Agricultural सबसे कम कीमत के लिए पहचान बना रही रगजा

Agricultural

राजकुमार मल

रगजा अब नहीं…!

 खरीददार भी नहीं मिलते

Agricultural  भाटापारा– रगजा। कई प्रजातियों को मिलाकर बनने वाली धान की यह किस्म तेजी से खत्म हो रही है। उपयोग करने वाले भी कम हो रहे हैं। इसलिए कीमत के मामले में सबसे नीचे चल रही है यह किस्म। कीमत और आवक, जैसी बनी हुई है, उसे देखते हुए तेजी की संभावना जरा भी नहीं है।

Agricultural  कृषि उपज मंडी भाटापारा। हर किस्म की उपज को अच्छी कीमत देने वाली मंडी के रूप में जानी जाती है लेकिन इस समय यह, सबसे कम कीमत के लिए पहचान बना रही है।

Agricultural जब सभी उपज को निम्न दर मिल रही हो, ऐसे में रगजा धान की कीमत का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है लेकिन इतनी भी कम हो रही होगी, यह चिंता भी बड़ी वजह मानी जा रही क्योंकि सीजन है, और खरीददारी भी चौतरफा निकली हुई है।

जानिए रगजा को

खेतों में खुद से उग आने वाली धान की बोनी, पहले किसान किया करते थे। खलिहान में कई तरह की प्रजातियों के धान की मिसाई की वजह से दाने बुहारने के बाद भी रह जाते थे। मिसाई के बाद इन्हें इकट्ठा किया जाता था। मंडी प्रांगण में आने के बाद इसे रगजा के नाम से पहचान मिलती थी।

इसलिए अब रगजा नहीं

Agricultural क्रांति, चेपटी, गुरमटिया और लुचई। मोटा धान की प्रजातियां खूब बोई जाती थीं लेकिन महामाया के प्रवेश के बाद धान की यह प्रजातियां तेजी से खत्म होती चलीं गई। इसलिए मोटा धान में महामाया का वर्चस्व या कहें एकछत्र साम्राज्य स्थापित हो गया। लिहाजा खलिहान में मोटा धान के नाम पर एक यही प्रजाति रह गई।

पारंपरिक मिसाई हो रही खत्म

Agricultural हार्वेस्टर, थ्रेशर के बढ़ते चलन के बाद बेलन या ट्रैक्टर से मिसाई का वर्षों पुराना तरीका खत्म हो चला है। इसलिए खलिहान में चुनिंदा प्रजातियों की मौजूदगी रह गई है। इसे भी रगजा के खत्म होने की प्रमुख वजहों में से एक माना जा रहा है। ऐसा भी एक दौर था, जब मिसाई खत्म होने के बाद खलिहान की सफाई के दौरान जो दाने मिलते थे, उनकी मात्रा अच्छी-खासी होती थी। कीमत भी मिलती थी।

खरीददार हुए बेहद कम

नई प्रजातियों की बोनी के लिए बढ़ता चलन और तकनीक के दौर में रगजा के लिए अब जगह नहीं रही। इसलिए खरीददारों की संख्या लगभग शून्य पर है। इक्का- दुक्का जो बच गए हैं, उनकी खरीदी के बाद ही इस समय प्रांगण में रगजा के भाव 1200 से 1300 रुपए क्विंटल पर बोले जा रहे हैं। आवक जैसी है, उसे नहीं ही माना जा रहा है।

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