Third day of Akshaya अक्षय तृतीया पर ब्रजभूमि में प्रवाहित होती है भक्ति रस की गंगा

Third day of Akshaya

Third day of Akshaya अक्षय तृतीया पर ब्रजभूमि में प्रवाहित होती है भक्ति रस की गंगा

 

Third day of Akshaya मथुरा !    सतयुग के बाद इसी दिन से त्रेता युग की शुरूवात के कारण अक्षय तृतीया का विशेष महत्व है। ब्रजभूमि में इस दिन मन्दिरों में भक्ति रस की गंगा प्रवाहित होती है। इस दिन किया गया पुण्य कार्य अक्षय होने के कारण इस दिन गिर्राज की सप्तकोसी परिक्रमा करने की होड़ सी मच जाती है।

 


Third day of Akshaya  इस दिन दानघाटी मन्दिर में गिर्राज जी को चन्दन श्रंगार से जगाया जाता है तथा इस दिन की मंगला के दर्शन करने का विशेष महत्व इसलिए है ठाकुर जी इस दिन वर्ष में एक बार चन्दन श्रंगार के साथ भक्तों को दर्शन देते हैं।मन्दिर के सेवायत आचार्य पवन कौशिक ने बताया कि इस दिन ठाकुर के भोग में आम, खरबूजा, शर्बत एवं सत्तू का समावेश ठाकुर को शीतलता प्रदान करने के लिए किया जाता है।


गोवर्धन पीठाधीश्वर शंकराचार्य अधोक्षजानन्द देव तीर्थ ने बताया कि इस पावन दिवस पर भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम ने महर्षि जमदग्नि और माता रेणुका देवी के घर में जन्म लिया था तथा इसी दिन सुदामा ने श्रीकृष्ण को चावल भेंट किये थे। इसी दिन से वेद व्यास ने महाभारत की रचना प्रारंभ की थी तथा पुरी में इसी दिन जगन्नाथ रथयात्रा निकलती है।


Third day of Akshaya  उन्होंने बताया कि इस दिन भगवान शिव ने कुबेर को धनपति होने का आशीर्वाद दिया था इसीलिए माना जाता है कि इस दिन कुबेर देव और मां लक्ष्मी की उपासना करने से व्यापार में वृद्धि होती है।इस दिन भागीरथ के प्रयास से गंगा अवतरण भी हुआ था तथा इस दिन देवी अन्नपूर्णा का जन्म दिन मनाया जाता है। इस दिन सोना खरीदना बहुत शुभ माना जाता है।ऐसा विश्वास किया जाता है कि कोई भी व्यवसाय या नया काम इस दिन शुरू करने पर सफलता निश्चित है। हिन्दुओं और जैन समाज के लोगों के लिए इस त्योहार का विशेष महत्व है।

 


राधारानी की नगरी वृन्दावन के मन्दिरों में इस पर्व को अति शुचितापूर्ण तरीके से मनाया जाता है। यहां के मंदिरों में इस दिन ठाकुर का अनूठा चन्दन श्रंगार किया जाता है। बांकेबिहारी मन्दिर के सेवायत आचार्य ज्ञानेन्द्र गोस्वामी ने बताया कि इस दिन चन्दन की बगलबंदी, चन्दन की धोती, चन्द्रन का मुकुट, चन्दन की लकुटी और चन्दन की बांसुरी से ठाकुर का श्रंगार किया जाता है ठाकुर को पीताम्बरी धारण कराई जाती है तथा ठाकुर के श्रीचरणों में चन्दन का गोला रखा जाता है।प्रसाद में सत्तू, खरबूजा, आम, शर्बत आदि का भोग लगता है तथा वर्ष में केवल एक बार बिहारी जी महराज के चरण दर्शन होते हैं।


स्वयं प्राकट्य विगृहवाले राधारमण मन्दिर में ठाकुर को शीतलता प्रदान करने के लिए इस दिन से मन्दिर में फूल बंगला बनना शुरू हो जाते है।मन्दिर के सेवायत आचार्य दिनेश चन्द्र गोस्वामी ने बताया कि चूंकि इस दिन ठाकुर को चन्दन का पटका, पैजामा, अंगरखी आदि धारण कराते हैं इसलिए एक पखवारे पहले से ही चन्दन का घिसना शुरू हो जाता है।चन्दन का श्रंगार राजभोग के बाद होता है तथा शाम को औलाई के बाद इस श्रंगार को बढ़ा दिया जाता है तथा इस दिन ठाकुर के सर्वांग दर्शन होते हैं।


इस दिन ठाकुर का अनूठा श्रंगार होने के कारण लाला को नजर लगने से बचाने के लिए ठाकुर का झांकी दर्शन यानी बार बार पर्दा लगाने का क्रम चलता है। इस दिन ठाकुर का भोग सत्तू, आम, खरबूजा विभिन्न प्रकार के शर्बत से होता है।


राधा दामोदर मन्दिर में अक्षय तृतीया के लिए लगभग पांच किलो चन्दन की आवश्यकता होती है इसलिए चन्दन का घिसना होली के बाद से ही शुरू हो जाता है। मन्दिर के सेवायत आचार्य कृष्ण बलराम गोस्वामी ने बताया कि अक्षय तृतीया के दिन इस घिसे चन्दन में गुलाबजल, केशर, कपूर ,इत्र, गंगा जल एवं यमुना जल डालकर तैयार करते है फिर ठाकुर का पूरा श्रंगार चन्दन से ही किया जाता है। ठाकुर का श्रंगार चन्दन से करने में चार से पांच घंटे लग जाते हैं।इसलिए इस दिन प्रातःकालीन दर्शन में मंगला और फिर घूप के दर्शन के बाद मन्दिर बन्द हो जाता है और शाम 6 बजे दर्शन खुलते हैं जो रात 11 बजे तक खुले रहते हैं। इस दिन ठाकुर चन्दन की पोशाक धारण करते हैं तथा रायबेल की केवल एक माला धारण करते हैं। भोग में सत्तू, ककड़ी , आम , छुहारे, दाल, खरबूजा , शरबत आदि अर्पित किया जाता है।

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वृन्दावन के अन्य सत्य देवालयों राधा श्यामसुन्दर मन्दिर, राधा बल्लभ मन्दिर, गोपीनाथ मन्दिर, मदन मोहन मन्दिर , गोविन्द देव में भी ठाकुर का चन्दन श्रंगार होता है जिसे ठाकुर की चन्दन यात्रा कहते हैं। इन सभी मन्दिरों में ठाकुर के सर्वांग दर्शन होते हैं।ऐसा माना जाता है कि इस दिन वृन्दावन के मन्दिरों में ठाकुर के सर्वांग दर्शन करने तथा गिरि गोवर्धन की परिक्रमा करने से मोक्ष का द्वार खुल जाता है।

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