Fifa cup फीफा कप और जाकिर नायक

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Fifa cup अवधेश कुमार

Fifa cup कतर में फुटबॉल का महा आयोजन फीफा विश्व कप आरंभ हो गया। अल खोर शहर के 60 हजार की क्षमता वाले अल बायत स्टेडियम में एक भी सीट खाली नहीं दिख रही थी।

Fifa cup पहली बार किसी अरब देश में आयोजित विश्व कप में 28 दिनों में 64 मुकाबले खेले जाएंगे और 18 दिसम्बर को फाइनल के साथ इसका समापन होगा, लेकिन फीफा विश्व कप के आयोजन में एक ऐसी घटना हुई है, जिसकी ओर कम लोगों का ध्यान गया।

Fifa cup यह घटना है, कट्टरपंथी इस्लामी प्रचारक जाकिर नायक की उपस्थिति। जाकिर नायक वहां फुटबॉल मैच देखने नहीं गया। कतर ने बाजाब्ता उसे निमंत्रण देकर बुलाया। वह वहां खिलाडिय़ों के सामने धर्म की बात करेगा। वहां के एक प्रजेंटर का बयान है कि उपदेशक शेख जाकिर नायक वर्ल्ड कप के दौरान कतर में है और पूरे टूर्नामेंट के दौरान मजहबी लेक्चर देंगे।

Fifa cup  भारतीयों के लिए यह समाचार निस्संदेह धक्का पहुंचाने वाला है। जाकिर नायक भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के लिए भगोड़ा है, जिसने न केवल भारत बल्कि बाहर भी अपने कट्टरपंथी भाषणों व अभियानों से मजहब कट्टरता को बढ़ाया और आतंकवादी घटनाओं के लिए भी प्रेरित किया। प्रश्न है कि भारत क्या करे?

Fifa cup  भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ भी कतर के निमंत्रण पर देश का प्रतिनिधित्व करने वहां गए। कुछ लोग कह सकते हैं कि भारत न केवल पूरे आयोजन का बहिष्कार करे बल्कि कतर के सामने विरोध भी प्रकट किया जाए।

Fifa cup  भारतीयों का गुस्सा स्वाभाविक है। किंतु त्वरित प्रतिक्रिया की बजाय ऐसी घटनाएं हमें शांति से बहुत कुछ सोचने को विवश करतीं हैं ताकि भविष्य की दृष्टि से सटीक रणनीति निर्धारित कर सकें। भारत ने वर्ष 2016 में जाकिर नायक के इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन यानी आईआरएफ को अवैध घोषित कर दिया था। जांच में स्पष्ट हुआ था कि उसके माध्यम से अलग-अलग धार्मिंक समुदायों और समूहों के बीच दुश्मनी और नफरत को बढ़ावा दिया जा रहा है।

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इस पर प्रतिबंध भी लगा दिया था। दुनिया के कई प्रमुख देश मान चुके हैं कि जाकिर नायक धर्मगुरु होने की आड़ में इस्लामी कट्टरपंथ को न केवल बढ़ाता है बल्कि दूसरे धर्मो की खुलेआम आलोचना करता है और लोगों को इस्लाम में परिणत भी करता है, लेकिन किसी देश ने विश्व कप फुटबॉल में उसकी उपस्थिति व नियमित व्याख्यान पर आपत्ति प्रकट नहीं की है। यही वह स्थिति है जिसे समझने की आवश्यकता है।

भारत के कई आतंकवादी हमलों में पकड़े गए आतंकवादियों ने बताया कि वह जाकिर नायक से प्रभावित था। कश्मीर के बुरहान बानी जैसे आतंकवादी ने कहा कि वह जाकिर नायक का अनुसरण करता है। बांग्लादेश के विस्फोटों में शामिल आतंकवादियों ने भी जाकिर नायक का नाम लिया था। उसने अपनी तकरीर में ओसामा बिन लादेन का भी समर्थन कर दिया था।

उसने बयान दिया था कि अगर बिन लादेन इस्लाम के दुश्मनों से लड़ रहा है तो मैं उसके लिए हूं। अगर वह सबसे बड़े आतंकवादी अमेरिका को आतंकित कर रहा है तो मैं उसके साथ हूं। वह कर रहा है या नहीं मुझे नहीं पता, लेकिन आपको मुस्लिम होने के नाते पता होना चाहिए कि बगैर जांच के आरोप लगाना भी गलत है। हालांकि नाइक ने बाद में इन बयानों का खंडन भी किया। ये सारी खबरें पूरी दुनिया में गई और हर देश की सरकार और वहां की सुरक्षा एजेंसियों को इसका पता है। बावजूद जाकिर नायक भारत से अरब पहुंच गया और मलयेशिया में है।

मलयेशिया में वह आराम से रहता है। मलेशिया ने उसके प्रत्यर्पण की मांग खारिज कर दी। ऐसा लगता है कि एक रणनीति के तहत जाकिर नायक को बुलाया गया है। मुख्य बात यह है कि उसे अंतरराष्ट्रीय आयोजन में उपस्थित होने और अपनी तकरीरें देने का सम्मानजनक अवसर दिया गया है। इस्लाम के अंदर भी विश्व भर में अनेक ऐसे धर्मगुरु हैं, जिनकी प्रतिष्ठा आम मुसलमानों के बीच है।

उनसे इतर जाकिर नायक को इतनी प्रमुखता देने की आवश्यकता क्यों हुई? कतर ने इस पर कुछ कहा नहीं है। हम आप इसका अर्थ समझ सकते हैं। यानी जाकिर नायक हमारे आपके लिए एक कट्टरपंथी मजहबी विचारक, वक्ता, प्रचारक है जिसने विश्व भर में इस्लामी चरमपंथ और आतंकवाद को बढ़ावा देने में भूमिका निभाई है किंतु अनेक इस्लामी देशों और उनके शासकों के लिए वह इस्लाम की सेवा कर रहा है।

जाहिर है, वे उस तरह उसके बारे में विचार नहीं कर सकते जिस तरह हम आप करते हैं। यही वह बिंदु है जिस पर स्थिर होकर भारत को भविष्य में इन देशों के बारे में अपना अप्रोच बनाए रखना होगा। भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा के मामले में हमने देखा कि किस तरह कतर सहित कुछ इस्लामी देशों ने अतिवादी प्रतिक्रियाएं दी थी। हमें इनसे इसके विपरीत व्यवहार और चरित्र की उम्मीद नहीं करनी चाहिए।

जो कुछ वे कर रहे हैं यही स्वाभाविक है। अगर विश्व में इस्लामी आतंकवाद इतना शक्तिशाली हुआ और विनाश का कारण बना तो यूं ही नहीं। प्रत्यक्ष और परोक्ष अनेक देशों का उन्हें सहयोग और समर्थन रहा है। अंतरराष्ट्रीय वातावरण और कानून के अनुसार कोई देश वैसे आतंकवादी संगठनों का खुलेआम समर्थन नहीं कर सकता किंतु हमारी तरह वे उसे आतंकवादी और आतंकवादी संगठन मानें यह आवश्यक नहीं है।

तालिबान विश्व भर में प्रतिबंधित था किंतु कतर में उसका राजनीतिक मुख्यालय काम करता रहा। अमेरिका को वहीं तालिबान के साथ बातचीत और समझौता करना पड़ा। कायदे से प्रतिबंध के बाद तालिबान को कहीं भी मुख्यालय बनाने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए थी। तालिबान के लोग विश्व के कई इस्लामी देशों में संरक्षण पाते रहे हैं।

जरा सोचिए, जिस समूह ने अलकायदा के साथ मिलकर अमेरिका पर 11 सितम्बर , 2001 का सबसे बड़ा आतंकवादी हमला किया, उसके लोग भी इनके यहां लंबे समय तक अवांछित नहीं रहे तो जाकिर नायक विश्व भर में इस्लामिक विद्वान और उपदेशक है। इसलिए वह इन देशों में अवांछित हो जाएगा ऐसा हमें नहीं मानना चाहिए।

वास्तव में इस्लाम के अंदर का चरमपंथ, हिंसक उग्रवाद और आतंकवाद एक लंबे संघर्ष का विषय है जिनमें अपना संयम संतुलन बनाए रखते हुए स्पष्ट नीति के साथ आगे बढऩा होगा।

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