प्रधान संपादक सुभाष मिश्र की कलम से- गुड़ खाए लेकिन गुलगुला से परहेज !

प्रधान संपादक सुभाष मिश्र की कलम से- गुड़ खाए लेकिन गुलगुला से परहेज !

छत्तीसगढ़ की सियासत में टीएस सिंहदेव बेहद सौम्य छवि वाले नेता माने जाते रहे हैं. उनके इस गुण के विरोधी भी कायल हैं. लेकिन उनके द्वारा हाल के दिनों में लिए गए राजनीतिक फैसले उन्हें एक राजनेता के तौर पर मजबूती से स्थापित करते नजर नहीं आ रहे हैं… तीन साल पहले जहां वे प्रदेश कांग्रेस के आला नेताओं में सुमार थे वे अब अलग थलग पड़ते नजर आ रहे हैं. दरअसल हम बात कर रहे हैं उनके द्वारा हाल ही में उनके जिम्मे सौंपे गए विभागों में से पंचायत और ग्रामीण विकास विभाग की जिम्मेदारी से हाथ खीच लेने के फैसले ने बहुत लोगों को चौंका दिया. उनके द्वारा उठाए गए इस कदम की टाइमिंग पर आप भी आप गौर करिए… 15 जुलाई को केन्द्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज्य मंत्री गिरिराज सिंह छत्तीसगढ़ के दौरे पर रहे, कोरबा में उन्होंने राज्य सरकार पर जमकर निशाना साधा खासतौर पर पंचायत विभाग पर केन्द्र से आए फंड के दुरूपयोग का भी आरोप उन्होंने लगाया… जैसा की राजनैतिक परिपाटी चल रही है पक्ष और विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप सामान्य बात हैं… गिरीराज सिंह द्वारा लगाए आरोप की सच्चाई एक अलग विषय है, लेकिन इस पूरे मामले का बचाव करने या फिर सियासी अंदाज में कह लें पलटवार का जिम्मा इस विभाग के मंत्री टीएस सिंहदेव का था, लेकिन सिंहदेव ने अपने विभाग के कामकाज का बचाव तो दूर खुद के काम पर ही सवालिया निशान लगाते हुए… गिरीराज सिंह के बयान के अगले दिन ही पंचायत और ग्रामीण विकास की जिम्मेदारी को ही छोड़ने का फैसला कर लिया. केन्द्रीय मंत्री गिरीराज ने मुहावरा बोलते हुए कहा कि माल महराज का मिर्जा खेले होली… इसका जवाब छत्तीसगढ़ में महराज कहे जाने वाले टीएस सिंहदेव ने देने के बजाए विधानसभा के मानसून सत्र से ठीक पहले अपना पद छोड़ दिया… पद छोड़ने या जिम्मेदारी से मुक्त होने का इस तरह का उदाहरण हाल की राजनीति में बहुत कम देखने को मिला है.
अब नजर डालते हैं उन मसलों पर जिन्हें सिंहदेव ने मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में उठाया है.. सिंहदेव कहते हैं कि प्रधानमंत्री आवास के तहत मकान बनने थे लेकिन वे बन नहीं पाए..इसके बाद वे कहते हैं समग्र ग्रामीण विकास योजना के तहत मंजूरी रूल्स ऑफ बिजनेस के विपरित मुख्य सचिव की अध्यक्षता में सचिवों की एक कमेटी गठित की गई है. मंत्री के अनुमोदन के बाद भी अंतिम फैसला ये कमेटी द्वारा लिए जाने की प्रक्रिया प्रोटोकॉल के विपरित है. जबकि विभाग के कामकाज को करीब से जानने वाले कहते हैं कि इस तरह की कमेटी गठन की शुरुआत रमन सिंह की सरकार में हुई थी. उस वक्त तत्कालीन मंत्री पर एक क्षेत्र विशेष में ही सारे मद को खर्च करने के आरोप लगे थे. ‘पेसा’ कानून को लेकर भी सिंहदेव नाराजगी जता रहे हैं, जबकि कुछ दिन पहले ही राज्य सरकार ने पेसा लागू करने का फैसला कैबिनेट की बैठक में लिया है. इसके अलावा उन्होंने अपने पत्र में मनरेगा में कार्य करने वाले रोजगार सहायकों के वेतन वृद्धि को मुद्दा बनाते हुए उनके द्वारा कराए गए हड़ताल को एक साजिश करार दिया है. ये समझ से परे है कि कौन अपने प्रदेश में इतनी लंबी हड़ताल करा कर कामकाज को प्रभावित कराएगा.
कहीं न कही ऐसा लग रहा है कि सिंहदेव विधानसभा सत्र के ठीक पहले सरकार को घेरने के लिए विपक्ष के हाथों मुद्दा थमा रहे हैं.

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