Colorectal cancer patients पश्चिमी देशों के खान-पान को अपनाने से तेजी से कोलोरेक्टल कैंसर रोगियों की संख्या में भारी इजाफा

Colorectal cancer patients

Colorectal cancer patients पश्चिमी देशों के खान-पान को अपनाने से तेजी से कोलोरेक्टल कैंसर रोगियों की संख्या में भारी इजाफा

 

Colorectal cancer patients जयपुर !   भारत में जिस तेजी से पश्चिमी दुनियां के खाने-पीने की आदतों को अपनाना शुरू किया है उसी तेजी से कोलोरेक्टल कैंसर रोगियों की संख्या में भी इजाफा हुआ है।


Colorectal cancer patients  भगवान महावीर कैंसर हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर की ओर से राजस्थान इंटरनेशनल सेंटर में चल रही इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस बीएमकॉन कोर (बीएमकॉन-8) के दौरान देश-विदेश से आए कोलोरेक्टल कैंसर के विशेषज्ञों की ओर कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा के दौरान कोयंबटूर के जीआई सर्जन डॉ एस राजपांडियन ने यह बात कही। डा राजपांडियन ने कहा कि एक सामान्य भारतीय परिवार भी सप्ताह में एक से दो बार होटल, रेस्त्रो या स्ट्रीट फूड खाना पसंद करता है। साथ ही स्मोक और ग्रिल किया हुआ भोजन खाना पसंद करता है जो कि नुकसानदायक होता है।


Colorectal cancer patients  कॉन्फ्रेंस के आयोजन सचिव डॉ शशिकांत सैनी ने बताया कि कॉन्फ्रेंस के पहले दिन पांच लाइव सर्जरी की गई जिनका आरआईसी में लाइव टेलीकास्ट किया गया। देश के ख्याति प्राप्त जीआई सर्जन की ओर से एडवांस सर्जिकल प्रोसिजर के बारे में बताया गया।

इसके साथ ही करीब 18 सत्र आयोजित हुए जिसमें यूएसए के डॉ पारूल शुक्ला, मुंबई के डॉ अवनीश सकलानी, अहमदाबाद से डॉ जगदीश एम कोठारी, पुणे से डॉ अमोल बापे और श्रीनगर से डॉ शबनम बशीर ने शामिल हुए।
कॉन्फ्रेंस के उदघाटन समारोह के मुख्य अतिथि लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) एस आर मेहता ने कैंसर रोग की पहचान समय पर होने पर जोर दिया। इस अवसर पर आरयूएचएस के वाइस चांसलर डॉ सुधीर भंडारी और उदयपुर के डॉ सीपी जोशी कॉन्फ्रेंस के जरिए कॉलोनी और रेक्टल कैंसर विषय पर की जा रही चर्चाओं को महत्वपूर्ण बताया।


Colorectal cancer patients  डॉ राजपांडियन ने कहा कि सॉलिड टयूमर की पहचान के लिए बॉयोप्सी आवश्यक जांच होती है, लेकिन कई लोगों में इस जांच को लेकर भ्रम है कि बॉयोप्सी से कैंसर छीड़ जाता है और शरीर में फैल जाता है। ऐसे लोगों की संख्या भी काफी है जो अपने डर से बॉयोप्सी ही नहीं करवाते और उपचार से वंचित रहते है। ऐसे में लिक्विड बॉयोप्सी उनके लिए एक बड़ी राहत है। इसमें रक्त जांच के जरिए भी कैंसर की पहचान हो सकती है। हालांकि यह टेस्ट महंगा और एडवांस होने के कारण भारत में अभी बहुत ज्यादा प्रचलित नहीं हुआ है।


एसोसिएशन ऑफ कोलोन एंड रेक्टल सर्जन्स ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ प्रदीप पी शर्मा ने कहा कि पहले एडवांस स्टेज के कैंसर रोगियों में क्योर रेट (कैंसर मुक्त होने वाले रोगियों का प्रतिशत) पांच प्रतिशत था लेकिन यह अब 40 प्रतिशत तक पहुंच चुका है। एडवांस सर्जिकल प्रोसेस, इम्युनो थेरेपी जैसे कई नवीनतम उपचार पद्धतियों के कारण यह संभव हो पाया है।

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लेकिन आज भी लोगों में जागरूकता की कमी है, यही कारण है कि कैंसर रोगी आज भी पहली और दूसरी अवस्था में से ज्यादा तीसरी और चौथी अवस्था में उपचार के लिए चिकित्सक के पास पहुंचते है।

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