राजकुमार मल
Disclosure : बूढ़े हो रहे महुआ के पेड़
चिंता मे वानिकी वैज्ञानिक, खोज रहे आबादी बढ़ाने के उपाय
Disclosure भाटापारा- बूढ़े हो रहे हैं महुआ के पेड़। घट रही है आबादी। महुआ के लिए अहम पारिस्थितिकी तंत्र में यह नया बदलाव वानिकी वैज्ञानिकों को चिंता में डाल रहा है। इसलिए नए पेड़ तैयार करने और संवर्धन की योजना बन रही है।
लाखों परिवारों के जीवन का आधार बनने वाले महुआ में आ रहा नया परिवर्तन हैरत में डाल रहा है। पेड़ों में लगने वाले फूलों की मात्रा और उत्पादन पर जब अध्ययन हुआ तो मिली जानकारी ने वानिकी वैज्ञानिकों को गहरी चिंता में इसलिए डाल दिया क्योंकि इनका मानक आकार न केवल छोटा होता जा रहा है बल्कि उत्पादन भी कम हो रहा है।
हो रहे बूढ़े
8 से 15 वर्ष की उम्र में परिपक्व होते हैं महुआ के पेड़। इसमें आंशिक कमी देखी जा रही है याने समय से पहले परिपक्व हो रहे हैं। इतना ही नहीं नया बदलाव यह देखा जा रहा है कि महुआ के पेड़ों की आबादी भी घटते क्रम पर है। अध्ययन में इसके पीछे पारिस्थितिकी तंत्र में हो रहे नुकसान को जिम्मेदार माना जा रहा है।
फूलों पर ऐसा असर
अहम होते हैं महुआ के फूल। देश में सालाना उत्पादन लगभग 15 से 20 लाख टन का माना जाता है। इस बरस इसमें गिरावट की प्रबल आशंका है क्योंकि पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचने के बाद फलों का मानक आकार छोटा होने के रूप में देखा जा रहा है। इसी वजह से उत्पादन में कमी का अंदेशा है।
फल में यह स्थिति
महुआ के बीज पर अध्ययन होना शेष है लेकिन गुणवत्ता पर अंदेशा है ही क्योंकि फूलों का मानक आकार छोटा होने का असर फल और बीज पर निश्चित रूप से देखा जाएगा। मालूम हो कि बीज से हासिल तेल आदिवासी समुदाय के बीच खाद्य तेल के रूप में उपयोग किया जाता है।
आबादी बढ़ाने, होंगे प्रयास
वानिकी वैज्ञानिकों ने पहली जरूरत महुआ के पेड़ों के लिए पारिस्थितिकी तंत्र को सुधारने की बताई है। इसलिए जन जागरण अभियान सबसे पहले चलाया जाएगा। बीज उत्पादन में फिलहाल कोई गिरावट नहीं है। इसलिए नए पौधे तैयार करने के लिए उचित प्रशिक्षण और मार्गदर्शन दिए जाएंगे ताकि आबादी को बढ़ाया जा सके।
जागरूकता और प्रशिक्षण कार्यक्रम आवश्यक
महुआ के पेड़ों और उनके पारिस्थितिकी तंत्र को होने वाले नुकसान को नियंत्रित करने के लिए कड़े कानून और संरक्षण उपाय की आवश्यकता है। अच्छे जननद्रव्य का संरक्षण, सतत संग्रहण, भंडारण, प्रसंस्करण, विपणन तथा मूल्य संवर्धन स्थानीय आबादी को जागरूकता और प्रशिक्षण कार्यक्रम से ही संभव हो सकता है।
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अजीत विलियम्स, साइंटिस्ट (फॉरेस्ट्री), बीटीसी कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर