Martyr Veer Narayan Singh छत्तीसगढ़ के गरीब और आम जनता के लिए समर्पित थे शहीद वीर नारायण सिंह

Martyr Veer Narayan Singh

Martyr Veer Narayan Singh शहीद वीर नारायण सिंह के बलिदान दिवस पर नाटक और व्याख्यान का आयोजन

जनमंच पर नाटक “वह प्रथम पुरूष” का मंचन

 

Martyr Veer Narayan Singh अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ और आम जनता के हक के लिए शहीद हुए वीर नारायण सिंह

 

 

Martyr Veer Narayan Singh रायपुर। शहीद वीर नारायण सिंह के बलिदान दिवस पर छत्तीसगढ़ फ़िल्म एंड विज़ुअल आर्ट सोसाइटी की ओर से रविवार को जनमंच पर नाटक और व्याख्यान का आयोजन किया गया…इस अवसर पर डॉ देवेश दत्त मिश्र द्वारा लिखित “वह प्रथम पुरूष” का मंचन किया गया। जिसका निर्देशन छत्तीसगढ़  के प्रसिद्ध रंगकर्मी और नाट्य निर्देशिका रचना मिश्रा ने की।

इस अवसर पर सुप्रसिद्ध विचारक, लेखक और स्वतंत्रता आंदोलन से गहरा जुड़ाव रखने वाले डॉ सुशील त्रिवेदी छत्तीसगढ़ के स्वतंत्रता आंदोलन और शहीद वीर नारायण सिंह की जीवन यात्रा और उनकी शहादत पर व्याख्यान दिए। गौरतलब है की छत्तीसगढ़ की बिंझवार जनजातीय से आने वाले छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी शहीद वीर नारायण सिंह जिन्हें अंग्रेज़ी हुकूमत ने 10 दिसम्बर 1857 को रायपुर के जयस्तंभ चौक पर सरेआम फाँसी पर लटका कर  सजा-ए मौत दी थी। नाटक “वह प्रथम पुरुष” वीर नारायण सिंह के जीवन और उनके कार्यों पर आधारित है।

 

Martyr Veer Narayan Singh इस अवसर डॉ सुशील त्रिवेदी ने कहा कि आमतौर पर यह माना जाता है की स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई 1857 से शुरू हुई है लेकिन छत्तीसगढ़ में इससे पहले स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई शुरू हो गई थी। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की कई विशेषताएं हैं इसमें कई ऐसे लड़ाई भी लड़ी गई जो मजदूरों ने लड़ी थी।

 

उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान 1920 में मजदूर के द्वारा मजदूरों के हक के लिए लड़ी गई। दूसरी बड़ी घटना जो आज भी असाधारण है वह 1922 की घटना है जंगल सत्याग्रह, इस समय जल जंगल जमीन की बात की गई। इसमें आदिवासी महिला और पुरुष दोनों मिलकर इस आंदोलन में भाग लिए।

 

Martyr Veer Narayan Singh नाटक में दिखाया गया है कि उस दौर में वीर नारायण सिंह आम जनता और गरीबों के लिए किस प्रकार से समर्पित थे। यहां तक कि जब उस समय अकाल पड़ता है तो वीर नारायण सिंह अपने आवाम के लिए अपनी अनाज का खजाना सभी के लिए खोल देता है। जब उनका खजाना खत्म हो जाता है तो अपने क्षेत्र के साहूकारों, बनियों को गरीबों को अनाज देने के लिए अपील करता है। लेकिन साहूकार अपनी अनाज देने से इंकार कर देते हैं।

इससे  वीर नारायण को गरीबों की हालत देख बनिया की गोदाम लूटने का आदेश दे देते हैं इस तरह सभी गांव वाले बनिया की दुकान लूट लेते हैं। इसके बाद साहूकार अंग्रेजी हुकूमत के आगे गिड़गिड़ा कर उसपर मुकदमा चलवाता है और वीर नारायण सिंह को जेल करवाता है।
जेल में जाने के बाद कई कैदी आपस में मिलते हैं और वहां से अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आवाज उठाने का निर्णय लेते हैं सभी यह निर्णय करते हैं कि या तो आजादी या फिर फांसी का फंदा…

Martyr Veer Narayan Singh कुछ दिनों के बाद वीर नारायण सिंह और उनके साथी जेल तोड़कर निकल जाते हैं। इससे अंग्रेजी हुकूमत बौखला जाती है। और सभी को ढूंढ कर उन पर करवाई करने का आदेश दे देती है। इधर वीर नारायण सिंह अंग्रेजो के खिलाफ जंग का एलान कर सभी को इसमें शामिल होने का आग्रह करते हैं।

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यह सूचना आग की तरह गांव गांव पहुंच जाता है। और लोग एकजुट होकर अंग्रेजो के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं। इस प्रकार वीर नारायण सिंह और उनके साथी अंग्रेजो के साथ लोहा लेते हैं। बाद में धोखे से नारायण सिंह को कैद करते हैं और फांसी का सजा सुना दिया जाता है। इस प्रकार वीर नारायण सिंह को रायपुर के जयस्तंभ चौक पर फांसी दी जाती है और वह शहीद हो जाते हैं।

 

पात्र परिचय

 

नारायण सिंह- टिंकू वर्मा
दीवान – मंगेश कुमार
साथी – लोकेश कुमार
सूत्रधार – हेमंत यादव
स्मिथ, एकस्ट्रा शाहब- सूर्या तिवारी,
जेलर – आदित्य ठाकुर
ग्रामीण –  समीर शर्मा, कोनिका ठाकुर, रुचि ठाकुर
संदेश वाहक, अंग रक्षक- लोकेश यादव
वकील – उमेश उपाध्याय
माखन बनिया – भूपेंद्र कुमार

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