Shrimad Bhagwatacharya Acharya Rajendra : आचार्य राजेंद्र शर्मा के द्वारा महासमुंद जिले के जलकी ग्राम पंचायत में श्रीमद् भागवत महापुराण कथा का शुभारंभ भव्य कलश यात्रा के साथ किया गया

Shrimad Bhagwatacharya Acharya Rajendra : आचार्य राजेंद्र शर्मा के द्वारा महासमुंद जिले के जलकी ग्राम पंचायत में श्रीमद् भागवत महापुराण कथा का शुभारंभ भव्य कलश यात्रा के साथ किया गया

Shrimad Bhagwatacharya Acharya Rajendra : आचार्य राजेंद्र शर्मा के द्वारा महासमुंद जिले के जलकी ग्राम पंचायत में श्रीमद् भागवत महापुराण कथा का शुभारंभ भव्य कलश यात्रा के साथ किया गया

Shrimad Bhagwatacharya Acharya Rajendra : सक्ती ग्राम पंचायत जलकी में छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध श्रीमद् भागवताचार्य आचार्य राजेंद्र शर्मा के द्वारा महासमुंद जिले के जलकी ग्राम पंचायत में श्रीमद् भागवत महापुराण कथा का शुभारंभ भव्य कलश यात्रा के साथ किया गया ।

Shrimad Bhagwatacharya Acharya Rajendra : श्रीमद् भागवत कथा के प्रथम दिवस ग्राम के श्रद्धालु महिलाओं एवं पुरुषों ने साथ ही युवाओं एवं किशोरियों ने बड़े उत्साह के साथ कलश धारण कर एवं ध्वज हाथ में थाम कर कलश यात्रा में

सहभागी होते हुए ग्राम देवताओं एवं जलाशय में जाकर वरुण भगवान का आवाहन एवं पूजन किया । आचार्यों के द्वारा वेद मंत्रोच्चार के साथ वैदियों की प्रतिष्ठा एवं पुराण की प्रतिष्ठा व्यास पीठ पर की गई ।


छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध भागवताचार्य राजेंद्र जी महाराज द्वारा प्रथम दिन भागवत महात्म्य का विस्तार से वर्णन कर बताया गया कि श्रीमद् भागवत एक अध्यात्म दीप है जो भाग्योदय होने पर ही किसी मनुष्य को प्राप्त

होता है , यह व्यक्ति के धनवान होने अथवा केवल पुरुषार्थी होने के कारण नहीं होता , बल्कि मन को संकल्पित कर पिछले जन्मों के पुण्य अर्जित होने पर भागवत मिलता है । श्रीमद्भागवत रूपी सत्कर्म के

पुण्य लाभ से सद्गति और मोक्ष की प्राप्ति होती है , इसी सत्कर्म को नारद जी के द्वारा करने पर भक्ति देवी के दोनों पुत्रों ज्ञान और वैराग्य को तरुण अवस्था मिली थी । भयानक प्रेत योनि में पड़ा हुआ धुंधकारी नाम

का युवा जो अपने माता पिता को अपमानित कर दुख दिया जिसके कारण पिता घर छोड़कर चले गए और मां धुंधली कुएं में कूदकर प्राण दे दी । धुंधकारी यह कुसंस्कार का प्रतीक था इसकी हत्या वेश्याओं ने कर

दिया , अकाल मृत्यु होने के कारण यह भयानक प्रेत बन गया जिसकी सद्गति के लिए गोकर्ण जी महाराज ने श्रीमद् भागवत रूपी सत्कर्म ही किया था और धुंधकारी को सद्गति मिली ।

भागवत की कथा केवल कथा ही नहीं है इसे आत्मसात कर मनुष्य अपने जीवन में नई उमंग के साथ भक्ति का आश्रय लेकर अपने जीवन को कृतकृत्य कर सकता है । आचार्य राजेंद्र जी महाराज ने बताया कि

भागवत रूपी सत्कर्म यह देवताओं के लिए भी दुर्लभ है , आज तक किसी भी देवलोक में भागवत की कथा हुई नहीं है यह तो प्रथम बार हमारे भारत देश की पुण्य धरा पर भगवान श्री कृष्ण के स्व लोक गमन

उपरांत 30 वे वर्ष बीतने पर हुई थी जिसे आज हम सब शुक्रताल के नाम से जानते हैं l भागवत गृहस्थ मैं रहने वाले परिवार और युवाओं की कथा है , इसके प्रथम वक्ता भी 16 साल के हैं । कथा हमारे जीवन की

व्यथा को हर लेती है , इसलिए वेद रूपी कल्पवृक्ष पर लगे हुए श्रीमद्भागवत रूपी फल का रसपान बार बार करना चाहिए ।
प्रथम दिवस के पूरे कार्यक्रम में सैकड़ों श्रोताओं ने बड़े उत्साह से भाग लिया इस अवसर पर कपिल सेन , तोमन , भानु , भूपेश , तन्मय ,जमुना लक्ष्मी नारायण , शकुंतला संतोष कुमार , महेश्वरी सेन ,

सुमित्राचौधरी , एवं अनेक श्रोता गण उपस्थित थे । श्रीमद्भागवत यज्ञ महोत्सव के आयोजक  ममता भुवन लाल सेन द्वारा अधिक अधिक संख्या में कथा श्रवण करने का आग्रह किया गया है

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