Opposition benefits from ED : अब ईडी से विपक्ष को फायदा !

Opposition benefits from ED :

हरिशंकर व्यास

Opposition benefits from ED : अब ईडी से विपक्ष को फायदा !

Opposition benefits from ED :
Opposition benefits from ED : अब ईडी से विपक्ष को फायदा !

Opposition benefits from ED : वैसे ही जैसे 1975 की इमरजेंसी के वक्त मीसा, कोफेपोसा से हुआ था। तब इंदिरा गांधी को गतलफहमी थी कि सीआईए साजिश और राजद्रोह जैसे कानूनों से बदनामी बनवा कर विपक्ष को आईसीयू में पहुंचा देंगे। वही इतिहास रिपीट होता हुआ है। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी मनी लॉन्डरिंग का कोफेपोसा कानून बनाया था।

Opposition benefits from ED : उसके मनमाने दुरूपयोग से विरोधियों को आतंकित किया। डिफेंस ऑफ इंडिया रूल को वापिस जिंदा करवा कर आलोचकों को जेल में डाला। मीसा कानून को बनवा कर नेताओं को जेल में डाला। इतिहास का सत्य है कि इन कानूनों के खिलाफ कम्युनिस्ट ज्योतिर्मय बसु, जनसंघी अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर स्वतंत्र-मनोनीत सांसद फ्रैंक एंथोनी सभी एक साथ वैसे ही बोलते हुए थे जैसे इस सप्ताह कांग्रेस, तृणमूल और आप सहित 17 पार्टियों ने सुप्रीम कोर्ट को साझा पत्र लिखा है।

Opposition benefits from ED : तब भी सुप्रीम कोर्ट कलंकित हुआ था। तब पांच जजों की बेंच ने हेबियस कॉर्पस मतलब मनुष्य याकि देश के नागरिक के बेसिक अधिकार को खारिज करके कोर्ट ने कार्यपालिका की इस गुंडागर्दी को वाजिब बताया था कि वह किसी को भी बिना कारण बताए जेल में डाल सकती है।

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Opposition benefits from ED : भारत का और खास कर हिंदुओं, हिंदू राजाओं तथा प्रधानमंत्रियों का सत्य है जो वे इतिहास की चालीस-पचास साल पहले की सच्चाइयों को भी याद नहीं रखते। पचहतर साल पहले के देश विभाजन के कारणों की समझ भी भुला बैठते हैं। सौ साल पहले के अंग्रेजों के बनाए रॉलेट एक्ट (मीसा, राजद्रोह, कोफेपोसा, ईडी जैसा ही लोगों को डराने, भारतीयों को गुलाम बनाने, विरोध और मनुष्य गरिमा को कुचल के उनके साथ जानवर जैसे सलूक करने वाले) को याद नहीं रखते हैं।

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Opposition benefits from ED : ध्यान रहे रॉलेट एक्ट के खिलाफ भी गांधी, जिन्ना, हिंदुवादी, क्रांतिकारियों, वामपथियों ने एकजुट विरोध-प्रदर्शन किया था। इमरजेंसी के वक्त मीसा-कोफेपोसा का भी देश की विपक्षी पार्टियों का मुखर विरोध था तो जनता में मन ही मन धारणा बनी थी कि इंदिरा गांधी भले बांग्लादेश बनवाने वाली दुर्गा व अनुशासन बनाने वाली सख्त नेता हों लेकिन वह अत्यचारी हैं। वे विरोधियों को कानून के नाम पर कुचल डाल रही हैं इसलिए मौका आने दो देख लेंगे।

Opposition benefits from ED : तब कल्पना नहीं थी कि इंदिरा गांधी कभी हार सकती हैं। कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो सकता है। लेकिन विरोधी नेता जेलों में और जेल से बाहर इंदिरा सरकार की ज्यादतियों से सुलगते रहे तो ज्योंहि चुनाव का मौका आया और सब एकजुट हो गए। फिर जो हुआ वह इतिहास की सच्चाई है।

Opposition benefits from ED : तभी विपक्ष की सभी 17 पार्टियों का ईडी के मामले में एक पत्र पर दस्तखत करना नई शुरुआत है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने दो हिस्सों में विभाजित भारत के जनमानस के एक हिस्से याकि मोदी-भाजपा विरोधी मानस को न केवल इमरजेंसी के सुप्रीम कोर्ट के फैसले की तरह झिंझोड़ा है, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार में भी वैसी ही हवा भरी है, जैसे इंदिरा गांधी की मनमानी की बनी थी।

Opposition benefits from ED : इसलिए ईडी नाम की संस्था, उसकी छापेमारी, उसकी गिरफ्तारियां अब कानूनी कार्रवाई का ठप्पा नहीं हैं, बल्कि मोदी सरकार द्वारा विरोध-विपक्ष-आलोचना को कुचलने का कोफेपोसा है, मीसा कानून है, अंग्रेजों का रॉलेट एक्ट है।

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Opposition benefits from ED : भले सोनिया गांधी-राहुल गांधी को सरकार जेल में डाले, केजरीवाल या उद्धव ठाकरे या किसी को भी जेल में डाले और सोशल मीडिया से (इमरजेंसी में भी ऐसा प्रोपेंगेंडा था) से कितना ही उन्हें चोर-भ्रष्ट बताए मगर भारत की साठ या पचपन प्रतिशत गैर-भाजपाई आबादी के दिमाग में जेल में बंद नेताओं को लेकर अब वैसे ही सोचा जाएगा जैसे इमरजेंसी में जेल में बंद नेताओं व सलाखों के पीछे जॉर्ज फर्नांडीज को लेकर सोचा जाता था। मतलब ज्यादती है और विपक्ष को मारा जा रहा है।

उस नाते आजादी के पचहतर साल के मुकाम के भारत राष्ट्र-राज्य के लिए खतरे की बात यह है कि एक तरफ हिंदू बनाम मुस्लिम के बिखराव में दिल-दिमाग जहरीले हुए पड़े हैं वहीं ईडी, राजद्रोह, आईटी कानूनों और बुलडोजरों से अगले दो साल या दस सालों में लोगों के दिल-दिमाग में लगातार खलबलाहट खौलती हुई होगी। नतीजतन जब भी सीमा पर घात लगाए चीन और बरबादी की और बढ़ती आर्थिकी व हिंदू बनाम मुस्लिम का रियल विस्फोट होगा तब देश का भगवान ही मालिक होगा! ईडी से विपक्ष सुलेगा, साझा बनेगा, आर-पार का चुनावी घमासान होगा लेकिन फिलहाल वह न समर्थ होता दिखता है और न देश की सुरक्षा, सामाजिक सौहार्दता, साझा उद्देश्यों का साझा एकजुट राष्ट्र संकल्प बनाता लगता है। बावजूद इसके ईडी से विपक्ष को मकसद मिल रहा है, लोगों की सहानुभूति (गैर-भाजपाई आबादी भी देश की हकीकत है) मिल रही है और नरेंद्र मोदी सरकार उन कानूनों की पर्याय हो गई है, जो भारत के कलंक हैं। क्या मैं गलत हूं?

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