Lord Jagannath : गुंडिचा मंदिर में नौ दिवसीय प्रवास के बाद लौटे भगवान जगन्नाथ, उनके भाई-बहन

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Lord Jagannath गुंडिचा मंदिर में नौ दिवसीय प्रवास के बाद लौटे भगवान जगन्नाथ

Lord Jagannath पुरी !  ओडिशा में पुरी के गुंडिचा मंदिर में अपना नौ दिन का प्रवास बिताने के बाद भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई भगवान बलभद्र और उनकी बहन देवी सुभद्रा बुधवार को अपने-अपने रथों पर सवार होकर अपने मूल निवास लौट आए।


भगवान की “बहुड़ा यात्रा ” (रथ वापसी उत्सव) के रूप में जानी जाने वाली वापसी यात्रा कड़ी सुरक्षा के बीच निर्धारित समय से लगभग तीन घंटे पहले शुरू हुई।


Lord Jagannath गुंडिचा मंदिर के गर्भगृह से रथों तक देवताओं की औपचारिक पहांडी आज सुबह शुरू हुई। जैसे ही भगवान जगन्नाथ नकाचना द्वार (गुंडिचा मंदिर का निकास द्वार) से अपना पुष्प मुकुट हरिबोल झुलाते हुए बाहर आये जय जगन्नाथ और हुलुहुली के जयघोष हवा में गुंजायमान हो गये।


तीनों इष्टदेवों को अपने-अपने रथों में स्थापित करने के बाद पुरी के राजा दिब्यसिंह देब अपने “तंज़ान” पर सवार होकर गुंडिचा मंदिर आए और छेरापहनरा (तीनों रथों को सोने की झाड़ू से साफ करने की परम्परा) का आयोजन किया।


सेवकों ने तालध्वज में लकड़ी के घोड़े लगाए इसके बाद बलभद्र का रथ सबसे पहले निकला, उसके बाद सुभद्रा का दर्पदलन रथ और भगवान जगन्नाथ के नंदीघोष रथ की वापसी की यात्रा शुरू हुयी।


तीन किलोमीटर लंबी ग्रैंड रोड पर एकत्र हुए लाखों भक्तों की उपस्थिति में तीनों रथ एक के बाद एक लुढ़कने लगे। जिसे आमतैार पर “बड़ा डंडा” के नाम से जाना जाता है।


सभी तीनों रथ बडादंडा के साथ अपने दिए गए ट्रैक पर आसानी से चले। रास्ते में तीनों रथों के देवता मौसीमा मंदिर ठहराव के दौरान केक (पोडा पीठा) पकाएंगे।


रास्ते में भगवान जगन्नाथ को “लक्ष्मीनारायण भेट” समारोह के प्रदर्शन के लिए राजा के महल के पास इंतजार करना पड़ा। परंपरा के अनुसार, महालक्ष्मी को अपनी मौसी के घर की आनंदमय सवारी में छोड़ दिए जाने से नाराजगी थी, जबकि जगन्नाथ अपनी बहन सुभद्रा को अपने बड़े भाई बलभद्र के साथ ले गए थे।


देवताओं के सबसे प्रमुख सेवक पुरी के राजा दिब्यसिंह देब ने मंदिर के द्वार के समीप जुलूस के निकलने के दौरान नंदीघोष रथ महालक्ष्मी की। यहां महाजन सेवकों ने महालक्ष्मी और जगन्नाथ के बीच सुलह की कार्यवाही की।


बुधवार को सूर्य अस्त होने से पहले तीनों रथ अपने गंतव्य पर पहुंच जाएंगे और सिंह द्वार के सामने खड़े कर दिए जाएंगे। हैरानी की बात यह है कि बुधवार को बारिश नहीं हुई और मौसम साफ रहा।

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देवताओं की प्रसिद्ध सुनवेशा (सुनहरी पोशाक) गुरुवार को रथों पर देखी जाएगी और प्रशासन को इसे देखने के लिए लाखों भक्तों के जुटने की उम्मीद है। शुक्रवार को मंदिर के सेवकों द्वारा त्रिमूर्ति को पहांडी बिजे पर श्री जगन्नाथ मंदिर के गर्भगृह के अंदर रत्न वेदी में लौटा दिया जाएगा।

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