Politics सिक्के का एक पहलू
Politics किरन रिजुजू ने न्यायपालिका की जो आलोचना की उसमें दम है। लेकिन आज हम जिस माहौल में हैं, उसमें रिजुजू की टिप्पणियों से समाज में आशंकाएं पैदा हुई हों, तो वह भी निराधार नहीं है।
कानून मंत्री किरन रिजुजू ने जजों पर जो टिप्पणी की है, वह बेबुनियाद नहीं है।
Politics उन्होंने मुख्य रूप से दो पहलुओं की आलोचना की। उनका पहला निशाना कॉलेजियम सिस्टम था, जिसके तहत उन्होंने कहा कि दुनिया में कभी भी ऐसी व्यवस्था नहीं है, जहां जजों की नियुक्ति में कार्यपालिका की बिल्कुल भूमिका ना रहती हो। इसी सिलसिले में उन्होंने कॉलेजियम सिस्टम के कारण जज अपना समय न्याय देने से ज्यादा ट्रांसफर-पोस्टिंग की चर्चाओं में गुजारते हैं। उनका दूसरा निशाना जजों की जुबानी टिप्पणियां थीं। इस बारे में उन्होंने समाज में मौजूद इस शिकायत को दोहराया कि ऐसी टिप्पणियों से इससे समाज में गलत धारणाएं बनती हैं।
Politics इन दोनों आलोचनाओं में दम है। लेकिन आज हम जिस माहौल में हैं, उसमें रिजुजू की टिप्पणियों से समाज में आशंकाएं पैदा हुई हों, तो वह भी निराधार नहीं है। इसलिए कि समाज के एक बड़े तबके में यह गहरी शिकायत है कि वर्तमान सरकार के शासनकाल में सिस्टम को कैप्चर करने की एक परिघटना आगे बढ़ी है। बल्कि एक धारणा तो यह है कि इस परिघटना के कारण न्यायपालिका पहले ही अपनी धार खो चुकी है और अक्सर वह नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा के अपने संवैधानिक दायित्वों को निभाने में कमजोर दिखी है।
Politics न्यायपालिका की यही भूमिका है, जिसकी वजह से नागरिकों का एक बड़ा वर्ग सरकार की मंशा पर शक रखने के बावजूद आज शायद उत्साह से न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए आगे आकर खड़ा ना हो। ये शिकवा वाजिब है कि जब न्यायपालिका नागरिकों की स्वतंत्रता के लिए आगे नहीं आई है, तो आखिर नागरिक उसके पक्ष में क्यों आंदोलित हों? अब ये महज संयोग भी हो सकता है, लेकिन इस ओर बरबस ध्यान गया है कि जिस रोज रिजुजू ने ये बातें कहीं, उसी दिन पंजाब और हरियाणा बार एसोसिएशन के दफ्तर पर एनआईए का छापा पड़ा।
Politics वहां वकीलों ने कहा है कि उनके दफ्तर पर इस तरह छापा पड़ेगा, ये बात उनकी कल्पना से भी बाहर थी। मगर भारत में आज ऐसी अकल्पनीय बातों का पूरा सिलसिला तैयार हो चुका है। नतीजा यह है कि सत्ता पक्ष का अर्धसत्य अक्सर पूरे सत्य पर भारी पड़ जाता है।