गरियाबंद। भाव का भूखा है भगवन , भाव ही इक सार है , जो भाव से भजता है उनको , तो भव से बेड़ा पार है जीवन में सत्संग तभी प्रवेश करता है जब मन में अटूट श्रद्धा और भक्ति भगवान के चरणों में हो जाती है तभी भगवान की कृपा के प्रभाव से सत्संग होता है। गरियाबंद के हृदय स्थल गांधी मैदान में अपने पितरों के मोक्षार्थ मनकुपिया परिवार द्वारा आयोजित भगवत कथा के तृतीय दिवस पर बराह चरित्र , सती प्रसंग और ध्रुव चरित्र की कथा निकुंज आश्रम से आए नारायण जी महराज द्वारा गया गया ।
उन्होंने बताया कि जीवन में व्यक्ति सत्संग तो बाद में करता है पहले संत का संग करता है और संत के संग के माध्यम से ही सत्संग किया जाता है , सत्संग करने की पद्धति बताते हुए उन्होंने बताया कि सत्संग करने के लिए तीन कार्य आवश्यक है सर्वप्रथम मन का शुद्ध होना , दूसरा दृष्टि की पवित्रता को और तीसरा आसन की पवित्रता होनी चाहिए।
संत का कोई वेश नहीं होता संत का तो परिवेश होता है , संत का चित्त नहीं होता संतो का चरित्र होता है वैसे ही भक्त का भी भाव और स्वभाव ही होता है भक्त का भी कोई वेश नहीं होता । भगवान से मिलने का अगर स्वभाव हो गया तो सुख ढूंढने की जरूरत नहीं है वो खुद ब खुद जीवन में प्रवेश करने लगेगा , जिस व्यक्ति के प्रतिदिन मंदिर जाने के स्वभाव होता है वह व्यक्ति अनर्गल विचारों से दूर हो जाता है ।
हजारों हजार की संख्या में मौजूद भक्तों से नारायण जी महराज ने कहा कि भगवान कभी नहीं बदलते , संत कभी नहीं बदलते , गुरु कभी नहीं बदलते हमारी दृष्टि बदल जाती है , हमारा समर्पण बदल जाता है , हमारे भाव बदल जाते हैं , हमारी श्रद्धा बदल जाती है।
लेकिन सच्चे भक्त के जीवन की दशा यही होती है कि भक्त के जीवन में अभाव भी आए तो गोविंद की कृपा समझ के स्वीकार कर लेता है ।
भाव का भूखा है भगवन , भाव ही इक सार है , जो भाव से भजता है उनको , तो भव से बेड़ा पार है
15
Dec