Guilty feeling प्रायश्चित कहलाता है मनुष्य का अपराध बोध
Guilty feeling अपराध बोध सरल अर्थों में मनुष्य का अपराध बोध ही उसका प्रायश्चित कहलाता है। जिस प्रकार कर्म जीवन का स्वभाव है उसी प्रकार कर्म फल का भोग भी जीवन की अनिवार्यता है। मनुष्य जिस प्रकार के कर्म करता है उस प्रकार का फल उसे ना चाहते हुए भी देर – सबेर अवश्य भोगना ही पड़ता है। जाने – अनजाने में मनुष्य से अनेक पाप कर्म बन ही जाते हैं।
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Guilty feeling मनुष्य द्वारा जाने – अनजाने में किये जाने वाले उन्हीं पाप कर्मों के फल स्वरूप उसके कर्म फल का भी निर्धारण किया जाता है और उन पाप कर्मों के आधार पर ही उसके दण्ड का भी निर्धारण होता है। उन पाप कर्मों के फल से बचने के लिए शास्त्रों ने जो विधान निश्चित किया गया है, उसी को प्रायश्चित कर्म कहा गया है। दैन्य भाव से प्रभु चरणों की शरणागति एवं प्रभु के मंगलमय नामों का दृढ़ाश्रय लेते हुए जानबूझकर आगे कोई पाप कर्म ना बने, इस बात का दृढ़ संकल्प ही मनुष्य का सबसे बड़ा प्रायश्चित है।