Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – सियासी सुरसा और हनुमान!

Editor-in-Chief

– सुभाष मिश्र

From the pen of Editor-in-Chief Subhash Mishra – Political Sursa and Hanuman!

कर्नाटक चुनाव में विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य, लॉ एंड ऑर्डर जैसे जरूरी मुद्दों से ज्यादा चर्चा बजरंग बली की हो रही है। प्रधानमंत्री मोदी खुद इसे भुनाने की कोशिश करते नजर आ रहे हैं। खास बात ये है कि इस पर भाजपा कांग्रेस के नेताओं के बीच चल रही जुबानी जंग ने छत्तीसगढ़ की सियासी गलियारे का भी पारा चढ़ा दिया है। अचानक हनुमान जी की याद कैसे आ रही है इस पर बात को बढ़ाने से पहले चुनाव के दौरान मूल मुद्दे से भटकाने की कवायद पर मशहूर शायर राहत इंदौरी की एक शेर है—
सरहदों पर बहुत तनाव है क्या
जरा पता तो करो चुनाव है क्या…।
आज सरहद पर भले ही तनाव कम हो या उसका जिक्र न हो लेकिन जिस तरह से आग उगलते बयान हनुमान जी को लेकर दोनों तरफ से आए हैं। उसने देश के भीतर जरूर एक अलग तरह का तनाव बना दिया है। दरअसल, ये पूरा विवाद शुरू हुआ कर्नाटक में कांग्रेस के उस वादे से जिसमें कहा गया कि उनकी सरकार आएगी तो कर्नाटक में बजरंग दल और पीएफआई पर बैन लगाया जाएगा। इस तरह के मुद्दों को बड़े चुनावी मुद्दे में बदलने में माहिर भाजपा ने तत्काल बजरंग दल पर बैन की बात को हनुमान जी के अपमान से जोड़ दिया। प्रधानमंत्री मोदी ने जिस तरह बजरंग बली के जयकारे लगाए इससे पहले वो ऐसा करते नजर नहीं आए थे। इस तरह मूल मुद्दों से भटकते हुए कर्नाटक चुनाव में हनुमान जी मुख्य मुद्दा बन गए। इधर, इस पूरे विवाद की लपटें छत्तीसगढ़ तक भी पहुंची हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा बजरंग दल को बजरंग बली से जोड़े जाने को लेकर सीएम भूपेश बघेल ने कहा कि पीएम मोदी जो चीज पाकिस्तान की है उसे भारत का बता देते हैं। यहां बजरंग दल पर बैन लगाने की बात कही गयी है, बजरंग बली पर नहीं। उन्होंने कहा कि ये बजरंगबली के नाम से जो गुंडागर्दी कर रहे हैं, जो उचित नहीं है। छत्तीसगढ़ में भी बजरंग दल ने गड़बड़ करने की कोशिश की तो हमने ठीक भी कर दिया और बैन करने की जरूरत पड़ी तो यहां भी सोचेंगे। इसको लेकर छत्तीसगढ़ में व्यापक प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है।
भाजपा ने जिस तरह पहले भगवान राम के नाम पर राजनीति का भगवा करण किया और उसका जिस तरह लाभ उठाया उसे सब जानते हैं। शायद अब उनका सियासी डीजे रामजी करेंगे बेड़ा पार उदासी मन काहे को करे के बदले बजरंगबली मेरी नाव चली, करुणाकर पार लगा देना चला रहा है। भले ही बजरंग दल को बजरंग बली के अपमान से जोड़ा जा रहा है। इससे पहले भाजपा का उसके पुराने सहयोगी शिवसेना से गठबंधन खत्म हुआ था तो क्या माना जाए उसने शिवजी से नाता तोड़ लिया था या फिर जब 2014 में गोवा में तत्कालीन पर्रिकर सरकार ने श्रीराम सेना पर बैन लगा दिया था तब क्या भाजपा ने भगवान राम का अपमान किया था। ऐसे में वोट लेने की राजनीति मजबूरी समझी जा सकती है, लेकिन प्रधानमंत्री स्तर का नेता जब इस तरह के बयानों में लग जाए तो मामला चिंताजनक बन जाता है।
आखिर जिस बजरंग दल को लेकर इतना बवाल हो रहा है उस पर एक नजर डालते हैं। दरअसल बजरंग दल विश्व हिंदू परिषद की एक शाखा है। 8 अक्टूबर 1984 को उत्तरपद्रेश में इसकी स्थापना की गई थी। विनय कटियार बजरंग दल के संस्थापक-अध्यक्ष हैं। यहां से यह दल पूरे देश में फैल गया। बजरंग दल की तरफ से हर साल देश भर में कार्यकर्ताओं के ट्रेनिंग करवाई जाती है। साथ ही हिंदू धर्म के लिए देशभर में इसके कार्यकर्ता जागरुकता अभियान करते हैं। दावा किया जा रहा है कि देशभर इसके 22 लाख से ज्यादा सदस्य हैं। वेलेनटाइन-डे समेत कई इवेंट का इसके कार्यकर्ता अक्सर विरोध करते नजर आते हैं। इसके अलावा गौवंश की रक्षा करने की बात बजरंग दल करता है, गौवंश की रक्षा के नाम पर सरेआम मारपीट की घटना भी कई बार हो चुकी है।
हालांकि, हमारे यहां राजनीति में धार्मिक मुद्दों को पहले भी भड़काया गया इस के फेर में पड़े ऐसे लोग भी अपना वोट करते हैं जिन्हें इस तरह के मुद्दों से कुछ खास लाभ नहीं होता। इस तरह सियासत हिंदु-मुस्लिम के बीच खाई पैदा कर अपना काम सिद्ध करते हैं और अपना उल्लू सीधा करते हैं।

इस पर कबीर का ये दोहा सटिक बैठता है…
हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना,
आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना।
हम उम्मीद करते हैं कि चुनाव की इस घड़ी में जनता अपने तमाम मुद्दों पर गौर करेगी। क्योंकि नेताओं द्वारा बनाए गए कृत्रिम मुद्दों से उनके जीवन की हकीकत नहीं बदलने वाली।

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