Supreem Court हिजाब का मामला सुप्रीम कोर्ट में

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अजय दीक्षित

Supreem Court हिजाब का मामला सुप्रीम कोर्ट में

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Supreem Court हिजाब का मामला सुप्रीम कोर्ट में

Supreem Court पाठकों को याद होगा कि कुछ महीने पहले कर्नाटक की भाजपा सरकार ने मुस्लिम छात्राओं को कॉलेज में हिजाब पहन कर आने पर रोक लगा दी थी । इससे कई छात्राएं अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाईं । कई मुस्लिम छात्राओं की परीक्षा छूट गई । असल में गुप्त सत्य तो यह है कि जब से केन्द्र और विभिन्न राज्यों में भाजपा की सरकार आई है वह हिन्दुत्व के एजेण्डे पर काम करती है ।

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Supreem Court यू.पी. में तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ साफ-साफ 80 और 20 की बात करते हैं । अर्थात उन्हें 20त्न मुस्लिम वोटों की दरकार नहीं है । अस्सी प्रतिशत हिन्दू वोटों से जीतेगी । यह भी सत्य है कि उत्तर प्रदेश के मंत्री परिषद में मात्र एक मुस्लिम सदस्य है, वह भी पसमांदा अन्सारी है शायद शिया है । वह न तो विधानसभा का सदस्य है, न विधान परिषद का, अर्थात् उसका कार्यकाल मात्र छ: महीने रहेगा । केन्द्र के मंत्रिमण्डल में कोई मुसलमान नहीं है । भाजपा का कोई सांसद मुसलमान नहीं है ।

असल प्रश्न है कि यदि अन्य धर्म वालों को उनके धर्म या प्रथा के अनुसार पहनने में छूट है तो फिर मुस्लिम लड़कियों को हिजाब क्यों नहीं पहने देते ?

Supreem Court  हिन्दू लड़कियां चूड़ी पहनती हैं । विवाहित हिन्दू छात्राएं मांग भरकर आती हैं, पैरों में बिछवे पहनती हैं । ईसाई छात्र-छात्राएं क्रॉस लगातीं हैं । सिख लडक़े पगड़ी पहन कर आते हैं । सिख लडक़े-लड़कियॉं कड़ा भी पहनती हैं । अनेक छात्र राम नामी चादर औढ़ कर आते हैं ।

कुछ हिन्दू उच्च जाति के लडक़े जनेऊ पहनते हैं । बहुत से छात्र नेता कॉलेज की ड्रेस कोड का पालन नहीं करते । फिर मुस्लिम लड़कियों को ही हिजाब पहनने से क्यों रोका जाता है ?

Supreem Court कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष के वकील से पूछा कि क्या इस्लाम में हिजाब धर्म का अनिवार्य हिस्सा है । असल में इस्लाम के प्रमुख पॉंच सिद्धांतों हैं :- नमाज़, हज़, रोज़ा, जक़ात और ईमान । न्यायमूर्ति अहमद गुप्ता और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया ने पूछा कि सरकार जो हिजाब का विरोध कर रही है, उसका कहना है कि इस्लाम के पॉंच सिद्धांतों का पालन भी अनिवार्य नहीं है, जो इनका पूरी तरह से पालन नहीं करते, वे भी मुसलमान हैं ।

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Supreem Court  इस पर वादी फातिमा बुशरा के वकील मोहम्मद निजामउद्दीन पाशा का कहना था कि यद्यपि यह पांच सिद्धांतों का पालन करना चाहिये पर न करने वाले को गैर इस्लामी नहीं कहा जाता । इस वकील का कहना था कि जब सिख धर्म में पॉंच प्रकार कच्छा, कड़ा, केश, कंघा और कृपाण आवश्यक है वैसे ही इस्लाम में पॉंच सिद्धांत – नमाज़, हज़, रोज़ा, जक़ात और ईमान इस्लाम धर्म के मेरुदण्ड हैं । इसके अलावा वकील का कहना था कि सिख धर्म मात्र 500 साल पुराना है जबकि इस्लाम 1400 साल पुराना है ।

कर्नाटक सरकार के वकील से जब चुभते प्रश्न पूछे गए तो उसका कहना था कि हमने हिजाब पर रोक नहीं लगाई है मात्र कॉलेज के ड्रेस कोड का पालन करने के लिए कहा है ।

परन्तु फातिमा के वकील का कहना था कि जब सिख छात्रों को पगड़ी पहनने पर रोक नहीं है तो फिर मुस्लिम छात्राओं को हिजाब पहनने पर रोक नहीं होनी चाहिए । वैसे भी यदि छात्राएं ढक कर आएंगे तो उनसे छेड़छाड़ भी नहीं हो पायेगी अन्यथा शिक्षण संस्थानों में यौन उत्पीडऩ के मामले बढ़ते जा रहे हैं ।

पाशा का कहना था कि यदि इस्लाम के पॉंच सिद्धांत अनिवार्य नहीं हैं तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह गैर जरूरी हैं । पाशा का यह भी कहना था कि कर्नाटक हाईकोर्ट ने भ्रम वस इन पॉंच सिद्धांतों को वैकल्पिक कह दिया जो सत्य नहीं है । पाशा ने यह भी कहा कि इस्लाम के अनुसार वह दूसरे धर्मों की आचरण संहिता में हस्तक्षेप नहीं करता और उन्हें इस धर्म की विशेषता बतलाता है ।

असल में सुप्रीम कोर्ट की खण्डपीठ ने यह मामला लम्बा चलने वाला है । असल प्रश्न यह है कि क्या मुसलमान इस देश में दो नम्बर के नागरिक हैं ? केन्द्र की सरकार सबका विकास, सबका विश्वास, सबका साथ, सबका प्रयास में सबका का क्या मतलब लगाती है, वह हिन्दू संगठनों के कार्यकलापों से ज्ञात होता है । आज बहुत खतरनाक खेल खेला जा रहा है – देश की गंगा जमुनी संस्कृति में जहर घोला जा रहा है ।

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