हैं। राई का पहाड़ बनाने में उनको महारथ है। इसमें कुछ गलत नहीं है क्योंकि राजनीति इन दिनों प्रचार की चीज बन गई है।

Bhagat Singh परंतु कई बार वे अतिशयोक्ति अलंकार के इस्तेमाल में हद से आगे बढ़ जाते हैं। जैसा उन्होंने अभी किया है। भ्रष्टाचार के आरोपी अपने दो मंत्रियों- मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन के बचाव में उन्होंने कह दिया कि ये दोनों अभी के भगत सिंह हैं! जैसे अन्ना हजारे को उन्होंने गांधी बनाया उसी तरह सिसोदिया और जैन को भगत सिंह बना रहे हैं!

Bhagat Singh यह बहुत खराब बयान है और आजादी के बाद 75 साल में किसी भी नेता द्वारा दिया गया कोई दूसरा घटिया बयान याद नहीं आता है, जिसके साथ इसकी तुलना की जाए। सोचें, कहां सरदार भगत सिंह और कहां मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन! भगत सिंह अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लड़ रहे थे।

Bhagat Singh वे एक साथ दुनिया की सबसे बड़ी साम्राज्यवादी ताकत और देश में व्याप्त आर्थिक व सामाजिक विषमता के खिलाफ संघर्ष कर रहे थे। उन्होंने महज 23 साल की उम्र में जितना अध्ययन किया था, जितना ज्ञान अर्जित किया था, एक देश व समाज के नाते भारत को लेकर उनकी जैसी समझ बनी थी, उनके विचारों में जितनी गहराई थी वहां तक पहुंचना मौजूदा समय के किसी भी राजनेता के लिए मुमकिन नहीं है।

Bhagat Singh भगत सिंह शहीद हुए थे। उन्होंने ब्रिटेन की गूंगी बहरी सरकार तक करोड़ों भारतीयों की आवाज पहुंचाने के लिए केंद्रीय असेंबली में बम फेंका था और अदम्य साहस के साथ वहां खड़े रहे थे ताकि उनको गिरफ्तार किया जाए। उन्होंने हंसते हंसते फांसी का फंदा चूमा था।

Bhagat Singh भगत सिंह अपने समय के तमाम महान क्रांतिकारियों से भी बहुत आगे थे। उनके समकालीन महान क्रांतिकारियों में चंद्रशेखर आजाद ने भी शहादत दी, रामप्रसाद बिस्लिम और अशफाउल्ला खां भी फांसी पर चढ़े थे, राजगुरू और सुखदेव ने तो भगत सिंह के साथ ही फांसी का फंदा चूमा था, इसके बावजूद शहीद ए आजम भगत सिंह कहलाए।

वे अंग्रेजी हुकूमत से लोहा ले रहे तमाम समकालीन क्रांतिकारियों और शहीदों से बड़े थे तभी शहीद ए आजम हुए। तभी उनको सबसे बड़ा शहीद माना गया। सोचें, जब उनका समकालीन कोई भी शहीद उनके बराबर नहीं हुआ या किसी को भगत सिंह नहीं माना गया, भगत सिंह समानों में प्रथम माने गए, सबसे अजीम माने गए तो अब एक सौ साल बाद छुटभैया नेताओं को भगत सिंह बताना शहीद ए आजम का कितना बड़ा अपमान है! यह अच्छी बात है कि अरविंद केजरीवाल अपने कार्यक्रमों में या सरकारी दफ्तरों में भगत सिंह की तस्वीरें लगा रहे हैं, लेकिन इससे उनको यह अधिकार नहीं मिल जाता है कि वे उनका अपमान करें।

उन्होंने अपने जिन दो मंत्रियों को भगत सिंह बताया है उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। मनीष सिसोदिया के ऊपर नई शराब नीति में घोटाला करने का आरोप है। उनके करीबियों पर पैसे लेने के आरोप लगे हैं। सिर्फ इसलिए कि जांच करने वाली एजेंसी विपक्षी पार्टी की सरकार के अधीन आती है, यह नहीं कहा जा सकता है कि आरोप गलत हैं। इसी तरह सत्येंद्र जैन के ऊपर हवाला से पैसे की हेरा-फेरी का आरोप लगा है। वे कई महीनों से जेल में बंद हैं और उनकी पूछताछ को लेकर जो खबरें सामने आईं उसमें बताया गया कि वे बार बार यह दावा करते रहे कि उनकी याद्दाश्त चली गई है।

सोचें, भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में बंद एक व्यक्ति, जो एजेंसी की जांच में याद्दाश्त चली जाने का बहाना करे उसको भगत सिंह बताया जाए, इससे ज्यादा अश्लील कोई बात हो सकती है? भगत सिंह उस वैचारिक धरातल पर खड़े थे, जिसके आसपास भी केजरीवाल और उनकी पार्टी नहीं है। ‘मैं नास्तिक क्यों हूं’ जैसी किताब लिखने वाले भगत सिंह की तस्वीर को पीली पगड़ी पहना कर केजरीवाल एंड कंपनी उनको कट्टरता का प्रतीक बना रही है। महान क्रांतिकारी व्लादिमीर लेनिन से प्रभावित और साम्यवाद के सिद्धांतों को मानने वाले भगत सिंह को ध्रुवीकरण का टूल बनाने की कोशिश करने वाली पार्टी उनके साथ इससे बुरा कुछ नहीं कर सकती थी।

यहां तो नाखून कटा कर शहीद होने वाला मुहावरा भी इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है क्योंकि यहां तो कोई शहादत नहीं हो रही है। सिसोदिया और जैन दिल्ली सरकार के मंत्री के नाते मिलने वाली सारी सुविधाओं का आनंद उठा रहे हैं। उन्हें बड़े बंगले मिले हैं, बड़े दफ्तर हैं, बड़ी गाडिय़ां हैं, सुरक्षा गारद है, आगे पीछे गाडिय़ों का काफिला चलता है, मोटा वेतन और भत्ता मिलता है तब आप दिल्ली के दो करोड़ लोगों के लिए कुछ काम करते हैं। मंत्री के नाते किए गए किसी सामान्य काम के बदले आप और क्या चाहते हैं? इसके बाद आपके मंत्रालय के कामकाज में कुछ गड़बड़ी हुई तो उसकी जांच हो रही है। इसके लिए आप शहीद कैसे कहे जा सकते हैं? आप एक राज्य के मंत्री हैं और सारा समय दूसरे राज्य में पार्टी का चुनाव प्रचार कर रहे होते हैं और चाहते हैं कि आपको शहीद माना जाए और वह भी भगत सिंह के जैसा!

अरविंद केजरीवाल की अपनी राजनीति होगी। उनकी अपनी महत्वाकांक्षाएं होंगी। लेकिन माफ कीजिएगा शहीद ए आजम सरदार भगत सिंह आपकी राजनीतिक सफलता या आपकी महत्वाकांक्षा पूरी करने का टूल नहीं हो सकते हैं। आप अपनी दो कौड़ी की राजनीति के लिए भगत सिंह या किसी भी शहीद के नाम का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं। आपने और इस देश के नेताओं ने पहले ही गांधी, पटेल और नेहरू का कम अपमान नहीं किया है, अब आजादी के महान शहीदों का अपमान मत कीजिए। आप उनका सम्मान नहीं बढ़ा सकते हैं तो कम से कम उन्हें छोटा मत बनाइए। अपनी लड़ाई आप खुद लडि़ए। जनता के पैसे से सत्ता का आनंद भोग रहे अपने मंत्रियों को उनकी लड़ाई खुद लडऩे दीजिए। उन्हें भगत सिंह बता कर शहीद ए आजम का अपमान मत कीजिए।

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