Aajakeejanadhaara : भारत विविधताओं का देश है यहां किसी प्रकार के परिवर्तन की गुंजाइश नहीं……

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Aajakeejanadhaara :वन नेशन वन इलेक्शन’ पर खास परिचर्चा
एक साथ चुनाव से कितना नफा – नुकसान पर हुई चर्चा
केन्द्र सरकार कर रही है एक साथ चुनाव की वकालत
विपक्ष वन नेशन वन इलेक्शन के विरोध में क्यों?

 

 

 Aajakeejanadhaara : रायपुर। मौजूदा दौर में ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ देश में आमो खास के बीच चर्चा हो रही है वहीं देशभर में बहस का मुद्दा बना हुआ है “एक देश, एक चुनाव” देश में राज्यों के विधानसभा और लोकसभा चुनाव को एक साथ कराने के संबंध में ये दर्म यूज किया जा रहा है इसके कई फायदे भी गिनाए जा रहे हैं कुछ राजनीतिक दल इसके पक्ष में नजर आते हैं तो कुछ विरोध् में और कुछ ने अभी इस पर अपनी राय जाहिर नहीं की है।

हाल ही में चुनाव आयोग ने यह कहकर इस मामले को और तूल दे दिया है कि इस साल के सितम्बर के बाद वह पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने में सक्षम है। जाहिर है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लोकसभा तथा विधनसभा चुनावों के एक साथ होने का समर्थन कई बार कर चुके हैं। एक साथ चुनाव करवाने का समर्थन करते हुए नीति आयोग की मसौदा रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में दोनों चुनाव एक साथ होने से शासन व्यवस्था में रुकावटें कम होंगी।

 Aajakeejanadhaara : देश में पहले भी लोकसभा और विधनसभा का चुनाव एक साथ हो चुके हैं। एशियन न्यूज के खास कार्यक्रम संतुलन का समीकरण में वन नेशन वन इलेक्शन और एक देश एक कानून पर चर्चा की गई। विविधताओं से भरे देश में संतुलन का समीकरण तलाशने की कोशिश की गई।

इस मुद्दे पर बात रखने के लिए राजधानी रायपुर के कई प्रमुख राजनीतिक के नेता, रिटायर्ड जज और आम जनता शामिल हुए। इस अवसर पर बीजेपी के वरिष्ठ नेता सच्चिदानंद उपासने, रिटायर्ड जज अनिल शुक्ला, पूर्व मंत्री चंद्रशेखर साहू, आप के प्रवक्ता विजय झा एवं धर्मराज महापात्र, छगन लाल मुंदड़ा, बीएस रावटे, एशियन न्यूज के प्रधान संपादक सुभाष मिश्रा, मैनेजिंग डायरेक्टर अरुण भद्रा, एशियन न्यूज़ के एडिटर अभय किशोर, मैनेजिंग एडिटर आशीष तिवारी और सीनियर हर शकील साजिद मौजूद रहे।

 Aajakeejanadhaara : इस अवसर पर सुभाष मिश्रा ने कहा कि इस विषय पर पूरे देश भर में बहस हो रही है इस चर्चा में भी कई बात निकल कर सामने आ रही है इसमें इलेक्शन रिफॉर्म की भी बात सामने आई वन नेशन वन इलेक्शन के बारे में बात करें तो इसमें बहुत सारे कानूनी दावपेच है पर यह बात क्यों हो रही है और इस पर हम डिबेट क्यों कर रहे हैं

एक अहम सवाल यह है कि जब चुनाव नजदीक आता है तो अचानक से हमारे देश में कुछ चीज होने लगती है उसके बारे में किसी को कुछ पता नहीं होता। इन दिनों हमारे देश में एक अलग तरह के कार्य पद्धति डेवलप हुई है इससे लोगों में एक भय पैदा हो गया है कि पता नहीं आगे क्या होने वाला है सवाल ये नहीं है की वन नेशन वन इलेक्शन से खर्चे बचेंगे।

बल्कि इस पर बात होनी चाहिए कि मौजूदा दिनों में जो चुनाव महंगे हुए हैं वह कैसे सस्ता हो और आम लोग जो चुनाव लडना चाहते हैं वो भी भागीदारी करे। अभय किशोर ने एक देश एक चुनाव से कोई परेशानी नहीं है पहले भी ऐसे चुनाव हुए हैं लेकिन मौजूदा समय में जब कई राज्यों में चुनाव होने हैं और कई राज्यों में चुनाव के दो-तीन साल ही हुए हैं ऐसे में किसी पर जबरन थोपना यह गलत है। क्योंकि इसके लिए बहुत सारे संवैधानिक संशोधन करना पड़ेगा।

उर्मिला शर्मा ने कहा की यह स्वागत करने योग्य निर्णय है इसमें किसका फायदा है या नुकसान है मैं ये नहीं कहूंगी। लेकिन चुनाव के समय जो जनता पिसती है वह इन चीजों से बचेगी। वहीं वकील हेमल शर्मा ने कहा कि वन नेशन वन इलेक्शन से किसी को ज्यादा परेशानी नहीं है लेकिन भारत की जनता बहुत भोली भाली जनता है इनको पहले ट्रेनिंग देना होगा या फिर समझाने की आवश्यकता है उसके बाद ऐसी निर्णय लेना होगा ।

आप पार्टी के प्रवक्ता विजय झा ने कहा कि एक देश एक चुनाव पर बात करने के साथ एक देश एक पेंशन और एक देश एक कानून पर भी बात करना होगा केवल राजनीतिक रोटी सीखने के लिए ऐसे निर्णय लेना बिल्कुल निराधार है।

बेस्ट फॉर्मूला साबित होगा एक देश एक चुनाव

 

वन नेशन वन इलेक्शन के पक्ष में राय ले लेते हैं चंद्रशेखर साहू ने कहा कि वन नेशन वन इलेक्शन मेरे दृष्टि से लोकसभा के हित में है। उन्होंने कहा कि 1999 में जब विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट पेश की तो उसे समय भी इस पर बहस हुआ था बाद में उसे समय के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने भी इसके बारे में बहुत सारे विषय पर न केवल संसद में बल्कि  देश के अन्य मंचों  पर उन्होंने बात कही थी।

और उसके बाद इस विषय पर बातचीत भले ही नहीं होगी लेकिन आज के मौजूदा दौर में हम यह कह सकते हैं की जब एक समय था चुनाव में उम्मीदवार कम हुआ करते थे उनकी संख्या अभी देखें तो बहुत बढ़ गई है और खर्च भी बहुत ज्यादा बढ़ गए हैं ऐसी दशा में पूरे 5 साल तक देश के कहीं ना कहीं किसी हिस्से में चुनाव होते रहता है ऐसे में मुझे लगता है कि लोकतंत्र में और देश वासियों के साथ किस तरह का न्याय कर सकते हैं उसमें बेस्ट फॉर्मूला एक देश एक चुनाव मान सकते हैं ।

 

एक पार्टी अपनी विचारों को थोप रही है

 

 

धर्मराज महापात्र ने एक देश एक चुनाव को लागू होने से क्या होगा  या इसको लागू करने में क्या परेशानी है इस पर बात रखते हुए उन्होंने कहा कि यह देश के हित के खिलाफ है सबसे बड़ी बात यह है कि देश में एक तरीके से अपने विचारों के थोपने की कोशिश की जा रही है उसी का यह एक रिफ्लेक्शन है

इसके बाद वन नेशन वन टैक्स, वन नेशन वन कल्चर, वन नेशन वन रिलिजन, वन नेशन वन फिलासफी फिर यह आगे चलकर वन नेशन वन लीडर हो जाएगा यह जो विचार या अवधारणा है वह भारत जैसे विविधता वाले देश में जनतंत्र की हत्या के समान है यह हमारे देश के लोकतंत्र के जड़ों को कमजोर करेगी।

 

एक देश एक चुनाव से संविधान में भी करना होगा संशोधन

 

रिटायर्ड जज अनिल शुक्ला ने कहा कि जहां तक वन नेशन वन इलेक्शन की बात है सबसे बड़ी बात यह है कि अभी चार राज्यों में चुनाव हो रहे हैं कुछ राज्यों में चुनाव अभी हाल में ही निपटे हैं वहीं कुछ राज्यों में चुनाव के दो-तीन साल ही गुजरे हैं ऐसे में अगर चुनाव एक साथ करवाया जाता है

तो संविधान के कई आर्टिकल में भी संशोधन करवाना पड़ेगा क्योंकि कुछ विधानसभाओं का कार्यकाल बढ़ाना पड़ सकता है या घटना भी पड़ सकता है मेरे ख्याल से ऐसे कदम उठाना संविधान के दायरे में ठीक नहीं है उन्होंने कहा कि जो संशोधन होगा उसमें ऐसा नहीं है कि लोकसभा और राज्यसभा से पारित हो जाए इसमें आधे से ज्यादा राज्यों के  विधानसभा का भी अभिमत लेना पड़ेगा । ऐसे में कई अड़चने आएगी।

 

लोकतंत्र के हित में है फायदा

 

सच्चिदानंद उपासने ने कहा कि पहले भी इस तरह के चुनाव होते आए हैं लोकसभा और राज्यसभा के चुनाव एक साथ हुए हैं लेकिन इसको खंडित कर दिया गया अब वैसे ही पढ़ती लाने की कोशिश की जा रही है इससे देश को फायदा होगा और जो साल भर कहीं ना कहीं चुनाव होते हैं वह एक साथ निपटेगा इसके साथ ही इसमें खर्च भी कम होगा।

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उन्होंने कहा कि यह मौजूदा दौर में नहीं इससे पहले भी अटल बिहारी वाजपेई के सरकार में भी यह बातें उठी थी और कई मंचों पर बात भी हुई थी इस पर बहुत ही व्यापक स्तर पर आयोजन हुए और बात हुई इस पर अनेक राज्यों से सलाम मशवरा के लिए पत्र जारी हुए लेकिन किसी कारण से वह लागू नहीं हो पाया और अब इस पर बात हो रही है यह केवल राजनीतिक पहलू नहीं है यह लोकतंत्र के हित में भी फायदा होगा।

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