-सुभाष मिश्र
देश में इस समय धु्रवीकरण की राजनीति चरम पर है। विभाजन के समय भी लोगों के दिलों में इतने गहरे से हिन्दु-मुस्लिम का भाव नहीं थे, जितना इन दिनों देखने को मिल रहा है। युवापीढ़ी सोशल मीडिया पर आ रही आधी-अधूरी और पूर्वाग्रहयुक्त जानकारी, सूचनाओं से भ्रमित है। राजनीति से जुड़े लोग दोनो सम्प्रदाय के लोगों के बीच बढ़ रही खाई को और अधिक गहरा करने में लगे हैं। सरकार की ओर से हाल के वर्षो में लगाये गये बहुत सारे संशोधन प्रभावों की श्रृंखला में वक्फ़ (संशोधन) विधेयक को तुष्टिकरण की दिशा में एक और कदम मान जा रहा हैं, वही सत्तापक्ष और विपक्ष के अपने-अपने तर्क और आंकड़े है।
वक्फ़ (संशोधन) विधेयक 2024 को लेकर सत्ता पक्ष का कहना है कि-विपक्ष इस मामले में देश के लोगों को गुमराह कर रहा है। वहीं विपक्ष का कहना है की संयुक्त संसदीय कमेटी यानी जेपीसी की प्रक्रिया का पालन नहीं हुआ यह जबरदस्ती लागू किया गया कानून है। 16 सांसदों की समिति में 10 सांसद सत्ता पक्ष से और 6 विपक्ष से थे। समिति के अध्यक्ष जगदंबिका पाल का कहना है की संशोधन बहुमत के आधार पर स्वीकार किये गये है 44 में से 14 संशोधन स्वीकार किये गये है। विपक्ष का कहना है की हमारे एक भी संशोधन स्वीकार नहीं किया गया। संसद में वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 को लेकर विपक्ष लामबंद हो गया। जबकि सरकार ने इसे वक्फ संपत्तियों के बेहतर प्रबंधन और पारदर्शिता के लिए जरूरी बताया है। मुस्लिमों के दो संप्रदाय शिया और सुन्नी के लिए अलग-अलग वक्फ बोर्ड है।
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वक्फ़ बोर्ड विवाद इस समय हमारे देश में एक बड़ा राजनीतिक और कानूनी मुद्दा बन गया है। यह विवाद मुख्य रूप से वक्फ़ संपत्तियों, उनके प्रशासन और सरकार द्वारा वक्फ़ बोर्ड को दी जाने वाली शक्तियों और संसाधनों से जुड़ा हुआ है। वक्फ़ एक इस्लामिक परंपरा है जिसमें संपत्ति को धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए समर्पित किया जाता है। भारत में लाखों एकड़ जमीन वक्फ़ संपत्ति के रूप में दर्ज है। किन्तु वक्फ़ संपत्तियोंं का को सेंट्रल डाटा उपलब्ध नहीं है।
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वक्फ़ बोर्ड का नियंत्रण राज्य सरकारों के अधीन होते हैं, लेकिन इनकी कार्यप्रणाली में भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के कई आरोप लगते रहे हैं। विपक्षी दलों के नेता कह रहे है की इसमें वक्फ़बोर्डों के प्रबंधन में सुधार की बजाय, यह विधेयक मुस्लिम समुदाय के धार्मिक मामलों में अनावश्यक रूप से हस्तक्षेप करेगा। विधेयक का उद्देश्य वक्फ़ संपत्तियों पर अधिक नियंत्रण और सरकारी निगरानी को बढ़ाता है, जो धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों का उल्लंघन करता है।
विपक्षी दलों का यह भी कहना है कि जेपीसी की रिपोर्ट में उनके असहमति के नोट को हटा दिया गया। कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े ने इसे लोकतंत्र के खिलाफ बताया। उनकी मांग है कि रिपोर्ट को वापस भेजा जाए और सभी असहमति के विचारों को उसमें फिर से शामिल किया जाए। समाजवादी पार्टी की सांसद डिंपल यादव ने कहा कि समिति की कार्यवाही में स्वतंत्र रूप से इनपुट नहीं लिए गए थे। विधेयक अल्पसंख्यकों के अधिकारों के खिलाफ है और यह अवैध हैं। वक्फ़ संशोधन विधेयक पर सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि यह बिल असंवैधानिक है और संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 29 का उल्लंघन करता है। बिल वक्फ़ को बचाने के लिए नहीं बल्कि इसे बर्बाद करने और मस्जिदों, दरगाहों, कब्रिस्तानों को मुसलमानों से छीनने के लिए है।
वक्फ संसोधन बिल पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने आपत्ति जताई है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि भारत में अपनी जायदाद पर जितना हक सिखों और हिंदुओं का है, उतना ही मुस्लिमों का भी है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने कहा, वक्फ पर मौजूदा कानून भारतीय संविधान के अंतर्गत ही आता है। यह धर्मों की स्वतंत्रता के कानून के अंतर्गत ही आता है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वाइस प्रेसिडेंट अरशद मदनी ने कहा, कपिल सिब्बल इस मामले में हमारे वकील हैं, उनसे इस पर कानूनी बात चल रही है। जमियत उलेमा हिंद भी इस लड़ाई में साथ है।विपक्ष का कहना है कि सरकार वक्फ़ संपत्तियों को अधिक शक्ति और संरक्षण देकर मुस्लिम समुदाय को खुश करने की कोशिश कर रही है, जिससे हिंदू और अन्य समुदायों के साथ भेदभाव हो सकता है। विपक्ष इसे विशेषाधिकार का मुद्दा भी बता रहा है। विपक्ष का कहना है कि जब अन्य धार्मिक ट्रस्टों और मंदिरों को इतनी स्वतंत्रता नहीं दी जाती, तो वक्फ़ बोर्ड को इतनी स्वायत्तता क्यों?
केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू जिन्होंने जेपीसी की पूरी रिपोर्ट संसद में पेश की उनका कहना है कि उसमें विपक्षी दलों के असहमति नोट भी शामिल किए गए हैं। अगर रिपोर्ट में कोई बदलाव किया गया है, तो वह पार्लियामेंट के नियमों के तहत ही किया गया है। कई मामलों में वक्फ़ बोर्ड के दावे सरकारी या निजी जमीनों पर भी रहे हैं, जिससे विवाद बढ़ता है। वक्फ़ बोर्डों पर भ्रष्टाचार और धांधली के आरोप लगते रहे हैं, लेकिन सरकार इन्हें और अधिक शक्तियाँ दे रही है, जिससे पारदर्शिता का सवाल उठता है। कई लोग यह तर्क दे रहे हैं कि सरकार हिंदू मंदिरों के ट्रस्टों पर नियंत्रण रखती है, लेकिन वक्फ़ बोर्डों को अधिक स्वायत्तता मिल रही है, जो पक्षपातपूर्ण नीति हो सकती है। यदि सरकार केवल मुस्लिम समुदाय को खुश करने के लिए यह कदम उठा रही है, तो यह तुष्टिकरण कहा जाएगा। यदि सरकार सभी धार्मिक संपत्तियों का समान रूप से ध्यान रख रही है और पारदर्शिता बढ़ा रही है, तो इसे संतुष्टिकरण कहा जा सकता है।
यह विवाद राजनीति, धर्म और संपत्ति प्रबंधन के मुद्दों से जुड़ा हुआ है। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार इसे किस तरह संभालती है और क्या हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध और अन्य धार्मिक संस्थानों के साथ भी समान व्यवहार किया जाता है। क्या वक्फ़ बोर्डों की पारदर्शिता बढ़ेगी, या यह सिर्फ एक राजनीतिक एजेंडा है, यह भविष्य में स्पष्ट होगा।