Former President Kovind पूर्व राष्ट्रपति कोविंद ने कहा- बुजुर्ग बोझ नहीं बल्कि हमारी सम्पति हैं अनुभव का खजाना

Former President Kovind

Former President Kovind बुजुर्ग बोझ नहीं हमारी संपत्ति है: कोविन्द

Former President Kovind उदयपुर !   पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा है कि बुजुर्ग बोझ नहीं बल्कि हमारी सम्पति हैं,वे अनुभव का खजाना हैं।

श्री कोविंद सोमवार को उदयपुर में तारा संस्थान के 12 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर मां द्रौपदी देवी आनंद वृद्धाश्रम में आयोजित समारोह को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि एक परिवार में बुजुर्ग की बहुत उपयोगिता होती है। हर काल और समय में उनकी उपयोगिता सार्थक होती है। हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि बुजुर्गों के पास अनुभव का धन और आत्मविश्वास का बल होता है।

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उन्होंने कहा, “ हर परिवार की अपनी अलग कहानियां होती हैं। कोई कहानी छोटी होती है, कोई बड़ी होती है। उन्हें सुनने और सुनाने में ही हमारा जीवन गुजर जाता है। इसलिये हमें यह सोचना चाहिये कि हमने आज तक केवल लिया ही लिया है। हमने समाज को दिया क्या है। जिस दिन आप में देने का भाव आ जायेगा, यकीन मानिये, जितना आनन्द लेने में आ रहा था, उससे दुगुना आनन्द देने में आयेगा। ”

Former President Kovind कोविंद ने मेवाड़ की पवित्र पावन धरती की महानता को दर्शाते हुये कहा कि इस धरती पर महाराणा प्रताप, भामाशाह और मीराबाई जैसी महान विभूतियां हुई हैं। उन्हें देश ही नहीं दुनिया मेें महानता प्रदान की जाती है। उदयपुर के लोग अपनी सभ्यता और संस्कृति के लिये कभी भी पीछे नहीं हटते हैं। इस धरा की कहानियां प्रेरणादायी हैं। महाराणा प्रताप, भामाशाह और मीराबाई का स्थान भारत के इतिहास में सर्वोच्च है। उन्होंने मानव जीवन की श्रेष्ठतम परम्पराओं को अपने-अपने हिसाब से जिया और निभाया है। महाराणा प्रताप ने प्रजा के साथ ही अपने राष्ट्र और धर्म संस्कृति की रक्षा के लिये घास की रोटी तक खाई, लेकिन इस पर आंच नहीं आने दी।

उन्होंने कहा कि आज तो हम ऐसा सोच भी नहीं सकते, जैसा महाराणा प्रताप ने करके दिखाया था। भामाशाह ने अपने धन का सदुपयोग करते हुये सारा धन राष्ट्र और धर्म संस्कृति की रक्षा के लिए दान कर दिया। वे चाहते थे कि कोई भी व्यक्ति भूखा न रहे और कोई भी गरीबी की वजह से धर्म नहीं छोड़े। पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि तारा संस्थान के संचालक भी उन्हीं के वंशज लगते हैं जो आज इतने बड़े स्तर पर बुजुर्गों और पीडि़तों की सेवा में लगे हुये हैं।

प्रारंभ में संस्थान की संस्थापक अध्यक्ष कल्पना गोयल ने कहा कि ऐसा पुनीत कार्य करने की प्रेरणा उन्हें अपने पिता से मिली। पहले वह बुजुर्गों की ऐसी स्थितियां देख कर बहुत भावुक हो जाया करती थी लेकिन धीरे-धीरे इनके साथ रह कर इनकी सेवा करने का अवसर मिला तो अब उनमें हिम्मत ओर हौंसला पैदा हो गया है और इन सभी की सेवा करने में उन्हें आनन्द आता है। पहले इसकी शुरूआत छोटे रूप में की थी और आज यह बड़े रूप में जैसा भी है सभी के सामने है। समारोह में नारायण सेवा संस्थान के संस्थापक कैलाश मानव ने भी अपने विचार व्यक्त किये।

 

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इससे पूर्व श्री कोविन्द मां द्रौपदी देवी आनंद वृद्धाश्रम में एक-एक कर बुजुर्गों से मिले और उनसे बातचीत की। उन्होंने कई बुजुर्गों से उनके हालचाल जाने और लगातार यही पूछते रहे, “आप यहां कैसा अनुभव कर रहे हैं। आपको यहां पर कोई तकलीफ तो नहीं है। ”

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