Repeated failure बार-बार की नाकामी

Repeated failure

 

Repeated failure भारत सरकार ने तीन महीने पहले सिंगल यूज प्लास्टिक के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, लेकिन इसके इस्तेमाल में बीते तीन महीनों में कोई फर्क नहीं पड़ा है।
ऐसा लगता है कि सिंगल यूज प्लास्टिक (एसयूपी) के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश फिर नाकाम रही है।

Repeated failure  दरअसल, इस बात को जानने के लिए हमें किसी अध्ययन की जरूरत भी नहीं है। बाजारों में जाकर कोई भी खुद देख सकता है कि एसयूपी के इस्तेमाल में बीते तीन महीनों में कोई फर्क नहीं पड़ा है। भारत सरकार ने तीन महीने पहले एसयूपी के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, ताकि प्लास्टिक कचरे और बढ़ते प्रदूषण पर लगाम लग सके।

Repeated failure ये प्रतिबंध एसयूपी से बनी 21 चीजों पर लगाए गए थे जिनमें प्लेट्स, बर्तन, स्ट्रॉ, पैकेजिंग फिल्म और सिगरेट के पैकेट शामिल हैं। प्रतिबंध केंद्र सरकार की ओर से लागू किए गए, लेकिन इन्हें लागू कराने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों और उनके प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड्स पर डाली गई है। स्पष्ट है कि राज्य समुचित कार्रवाई नहीं कर रहे हैं। पाबंदी को पूरी तरह से लागू कराने के लिए संभवत: राज्यों के पास कोई प्रभावी रणनीति ही नहीं है। भारत में हर साल करीब एक करोड़ 40 लाख टन प्लास्टिक का इस्तेमाल होता है। पिछले साल एक सरकारी समिति ने एसयूपी से बनी चीजों को उनकी उपयोगिता और उनके पर्यावरणीय प्रभाव के सूचकांक के आधार पर चिह्नित किया, जिन्हें प्रतिबंधित किया जाना था।

Repeated failure इस तरह के प्लास्टिक भारत में निकलने वाले कुल प्लास्टिक कचरे का महज 2-3 फीसद ही है। विशेषज्ञों ने तभी चेतावनी दी थी कि यह प्रतिबंध लागू करना कोई आसान काम नहीं है। दरअसल, इन प्रतिबंधित वस्तुओं की मांग को पूरा करने के लिए सस्ते विकल्पों की जरूरत है, जिन्हें उपलब्ध कराने का कोई इंतजाम नहीं किया गया है।

Repeated failure  इसके लिए पर्याप्त मात्रा में निवेश भी नहीं हुआ है। भारत में प्रति व्यक्ति प्लास्टिक की खपत 11 किलो ग्राम प्रति वर्ष है और यह दुनिया में अभी भी सबसे सबसे कम है। दुनिया भर में प्रति वर्ष प्रति व्यक्ति प्लास्टिक की खपत 28 किलो है। खुदरा कारोबारी एसयूपी का सबसे ज्यादा इस्तेमाल करते हैँ। ऐसा वो इसलिए करते हैं कि ग्राहक इसकी मांग करते हैँ। अगर कारोबारी अपने पास एसयूपी के बैग ना करें, तो उसका असर उनकी बिक्री पर पड़ता है। इसलिए पिछले मौकों की तरह इस बार भी ये रोक नाकाम साबित हो रही है।

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