Gift of pain सच में आसान तो नहीं है उनको भूलाना—-??

जगदीश सिंह सम्पादक

Gift of pain  खासकर उनके साथ बीताए हु ए यादगार लम्हों से बाहर निकलना—?
भीड़ भाड़ में काम पर कैसे भी वक्त गुजर जाता है*!
मसला तो कमबख्त तन्हाई का है कसम से हौसला टूट जाता है*——-?

Gift of pain  रफ्ता रफ्ता जि़न्दगी का गुजरता लम्हा दर्द की सौगात को जब तन्हाई भरी रात में सौप देता है उस समय आंखों से झर झर बहता नीर तकदीर के फल सफा को गमगीन बना देता है?यादों का कारवां चल पड़ता है! बचपन से लेकर पचपन तक का सफर कसक के साथ बार बार मन: स्मृति में टक्कर मारने लगता है! पल पल की यादें चल चित्र सरीखे विचित्र हालत में दिल के दहलीज पर दिखने लगती है!

क्या थे क्या हो गये?अपने लोगों के बीच में ही खो गये!वो कागज की कस्ती वो मौसम सुहाना!मस्ती भरी जिन्दगी का तराना! न जाने कहां किस जगह खो गए ?भरी भीड़ में भी तन्हा रह गये!?न कमाने की चिन्ता न खाने की चिन्ता! सभी की मुहब्बत रहमत का फैसला था!मगर समय की धारा में सब कुछ बदल गया!घर परिवार नात रिश्तेदार!जब तक आप वजनदार है तभी तक आप के साथ उनका किरदार है!

चलती ट्रेन के मुसाफिर के तरह सभी अपने अपने मन्जिल पर उतरते चले गए!रह गया जिन्दगी का? वो पल जो साथ साथ बिताए थे। कसक के साथ दर्द में गुजरता जीवन का हर लम्हा तन्हा होने का एहसास कराता है!लेकिन फर्ज के मर्ज से पीड़ीत गम से बोझिल अश्कों की वर्षांत करती आंखों से गायब नींद के आगोश में निशा का हर क्षण विलक्षण सोच के सहारे नव प्रभात तक सब कुछ आत्मसात कर पुन: अग्रसर कर जाता है!हर रोज की यह नित्य प्रकिया हर सुबह की शुक्रिया करती आखरी मंजिल पर दस्तक देने लगती है।

मतलब परस्त जहां में कहां शुकून नसीब है! वहीं सबसे अधिक दर्द देता जो सबसे करीब है?कभी आज की शहंशाही थी! कल भी मुस्कराता था! वक्त आशक्त होता था! सामने वाला भक्त हो जाता था!करिश्मा लिए खुशहाली घर के दहलीज पर कुलांचे भरती थी! मौत भी करीब आने से डरती थीं?आज वक्त हर पल का हिसाब कर रहा है!गुजरे हर लम्हे को कर्म के आईने में दिखा रहा है?धीरे धीरे सबने साथ छोड़ दिया!जीवन की डगर हमसफऱ के बिना जहर हो गई!मां बाप का साया सपना हो गया!अब तो तन्हाई से रिश्ता अपना हो गया!सब कुछ रहकर भी कुछ नहीं है!

सबकुछ भरा पड़ा है मगर सुख नहीं है।? कायनाती ब्यवस्था में आस्था का सवाल बवाल बनकर कदम कदम पर जीने को मजबूर कर रहा है? वर्ना इस मतलबी संसार में लोगों के बदलते विचार को देखकर मन में वैराग्य का बोध होना स्वाभाविक है!मगर जो खुद ही खेवैया खुद ही नाविक है! उसके सामने समस्याओं की पतवार को छोडऩा मुश्किल हो जाता है?

हालांकि माया की इस महादशा में दुर्दशा के तरफ बढ़ता हर कदम बेरहम समाज में मजाक बन रहा है!जब तक दम है तभी तक हम है! वर्ना कदम कदम पर केवल गम है! हर शख्स के आखरी सफर में आंखें ग़म से नम है!जो चला गया साथ छोडक़र उसको भुलाना आसान नहीं है! कौन ऐसा है जो इस दर्द से परेशान नहीं हैं।

दिन भर का समय तो लोगों के बीच गुजर जाता है! मगर रात की तन्हाई हौसला तोड़ देती है! कर्म का फल हर किसी को भोगना है!जिसने जो बोया है उसको वहीं काटना है? कोई भी अपने कर्म से फल से नहीं बच सका है।आया है सो जायेगा राजा रंक फकीर!सबका जीवन अलग अलग अलग अलग तकदीर!

चार दिन का जीवन है! इन्सानियत के सुगम रास्ते पर चलकर लोगों के बीच श्रद्धा और सब्र का पुष्प बिखेरते आखरी सफर को सुहाना बना लो भाई कोई अपना नहीं न कुछ लेकर आए हो न लेकर जावोगे!गरीब लाचार के साथ दुर्व्यवहार मत करो कुछ साथ नहीं जायेगा।

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