Happiness खुशफहमी जो घातक है
Happiness उन देशों के लिए बेशक ज्यादा मुसीबत है, जहां की सरकारें खराब हालत में अच्छी सुर्खी निकाल कर जनमत को बहकाये रखने की रणनीति पर चल रही हों।
Happiness अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने चालू वित्त वर्ष में भारत की अनुमानित आर्थिक वृद्धि दर को घटा दिया है। लेकिन इसमें कोई हैरत की बात नहीं है। उसने अनुमानित वैश्विक वृद्धि दर को भी घटा दिया है। लेकिन यह भी अपेक्षा के अनुरूप ही है।
Happiness इसीलिए अंतरराष्ट्रीय वित्तीय मीडिया में मुख्य सुर्खी आईएमएफ की यह टिप्पणी बनी कि ये बुरा दौर अभी अपने सबसे बुरे दौर में नहीं पहुंचा है। यानी आने वाले वक्त में स्थितियां और बिगड़ेंगी। मगर इन सुर्खियों से भी दुनिया में असल में जो हो रहा है, उसका अंदाजा नहीं लगता। हो दरअसल, यह रहा है कि दुनिया का आर्थिक ढांचा और दौर बदल रहा है।
Happiness ग्लोबलाइजेशन की जो नीति लगभग तीन दशक पहले सारी दुनिया में अपना ली गई थी, वह अपने अंत के करीब है। जब इस नीति के सबसे बड़े पैरोकार अमेरिका ने खुद संरक्षणवादी नीतियां अपना ली हैं और खेमेबंदी में जुट गया है, तो बाकी दुनिया का भ्रम में पड़ जाना अस्वाभाविक नहीं है।
Happiness इस बीच यूक्रेन युद्ध के बाद चीन-रूस ने एक नई धुरी बनाने और को दुनिया पर डॉलर के वर्चस्व को तोडऩे की अपनी मुहिम तेज कर दी है। इसके झटके अगर विश्व अर्थव्यवस्था को लग रहे हों, तो इस बात को आसानी से समझा जा सकता है। इन परिघटनाओं का अंतिम परिणाम क्या होगा, इस बारे में अभी किसी के लिए कुछ कहना कठिन है। लेकिन पश्चिम की धुरी पर टिकी पुरानी व्यवस्था अब पहले के रूप में लौट आएगी, इसकी संभावना बहुत कम है।
Happiness इसलिए अभी जो संकट सामने है, उससे पहले की तरह झटकों और मुश्किलों के बाद दुनिया निकल कर सामान्य स्थिति में फिर पहुंचेगी, यह उम्मीद छोड़ देनी चाहिए। अब इस परिस्थिति के बीच उन देशों के लिए बेशक ज्यादा मुसीबत है, जिनके पास अपना कोई रोडमैप नहीं है।
जहां की सरकारें खराब से खराब हालत में अच्छी सुर्खी निकाल कर जनमत को बहकाये रखने की रणनीति पर चलती रही हों, वे अभी भी ऐसी कोशिश में नजर आ रही हैं। मसलन, इस चर्चा पर गौर कीजिए कि आईएमएफ ने भले भारत की वृद्धि का अनुमान गिरा दिया हो, लेकिन संभावित दर अभी भी बाकी देशों से बेहतर है! जाहिर है, ऐसी खुशफहमी और भी ज्यादा घातक है।