Pola Special : छत्तीसगढ़ पारम्परिक त्यौहार पोला स्पेशल…होती है बैलों की पूजा, बनते है तरह तरह के पकवान… जाने और क्या रहता है खास

Pola Special : छत्तीसगढ़ पारम्परिक त्यौहार पोला स्पेशल…होती है बैलों की पूजा, बनते है तरह तरह के पकवान… जाने और क्या रहता है खास

 

रायपुर। छत्तीसगढ़ धान की खेती यहां की प्रमुख फसल है। यहीं कारण है कि प्रदेशवासी खेती किसानी का काम शुरू करने से पहले हल की पूजा करते हैं जिसके बाद ही अपने कृषि काम में जुट जाते हैं।

वहीं बैलों की पूजा भी पूरे विधि विधान से करते हैं। जिसमें राज्य की अलग संस्कृति की झलक दिखाई देती है।

इसी पर्व को ही छत्तीसगढ़ में पोरा पर्व भी कहते हैं। दरअसल भाद्रपद मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाने वाला यह पोला त्योहार, खरीफ फसल के द्वितीय चरण का कार्य पूरा हो जाने म नाते हैं।
फसलों के बढ़ने की खुशी में किसानों द्वारा बैलों की पूजन कर कृतज्ञता दर्शाने के लिए भी यह पर्व मनाया जाता है।
दरअसल पोला पर्व कृषि आधारित पर्व है, लेकिन पोला पर्व की धूम शहर से लेकर गांव तक रहती है। जगह-जगह बैलों की पूजा-अर्चना होती है। गांव के किसान भाई सुबह से ही बैलों को नहला-धुलाकर सजाते हैं
, फिर हर घर में उनकी विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है। इसके बाद घरों में बने पकवान भी बैलों को खिलाए जाते हैं। कई गांवों में इस अवसर पर बैल दौड़ का भी आयोजन किया जाता है।

इस दिन मिट्टी और लकड़ी से बने बैल चलाने की भी परंपरा है। इसके अलावा मिट्टी के अन्य खिलौनों की बच्चों द्वारा खेला जाता है। मिट्टी या लकड़ी के बने बैलों से खेलकर बेटे कृषि कार्य तथा बेटियां रसोईघर व गृहस्थी की संस्कृति व परंपरा को समझते हैं। बैल के पैरों में चक्के लगाकर सुसज्जित कर उस के द्वारा खेती के कार्य समझाने का प्रयास किया जाता है।

छत्तीसगढ़ में इस लोक पर्व पर घरों में ठेठरी, खुरमी, चौसेला, खीर, पूड़ी, बरा, मुरकू, भजिया, मूठिया, गुजिया, तसमई जैसे कई छत्तीसगढ़ी पकवान बनाए जाते हैं। इन पकवानों को सबसे पहले बैलों की पूजा कर भोग लगाया जाता है। इसके बाद घर के सदस्य प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।

वहीं शाम के वक्त गांव की युवतियां अपनी सहेलियों के साथ गांव के बाहर मैदान या चौराहों पर (जहां नंदी बैल या साहडा देव की प्रतिमा स्थापित रहती है) पोरा पटकने जाते हैं। इस परंपरा मे सभी अपने-अपने घरों से एक-एक मिट्टी के खिलौने को एक निर्धारित स्थान पर पटककर-फोड़ते हैं। जो कि नदी बैल के प्रति आस्था प्रकट करने की परंपरा है। युवा लोग कबड्डी, खोखो आदि खेलते मनोरंजन करते हैं।

इस दिन खेती की नहीं होती अनुमति

पोला पर्व की पूर्व रात्रि को गर्भ पूजन किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन अन्न माता गर्भ धारण करती है। अर्थात धान के पौधों में दुध भरता है। इसी कारण पोला के दिन किसी को भी खेतों में जाने की अनुमति नहीं होती। दूसरी ओर पर्व के दिन कई तरह के खेलों का भी आयोजन किया जाता है। जिसमें खो—खो, कबड्डी जैसे अन्य प्रचलित खेल खेले जाते हैं। इन खेलों को खेलने से लोगों में पर्व को लेकर अलग ही उत्साह नजर आता है।

मान्यताएं
रात मे जब गांव के सब लोग सो जाते है तब गांव का पुजारी-बैगा, मुखिया तथा कुछ पुरुष सहयोगियों के साथ अर्धरात्रि को गांव तथा गांव के बाहर सीमा क्षेत्र के कोने कोने मे प्रतिष्ठित सभी देवी देवताओं के पास जा-जाकर विशेष पूजा आराधना करते हैं। यह पूजन प्रक्रिया रात भर चलती है। वहीं दूसरे दिन बैलों की पूजा किसान भाई कर उत्साह के साथ पर्व मनाते हैं।

सीएम हाउस में पर्व की धूम

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रदेशवासियों को पोला पर्व की शुभकामनाएं देते हुए इस भी सीएम हाउस में कार्यक्रम आयोजित किए हैं। जहां हर साल की तरह इस बार भी सीएम हाउस में बैलों की पूरे विधि विधान से पूजा की जाएगी। वहीं कई पकवान भी बनाए गए हैं। मुख्यमंत्री सहित प्रदेश के कैबिनेट मंत्री भी इस कार्यक्रम में शामिल होंगे।

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