हिंगोरा सिंह
Ambikapur Mainpat Carnival है मुख मुख में मंत्रणा कुदरत के ठाठ की
प्रभु तेरी अनुपम कृति धरा यह मैनपाठ की
Ambikapur Mainpat Carnival अम्बिकापुर मैनपाट कार्निवाल में हिन्दी साहित्य परिषद् व जिला प्रशासन के संयुक्त तत्वावधान में सरस कवि-सम्मेलन का आयोजन किया गया। कवियों ने विविध विषयों पर अपनी श्रेष्ठ व मधुर कविताओं की प्रस्तुतियां देकर लोगों को भावविभोर कर दिया। प्रशासन की ओर से सीतापुर विधायक रामकुमार टोप्पो द्वारा कवियों को स्मृति-चिन्ह व प्रमाण-पत्र देकर सम्मानित किया गया। कवि सम्मेलन की अध्यक्षता हिंदी साहित्य परिषद के जिला अध्यक्ष विनोद हर्ष ने की।
कार्यक्रम के प्रारंभ में गीतकार पूनम दुबे ‘वीणा’ ने नारियों की पीड़ा, विवशता व अपमान पर मार्मिक गीत की प्रस्तुति दी- फूल भी शूल बनकर उम्रभर चुभते रहे, बेड़ियां आभूषणों की बेवजह कसते रहे!
Ambikapur Mainpat Carnival बात करते हैं सदा वे नारी के सम्मान पर, पर कभी वे नहीं आ सके नारी के अपमान पर! गीतकवि कृष्णकांत पाठक प्रेमिका के संकेतों को समझ न पाए व उसकी खूबसूरती में ही खोए-से रह गए। उनके गीत की बानगी देखिए- वो इशारे में क्या कह गई, मैं इशारा समझ न सका। ख्वाब-सी थी हसीं उसकी सूरत, मैं जिसे देखता रह गया!
वरिष्ठ कवि डॉ. सपन सिन्हा ने रूप-रंग, गुण, ज्ञान का अहंकार न पालने की नसीहत अपनी कविता में सबको दी- रूप, रंग, गुण, ज्ञान न हो व्यर्थ का बखान। मन में इनका न अहम् कभी पालिए। चार दिन की चांदनी के बाद है अंधेरी रात। सच है ये बात कभी परदा न डालिए! कवयित्री मंशा शुक्ला ने अपने दोहे में चाटुकारिता पर व्यंग्य करते हुए अयोग्य को मान-सम्मान मिलने की बात कही- चाटुकार की भीड़ में, खोया आज सुयोग्य।
Ambikapur Mainpat Carnival कलयुग की महिमा बड़ी, पाता मान अयोग्य। वरिष्ठ कवयित्री मीना वर्मा को मलाल है कि आज के बच्चे मोबाइल में ही खोए रहते हैं और छोटी-छोटी बात पर चिढ़ते व यहां तक की कभी-कभी आत्मघाती कदम उठाने से भी बाज नहीं आते। उनका दर्द उनकी कविता में यूं मुखरित हुआ- हमारी कल की चिंता करनेवाली औलादें अपने काम में मस्त हैं। ना उन्हें घर की चिंता ना रिश्तों का खौफ़ है। परेशान हम हैं, वे बेखौफ़ हैं! गीतकार पूर्णिमा पटेल ने सरगुजा की महिमा का जीवंत चित्रण अपनी गीतिका में किया- सरगुजा गाजमगूजा माटी कर देव, पहार कर पूजा।
कवि-सम्मेलन में हिन्दी साहित्य परिषद् के अध्यक्ष वरिष्ठ कवि विनोद हर्ष ने अपने गीत में दुर्लभ औषधियों, खनिज व वन-सम्पदाओं से परिपूर्ण मैनपाट को ईश्वर की अद्भुत रचना बताया- मुख-मुख में मंत्रणा कुदरत के काट की, प्रभु तेरी अनुपम कृति धरा ये मैनपाट की। सौंदर्य कुछ कम नहीं, शिमला के अनुपात में। दूध की धार दिखे यहां हर जलप्रपात में! कवयित्री माधुरी जायसवाल ने मैनपाट की प्रकृति को परम रमणीय व सुखदायी बताते हुए उसे प्रेम-संदेश की संवाहक बताया- यह मैनपाट है कितना सुंदर! उछल-कूद रहा है मेरा तन-मन। वृक्षों ने ली अंगड़ाई, ठंडी-ठंडी हवा चलाई।
Ambikapur Mainpat Carnival मैनपाट की प्रकृति सबको प्रेम से रहना सिखाई! कवि अंचल सिन्हा ने मैनपाट को छत्तीसगढ़ की शिमला बताते हुए उसके सुखद मौसम का वर्णन किया- सुबह-सबेरे हल्दी बिखरी जैसे मेरी छाती में। सूरज कुछ ऐसे आता है, मेरी प्यारी घाटी में। शरद-शीत का अंतर नहीं कोई, गर्मी में भी ओस पड़े।
छत्तीसगढ़ की शिमला है ये, सौंधी माटी जोश गढ़े! कवयित्री आशा पाण्डेय ने भी मैनपाट के आंतरिक स्थलों के सौंदर्य का अपनी कविता में ज़िक्र कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया- मैनपाट की वादियों में चलकर तो देखो, क्या-क्या है मैनपाट में, उस जन्नत को देखो। टाइगर पाइंट, फिश पाइंट के कमाल को देखो, उल्टा पानी का बहता उल्टा धमाल तो देखो, परपटिया के गुणों का निराला अंदाज़ तो देखो, दलदली का मैगनेटिक राज़ तो देखो!
दोहाकार व शायर मुकुंदलाल साहू ने वसंत के आगमन पर प्रकृति व लोगों में छाई मादकता का मनोहारी वर्णन अपने वासंती गीत में किया- पड़े हैं धरा पर जब से वासंती पांव रे, झूम-झूम-झूम उठे हैं मनुआं के गांव रे! बौरों से बौराई, गांवों की अमराई, सरसों से गदराई, खेतों की अंगनाई।
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बावरे मन डोल रहे, पलाशों की छांव रे! अंत में, कार्यक्रम के सफल संचालक कवि संतोष सरल ने अपने सुमधुर सरगुजिहा गीत से कवि-सम्मेलन का यादगार समापन किया- करम के डार नोनी सरना कर पूजा, सब ले सुघ्घर एदे हमर सरगुजा। मैनपाट आथे एतेक तान ले सैनानी, जाए के मन करे नहीं, छोड़ के मेहमानी। बदल जाथे चाल-ढाल जइसे खरबूज़ा, सब ले सुघ्घर एदे हमर सरगुजा।