(Love for India) पेले को भारत से था अथाह प्यार

(Love for India)

डॉ. आर.के. सिन्हा

(Love for India) पेले को भारत से था अथाह प्यार

(Love for India) पेले के निधन से सारी दुनिया उदास है! उन्होंने अपने चाहने वालों को आनंद के अनिगनत अवसर दिए! पेले के चाहने वाले कहते हैं कि वे महानतम थे।

(Love for India) वे तीन बार जीती फीफा वर्ल्ड कप विजेता ब्राजील टीम के सदस्य रहे। उन्हें साल 2000 में ‘फीफा फ्लेयर आफ द सेंचुरी’ का भी सम्मान मिला। पर क्या पेले को मुख्य रूप से इसी आधार पर सर्वकालिक महानतम खिलाड़ी माना जाए क्योंकि वे तीन बार जीती ब्राजील टीम में सदस्य थे? वे 1958 में ब्राजील की टीम में थे।

(Love for India) वे तब मात्र 17 साल के थे। वैसे वे 1962 और 1966 के र्वल्ड कप में चोटिल होने के कारण कोई खास जौहर नहीं दिखा सके थे। हां, 1970 के र्वल्ड कप में वे अपने पीक पर थे। पर उस टीम के बारे में कहा जाता है कि वो र्वल्ड कप में अब तक खेली महानतम टीम थी। वो टीम वैसे कहा जाए तो पेले के बिना भी र्वल्ड कप जीतने की कुव्वत रखती थी। उस टीम में गर्सन, टोस्टओ, रेविलिनिओ और जेरजिन्हो जैसे महान खिलाड़ी थे।

(Love for India) एक बात समझी जाए कि फुटबॉल का मतलब बड़ा शॉट खेलना कतई नहीं है। बड़ा खिलाड़ी तो वो ही होता है, जो ड्रिबलिंग करने में माहरि होता है। उसे ही दर्शक देखने जाते हैं। इस लिहाज से पेले बेजोड़ रहे हैं।

खेल के मैदान में पेले के दोनों पैर चलते थे। उनका हेड शॉट भी बेहतरीन होता था। पेले के 1970 में इटली के खिलाफ फाइनल में हेडर से किए गोल को जरा याद करें। उस गोल के चित्र अब भी यदा-कदा देखने को मिल जाते हैं। पेले के बारे में विरोधी टीम को पता ही नहीं चलता था कि वे कब अपनी पोजीशन चेंज कर लेंगे। वे मैदान में हर जगह मौजूद रहते थे। पेले खुद गोल करने के लालच में नहीं रहते थे।

वे साथी खिलाडिय़ों को गोल करने के बेहतरीन अवसर भी देते थे। अगर बात मैदान से हटकर करें तो पेले फुटबॉल के मैदान को छोडऩे के बाद सामाजिक कार्यों से जुड़ गए। ब्राजील में करप्शन से लेकर गरीबी के खिलाफ लड़ते रहे। पेले को 1992 में पर्यावरण के लिए संयुक्त राष्ट्र का राजदूत नियुक्त किया गया।

उन्हें 1995 में खेलों की दुनिया में विशेष योगदान के लिए यूनेस्को सद्भावना राजदूत बनाया। पेले ने ब्राजीली फुटबॉल में भ्रष्टाचार को कम करने के लिए एक कानून प्रस्तावित किया, जिसे ‘पेले कानून’ के नाम से जाना जाता है। माराडोना ने पेले की तरह का कोई सामाजिक आंदोलन से अपने को नहीं जोड़ा। जहां तक भारत की बात है, पेले यहां 1977 में कोलकाता (तब कलकता में) में एक प्रदशर्नी मैच खेलने आए थे। वे तब कॉसमोस क्लब से जुड़े हुए थे। कॉसमोस का एक मैच ईस्ट बंगाल के साथ रखा गया था।

मुकाबला बराबर रहा था। बंगाली भदल्रोक पेले को खेलता देखकर अभिभूत थे। पेले का पीक तब तक नहीं रहा था। पेले ने कभी अपने चमत्कारी खेल का प्रदर्शन दिल्ली में नहीं किया! पर वे साल 2015 में दिल्ली आए थे। वे सुब्रत कप के फाइनल मैच के मुख्य अतिथि थे। पेले ने फाइनल मैच को देखा था।

उन्होंने फाइनल मैच के बाद एक खुली जीप पर सारे स्टेडियम का चक्कर लगाकर दर्शकों का अभिवादन स्वीकार किया था। पेले ने वहां पर मौजूद दशर्कों को संबोधित करते हुए कहा था, ‘मैं सुब्रतो कप में हिस्सा बनकर बहुत खुश हूं। मुझे भारत के युवा फुटबॉल खिलाडिय़ों से मिलकर बहुत अच्छा लगा।’

वे उम्रदराज होने पर भी बिल्कुल फिट लग रहे थे। भारत महिला फुटबॉल टीम के कोच रहे अनादि बरूआ को याद है वह दिन जब पेले को देखने अंबेडकर स्टेडियम में सभी उम्र के हजारों फुटबॉल प्रेमी पहुंचे थे। हालांकि सुरक्षा कारणों के चलते वे किसी को ऑटोग्राफ नहीं दे सके थे!

(Love for India) पेले को 2015 में दिल्ली में लाने का श्रेय भारतीय वायुसेना को ही जाता है! पेले ने फाइनल को देखने आए दर्शकों को संबोधित करते हुए कहा था, ‘मैं भारतीय वायुसेना की कड़ी मेहनत से प्रभावित हूं।’

सुब्रतो कप का सफल आयोजन भारतीय वायुसेना ही करती है। सुब्रतो मुखर्जी भारतीय एयरफोर्स के पहले प्रमुख थे। उनको फादर ऑफ द इंडियन एयर फोर्स कहा जाता है।

सुब्रतो मुखर्जी बंगाल के एक प्रमुख परिवार से था। पेले को दुनिया सर्वकालिक महान खिलाडिय़ों में से एक रूप में याद रखेगी! उनका कद इतना ऊंचा हो गया था कि वे अपने जीवनकाल में ही किसी दंतकथा का पात्र बन गए थे!

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