माइक्रोग्रीन्स फार्मिंग की तकनीक छत, बालकनी और रसोईघर के लिए तैयार
राजकुमार मल
भाटापारा। पौधे बहुत छोटे लेकिन पोषण बहुत ज्यादा होता है। भाजी फसलों में माइक्रोग्रीन्स फार्मिंग का यह नवाचार सितारा हॉटलों में सफल रहा। अब बारी है घरों की, जहां इस विधि के विस्तार की अपार संभावनाएं हैं।
अब ऑफ सीजन में भी सरसों, मूली, धनिया, पालक, ब्रोकली और सूरजमुखी का स्वाद लिया जा सकेगा। माइक्रोग्रीन्स फार्मिंग की यह तकनीक विशेष तौर पर छत, बालकनी और रसोईघर के लिए तैयार की गई है। बेहद आसान यह विधि, न्यूनतम लागत और न्यूनतम देखरेख मांगती है। यही वजह है कि सितारा हॉटलों में माइक्रोग्रीन्स फार्मिंग खूब की जा रही है।
जानिए माइक्रोग्रीन्स फार्मिंग को
माइक्रोग्रीन्स वह छोटे-छोटे पौधे होते हैं, जो अंकुरण के महज 7 से 12 दिनों के भीतर कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। शुरुआती पत्तियों में पोषण तत्व भरपूर होते हैं। अनुसंधान में वयस्क पौधों की तुलना में इनमें 4 से 40 गुना अधिक पोषक तत्वों का होना पाया गया है। इस विधि में सरसों, मूली, धनिया, पालक, मेथी, सूरजमुखी और ब्रोकली की प्रजाति अनुशंसित की गई है।
माइक्रोग्रीन्स उगाने की यह प्रक्रिया
एक ट्रे। मिट्टी की मामूली मात्रा। कोकोपीट का भी उपयोग किया जा सकता है। बीज को बिछाएं और हल्का सा दबा दें। स्प्रेयर की मदद से पानी का छिड़काव करें। 2 से 3 दिन के बाद अंकुरण होता नजर आए, तब ट्रे को हल्की धूप या रोशनी में रखें। 7 से 12 दिन बाद पत्तियां तैयार हैं सब्जी और सलाद के लिए। चाहे तो जूस भी बनाया जा सकता है और हां, भोजन और नाश्ते की टेबल में सजावट भी की जा सकती है।
इसलिए माइक्रोग्रीन्स
बढ़ता शहरीकरण, घटती कृषि भूमि और कमजोर होती जल उपलब्धता। यह प्रमुख वजह रही वैकल्पिक कृषि प्रणालियों के खोज की। सितारा हॉटलें पहले ऐसे क्षेत्र रहे जिन्होंने माइक्रोग्रीन्स फार्मिंग को अपनाया। नई विधि में मिली सफलता के बाद अब माइक्रोग्रीन्स फार्मिंग घरों की ओर कदम बढ़ा चुका है जहां विस्तार की असीम संभावनाएं हैं। शुरुआती प्रयास से संकेत बेहतर प्रतिसाद के मिल रहे हैं।
पोषण सुरक्षा के दिशा में सार्थक पहल
माइक्रोग्रीन्स फार्मिंग केवल एक शौक नहीं बल्कि पोषण सुरक्षा की दिशा में एक मजबूत कदम है। यह तकनीक बच्चों, बुजुर्गों और पोषण की आवश्यकता वाले लोगों के लिए आदर्श है। शहरी जीवनशैली के अनुकूल यह प्रणाली जल और भूमि की बचत करते हुए ताज़ा, जैविक और पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराती है। छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में जहां कृषि विविधता और जलवायु अनुकूलन की आवश्यकता है, माइक्रोग्रीन्स फार्मिंग शहरी खेती का सशक्त माध्यम बन सकती है।
अजीत विलियम्स
साइंटिस्ट (फॉरेस्ट्री), बीटीसी कॉलेज ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर