Jallianwala Bagh massacre सौ साल बाद भी जलियांवाला बाग हत्याकांड का रहस्य सुलझाना नामुमकिन

Jallianwala Bagh massacre

Jallianwala Bagh massacre जलियांवाला बाग हत्याकांड बदल दिया आजादी की जंग का रुख

 

Jallianwala Bagh massacre अमृतसर !   पंजाब के अमृतसर स्थित गुरु नानक देव विश्वविद्यालय की जलियांवाला बाग पीठ ने नरसंहार के 105 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में ‘भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में जलियांवाला बाग नरसंहार की स्थिति’ विषय पर मंगलवार को राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया।


विश्वविद्यालय के अंबेडकर चेयर के पूर्व अध्यक्ष प्रो. हरीश के. पुरी मुख्य वक्ता थे और उनका मुख्य तर्क यह था कि कैसे कांग्रेस जांच समिति के नेताओं, विशेष रूप से महात्मा गांधी ने अपने मन से डर को खत्म किया और उन्हें सरकार के खिलाफ सबूत देने के लिए आगे आने के लिये प्रेरित किया।


सेमिनार में दो पुस्तकों का विमोचन किया गया, प्रोफेसर अमनदीप बल और डॉ. दिलबाग सिंह की पहली पुस्तक री-विजिटिंग मार्टियर्स ऑफ जलियांवाला बाग नरसंहार में मारे गये और घायल हुये लोगों की संख्या के मुद्दे को संबोधित किया गया है, जिसमें कहा गया है कि सौ साल बाद भी मारे गये लोगों और घायलों की सही संख्या का रहस्य सुलझाना नामुमकिन है। जून तक मार्शल लॉ था और सरकार ने अगस्त 1919 तक जानकारी एकत्र करना शुरू नहीं किया था। अधिकांश जानकारी खो गयी थी। अनुसंधान के दौरान 1922 की मुआवजा फाइलों से मारे गये 55 और लोगों और 101 घायलों की पहचान की गयी है, और दो सर्वेक्षणों से इसे 57 कर दिया गया है। यह 381 की आधिकारिक सूची से अधिक है। सभी उपलब्ध सूचियों को परिशिष्टों में प्रलेखित किया गया है। मारे गये चौंतीस बच्चों की पहचान कर ली गयी है, हालाँकि संख्या अधिक है, क्योंकि कई की उम्र नहीं बताई गयी है।

सर्मिष्ठा दत्ता गुप्ता द्वारा लिखित जलियांवाला बाग जर्नल्स नरसंहार की प्रतिक्रिया है। सार्वजनिक इतिहास में एक प्रयोग के रूप में दत्ता गुप्ता ने अमृतसर के लोगों के परिवार और समुदाय की यादों पर आधारित एक नारीवादी परिप्रेक्ष्य तैयार किया है। जलियांवाला बाग कांड के साथ रवींद्रनाथ टैगोर के लंबे और गहरे जुड़ाव को गंभीरता से याद करना भी लोगों की कहानियों और नरसंहार स्थल के साथ उनके भावनात्मक संबंधों का पता लगानेकी उनकी यात्रा का एक अभिन्न अंग बन गया।

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भगत सिंह के भतीजे प्रोफेसर जगमोहन सिंह ने अपने समापन भाषण में बताया कि अंग्रेज 1857 के पुनरुद्धार का जिक्र क्यों करते रहते हैं। यह हिंदू-मुस्लिम एकता का डर था जो विरोध प्रदर्शनों और राम नौमी त्योहार के दौरान दिखाई दे रहा था और इससे वे भयभीत थे।
सेमिनार में मुख्य वक्ता प्रोफेसर जोगिंदर सिंह थे, जिन्होंने पंजाबी प्रेस पर बात की, प्रो. हरीश शर्मा ने मंटो पर और प्रो. सुखदेव सिंह सोहल ने नरसंहार के गदरित वाचन पर बात की। कार्यक्रम के अन्य वक्ता डॉ. जसबीर सिंह, प्रमुख, पंजाब विश्वविद्यालय डॉ. परनीत
कौर, पंजाबी यूनिवर्सिटी, पटियाला, डॉ. बलजीत सिंह, लुधियाना थे।

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