Mulayamsinhji and Atalji वेद प्रताप वैदिक
Mulayamsinhji and Atalji मुलायमसिंहजी और अटलजी से मेरा 55-60 साल पुराना संबंध रहा है। मेरे पिताजी श्री जगदीशप्रसाद वैदिक अटलजी से भी ज्यादा घनघोर जनसंघी थे। जनसंघ और संघ के सारे अधिकारी इंदौर में मेरे घर को अपना ठिकाना ही समझते थे। लेकिन 1962 में इंदौर के छात्र नेता के तौर पर मैंने डॉ. राममनोहर लोहिया को अपने इंदौर क्रिश्चियन कॉलेज में भाषण के लिए बुलवा लिया।
Mulayamsinhji and Atalji उनके भाषण का प्रभाव मुझ पर इतना गहरा हुआ कि मैं उनके अंग्रेजी हटाओ आंदोलन से जुड़ गया। मैं किसी राजनीतिक दल का कभी सदस्य नहीं बना लेकिन हिंदी आंदोलन में 12 साल की उम्र में ही पहली बार गिरफ्तार हुआ। उधर उप्र में मुलायमसिंह 15-16 की उम्र में गिरफ्तार हुए। जब हम मिले तो दोनों का संबंध अत्यंत घनिष्ट हो गया।
Mulayamsinhji and Atalji अब से लगभग 20 साल पहले 28 फरवरी 2002 की बात है7 दिल्ली का हैदराबाद हाउस, जहां प्रधानमंत्री की दावतें होती हैं। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजई के सम्मान में दावत थी। करजई के पिता अहद साहब काबुल में मेरे मित्र बन गए थे। जैसे ही अतिथिगण भोज-कक्ष में घुसे, प्रधानमंत्री से आमना-सामना हुआ। मैंने पूछा ‘करजई’ को हमने क्या-क्या दिया? वे बोले ‘ये बात तो बाद में हो जाएगी, पहले यह बताइए कि लखनऊ में क्या किया जाए?’
Mulayamsinhji and Atalji उन दिनों यह असमंजस बना हुआ था कि उत्तरप्रदेश में मुख्यमंत्री किसे बनाया जाए? मैंने कहा ‘मुलायम सिंहजी को।’ अटलजी ने कहा- ‘ठीक है, पहले प्रेम से भोजन कीजिए और फिर बताइए।’ भोजन के बाद सभी अतिथि विदा होने के लिए द्वार के पास नीचे जमा हो गये। प्रधानमंत्री अटलजी ने फिर पूछा ‘तो क्या सोचा आपने?’ मैंने कहा- “तर्क वही है, जो आपके लिए दिया गया था। सबसे बड़ी पार्टी के नेता को राष्ट्रपति ने बुला लिया, प्रधानमंत्री की शपथ के लिए। लखनऊ में मुलायमसिंह की समाजवादी पार्टी भी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। मुख्यमंत्री भी उन्हें ही बनाया जाना चाहिए।”
Mulayamsinhji and Atalji इतने में पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र गुजराल हम दोनों के एक दम निकट आ गए। अटल जी ने गुजराल साहब से पूछा- ‘आपकी क्या राय है?’ उन्होंने कहा- ‘वैदिकजी जो कह रहे हैं, वह बिल्कुल सही है।’ अटलजी ने तपाक से कहा- ‘सही हो सकता है लेकिन आप दोनों मुलायमसिंह का समर्थन इसलिए कर रहे हैं कि वे आप दोनों के दोस्त हैं।’ इस चुटकी पर सब हंस दिए। यह वार्तालाप अलग-बगल खड़े कई मंत्री सुन रहे थे।
Mulayamsinhji and Atalji उनमें से एक ने कहा- ‘भगवन! प्रधानमंत्री जी को यह आप क्या सलाह दे रहे हैं?’ मुख्यमंत्री मुलायम पहले दिन ही हमें अंदर कर देंगे। उन्होंने शंकराचार्य को पकड़ लिया, वह हमें क्यों बख्शेंगे?’ मैंने कहा,- ‘यह जरुरी नहीं। यह भी संभव है कि अटलजी लखनऊ में मुलायमसिंह के गठबंधन को चलने दें और मुलायमसिंहजी दिल्ली में अटलजी के गठबंधन को चलने दें।’ अगर उसी समय यह बात मान ली जाती तो संवैधानिक परंपरा की रक्षा तो होती ही, डेढ़ साल तक भाजपा को बहुजन समाज पार्टी के कचरे को अपने कंधे पर नहीं ढोना पड़ता।