Supreme Court मनमानी पर उतरी विजयन सरकार

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Supreme Court के. विक्रम राव

Supreme Court जिस निर्लज्जता से केरल के मुख्यमंत्री पिनरायी विजयन ने सर्वोच्च न्यायालय के स्पष्ट आदेश की अवमानना की है, वह अत्यंत गंभीर संवैधानिक गलती है।

Supreme Court केरल उच्च न्यायालय के निर्णय को निरस्त करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने 21 अक्टूबर, 2022 को राज्य शासन द्वारा नामित एपीजे अब्दुल कलाम तकनीकी विश्वविद्यालय के कुलपति पद पर डॉ. एम. एस. राजश्री की नियुक्ति को अवैध करार दिया था। न्यायाधीश-द्वय मुकेश कुमार रसिकभाई शाह तथा चुडलाटी थेवन रवि कुमार ने अपने आदेश में कहा कि केरल शासन का निर्णय त्रुटिपूर्ण है, और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के मान्य नियमों का उल्लंघन करता है। आयोग के अनुसार कुलपति के चयन के लिए खोज समिति बनती है जो कुछ नामों को अग्रसारित करती है। मगर डॉ. राजश्री का अकेला नाम सूची में था। वैकल्पिक नामांकन नहीं था। अत: वह रद्द कर दिया गया।

Supreme Court मगर माकपा शासन ने इस आदेश को क्रियान्वित नहीं किया। इसी तरह केरल उच्च न्यायालय ने केरल मत्स्य पालन एवं महासागर अध्ययन विश्वविद्यालय (केयूएफओएस) के कुलपति की नियुक्ति को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि उनकी नियुक्ति भी यूजीसी के मानदंडों के खिलाफ है। मुख्य न्यायाधीश एस. मणिकुमार और शाजी पाल चाली की खंड पीठ ने कहा कि डॉ. के. रीजि जॉन को केयूएफओएस का कुलपति नियुक्त करने के दौरान यूजीसी के उस नियम का पालन नहीं किया गया जिसके तहत कुलाधिपति को तीन या उससे अधिक दावेदारों की सूची भेजना अनिवार्य है। पीठ ने कहा कि नये कुलपति के लिए कुलाधिपति एक चयन कमेटी गठित कर सकते हैं। स्पष्ट किया कि कुलपति के चयन में यूजीसी के मानदंडों का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए। उच्च न्यायालय का यह फैसला डॉ. जॉन की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आया है।

Supreme Court यह फैसला राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान द्वारा जॉन का इस्तीफा मांगे जाने के कदम को जायज ठहराता है। खान ने इस आधार पर जॉन का इस्तीफा मांगा था कि उच्चतम न्यायालय ने ऐसे ही एक मामले में कहा था कि यूजीसी के मानदंडों के अनुसार राज्य सरकार द्वारा गठित चयन कमेटी को कम से कम तीन उपयुक्त दावेदारों के नामों की सिफारिश करनी चाहिए थी। राज्यपाल चाहते हैं कि कुलपति का नामांकन आयोग की नियमावली के मुताबिक हो। पिनरायी विजयन अपने चहेतों को पदासीन कराना चाहते हैं। यही मूलभूत मसला है कि शासन नियमों पर चलेगा या पार्टी हित में? आरिफ मोहम्मद खान के विरुद्ध अभियान की वजह क्या है? मुख्यमंत्री विजयन के निजी सचिव हैं केके रागेश। उनकी पत्नी को कन्नूर विश्वविद्यालय कुलपति तथा गोपीनाथ रवीन्द्रन को मलयालम भाषा विभाग में एसो. प्रोफेसर नियुक्त कर दिया गया है। चयन समिति के समक्ष छह प्रत्याशी पेश हुए थे।

सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी के अनुसार डॉ. प्रिया का शोध स्कोर मात्र 156 था। द्वितीय स्थान पर नामित हुए प्रत्याशी को 651 अंक मिले थे। इंटरव्यू में द्वितीय आए उम्मीदवार को कुल 50 में से 32 अंक मिले जबकि प्रिया को पचास में से मात्र 30 अंक। राज्यपाल आरिफ को सूचना मिली कि प्रिया के पति रागेश माकपा के छात्र संगठन एसएफआई के प्रमुख थे और माकपा के पूर्व सांसद। इस बीच केरल हाई कोर्ट ने प्रिया की नियुक्ति पर रोक भी लगा दी। यूजीसी को नोटिस भी जारी कर दिया।

इसके अतिरिक्त केरल में एक और शासकीय कुप्रथा है। इससे राज्य कोष पर अनावश्यक बोझ पड़ता है। केरल के मंत्रियों को अधिकार है कि वे बीस-बीस व्यक्तियों को अपने निजी स्टाफ में नियुक्त कर सकते हैं। स्वाभाविक है कि सभी राजनीतिक कार्यकर्ता होंगे। ढाई साल की नौकरी के बाद सभी को कानूनन आजीवन पेंशन भी मिलती है। क्या पार्टीबाजी है? राज्यपाल ने इस पर ऐतराज जताया तो माकपा मुख्यमंत्री नाराज हो गए।

माकपा ने राज्यपाल के पद ही को खत्म करने की मांग कर दी। एक अन्य अत्यंत गंभीर आरोप भी राज्यपाल का है कि मुख्यमंत्री राज्यपाल को शासकीय विषयों तथा सूचनाओं से वंचित रखते हैं। राज्यपाल को आतंकित करने में सारे हथकंडे अपनाते हैं।

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