Dantewada latest news बस्तर : दूध पीती बच्ची भी अपने मां के हाथों में सुरक्षित नहीं

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Dantewada latest news : आदिवासियों को जान से मारने जेल भेजने, खनिजों को पूंजी पत्तियों के हवाले करने वाले आदिवासियों का असली गुनहगार कौन :  संजय पंत

 

Dantewada latest news : दंतेवाड़ा !  सामाजिक कार्यकर्ता एवं भारतीय किसान यूनियन का प्रदेश अध्यक्ष संजय पंत ने प्रेस नोट जारी कर कहा कि आदिवासी मूल निवासियों का असली गुनहगार कौन है।सारी दुनिया जब नए साल के आगमन का जश्न मना रही थी उसी समय बस्तर क्षेत्र के बीजापुर जिले के गंगालूर थाने के दुर्गम गांव मुदवेंडी में एक आदिवासी महिला अपने तीन माह की बच्ची को दूध पिला रही थी। अपने बच्ची के सुनहरे भविष्य के सपने देखती आदिवासी मां उस समय सन्न रह गई जब बंदूक से चली एक गोली उसके हाथ को चीरती हुई सीधे उसकी बच्ची के शरीर में जा धंसी। पल भर के भीतर ही मासूम बच्ची ने तड़प तड़पकर अपनी मां के हाथों में दम तोड़ दिया।

मानवता को शर्मसार करने वाली इस घटना के ऊपर एक बयान भी नहीं देने वाले कांग्रेस, भाजपा सहित सभी राजनीतिक पार्टियों के नेताओं एवं मंत्रियों को शर्म आनी चाहिए की आज उन्होंने बस्तर को ऐसी दहलीज पर लाकर खड़ा कर दिया जहां एक दूध पीती बच्ची भी अपने मां के हाथों में सुरक्षित नहीं है।

Dantewada latest news : मुंह उठाकर शपथ ग्रहण एवं स्वागत समारोहों में जाने वाले पदों के भूखे नेता एवं मंत्रियों द्वारा एक बार भी बच्ची के परिवार वालों से नहीं मिलना भारतीय लोकतंत्र में आदिवासी समाज की स्थिति को दर्शाता है। आरक्षित सीटों से चुने गए विधायकों एवं मंत्रियों को यह सोचना चाहिए कि उनके सामने ही उनके ही समाज की एक दूध पीती बच्ची को गोली मार दिया गया और वह टिकट, बंगले और पद के लिए रायपुर का चक्कर लगाते रहे।

इस पूरे मामले ने राज्य के प्रथम आदिवासी मुख्यमंत्री विष्णु देव साय की आदिवासियों के प्रति प्रतिबद्धता को जग जाहिर कर दिया है। भारतीय किसान यूनियन राज्य के मुख्यमंत्री से यह अपील करता है कि पूंजीवादी एवं शोषणकारी ताकतों के प्रभाव में ना आकर जनहित के फैसले ले। आदिवासी बहुल राज्य के मुख्यमंत्री होने के कारण आदिवासी समाज का हित ही मुख्यमंत्री की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। इस पूरे मामले में मुख्यमंत्री की विफलता आदिवासी समाज में ही उनके प्रति आक्रोश को पैदा करेगा।

Dantewada latest news : प्रदेश अध्यक्ष ने आगे कहा कि मुदवेंडी गांव में पुलिस सुरक्षा के बीच सड़क का निर्माण कार्य किया जा रहा है। इस गांव में आसपास के गांवों के स्थानीय आदिवासी किसान भाई सुरक्षा बलों के कैंप की स्थापना के विरोध में धरने पर बैठे हुए थे।

इस कैंप की स्थापना सड़क निर्माण के कार्य की सुरक्षा के लिए ही की गई थी। पुलिस का आरोप है कि बच्ची की मौत नक्सलियों की गोली लगने से हुई है जबकि नक्सली नेताओं ने अपने प्रेस व्यक्तत्व के जरिए आरोप लगाया है कि पुलिस वालों ने शराब के नशे में अंधाधुंध फायरिंग की जिससे बच्ची की मौत हो गई।

घटनास्थल पर मौजूद प्रत्यक्षदर्शी ग्रामीणों का कहना है कि वहां पर किसी नक्सली की मौजूदगी नहीं थी सवाल यह उठता है कि आदिवासियों को खत्म करने की यह खूनी साजिश रच कौन रहा है। पुलिस, नक्सली, आंदोलनरत ग्रामीण, दूध पीती बच्ची या उसकी मां वहां पर मौजूद सभी व्यक्ति आदिवासी थे।

वह गोली लगती जिसे भी लेकिन मरता सिर्फ आदिवासी ही। आदिवासी को आदिवासी के हाथ से ही मरवाने की यह खूनी साजिश आज इस मोड़ पर पहुंच गई है कि इसकी कीमत एक दूध पीती बच्ची को चुकानी पड़ी। भारतीय किसान यूनियन इस प्रेस रिलीज के माध्यम से पीड़ित परिवार के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करते हुए यह आश्वस्त करता है कि गंगालूर थाने में ही अज्ञात पुलिस वालों के खिलाफ बच्ची की हत्या का केस दर्ज कराया जाएगा एवं पीड़ित परिवार को कानूनी सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी जल, जंगल, जमीन की रक्षा करने और जनता हित के लिए युद्ध करने का दावा करने वाले नेताओं को यह स्पष्ट करना चाहिए कि वह किस प्रकार की लड़ाई कर रहे हैं !

जिसमें अंतिम नुकसान सिर्फ आदिवासी समुदाय का ही हो रहा है जिसकी रक्षा करने की वह बातें करते हैं। आदिवासी समुदाय के लिए यह समझने का वक्त आ गया है कि अपनी लड़ाई उन्हें खुद ही लड़नी पड़ेगी। आदिवासी समुदाय को अपने हितों एवं अधिकारों को प्राप्त करने के लिए अपने पैरों पर खड़ा होना ही पड़ेगा। दूध पीती बच्ची की मौत आदिवासी समुदाय के लिए साफ इशारा है कि यदि अभी भी उन्होंने अपनी लड़ाई अपने हाथों से संवैधानिक तरीके से नहीं लड़ी तो उनकी आने वाली पीढ़ियां बर्बाद हो जाएंगी। बस्तर क्षेत्र को हिंसा की आग में झोंकने वाले राजनीतिक पार्टियों के नेताओं एवं नक्सली नेताओं को यह समझना चाहिए की उन्होंने बस्तर वासियों की जिंदगी को तबाह कर दिया है।

 

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बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा देने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की इस पूरे मामले में चुप्पी उनकी कथनी और करनी में अंतर को दिखाता है। विधानसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत से भाजपा को जिताने वाली राज्य की संपूर्ण आदिवासी जनता यह सवाल कर रही है कि क्या यही थी मोदी की गारंटी?

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