Chaurasi Kosi Parikrama : कान्हा ने नन्दबाबा और मां यशोदा को कराई थी चौरासी कोसी परिक्रमा

Chaurasi Kosi Parikrama :

Chaurasi Kosi Parikrama कान्हा ने नन्दबाबा और मां यशोदा को कराई थी चौरासी कोसी परिक्रमा

 

Chaurasi Kosi Parikrama मथुरा !   कान्हा ने नन्दबाबा और यशोदा मां को ब्रज चौरासी कोस की परिक्रमा द्वापर में चातुर्मास में पड़ने वाले अधिक मास में कराई थी।


ब्रज में सभी तीर्थों के विराजमान होने के कारण हर साल चातुर्मास में ब्रज में चौरासी कोस की परिक्रमा करने की होड़ सी लग जाती है लेकिन इस बार चातुर्मास में ही श्रावण मास का अधिक मास होने के कारण इसका महत्व और बढ गया है। जनश्रुति के अनुसार अधिक मास में ब्रज चौरासी कोस की परिक्रमा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है क्योंकि अधिक मास को भगवान श्रीकृष्ण का माह कहा जाता है।


ब्रज के महान तपस्वी संत नागरीदास बाबा ने बताया कि अपनी उपेक्षा से दुःखी होकर एक बार अधिक मास भगवान विष्णु के पास गया और हाथ जोड़कर उसने उनसे अपनी उपेक्षा की व्यथा बताई। उसने कहा कि जहां अन्य माह के स्वामी हैं, वही अधिक मास का कोई स्वामी नही है। उसकी व्यथा सुनकर भगवान विष्णु ने अपने अवतार श्रीकृष्ण को बुलाया और उनसे अधिक मास का स्वामी बनने के लिए कहा जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने सहर्ष स्वीकार कर लिया।

अधिक मास के स्वामी स्वयं भगवान श्रीकृष्ण हैं इसलिए इस माह में दण्डौती परिक्रमा , लोटन परिक्रमा या ठढ़ेसुरी परिक्रमा करने की होड़ सी लग जाती है लेकिन इस बार देश के विभिन्न भागों में बाढ का प्रकोप होने के कारण बहुत कम लोग ही ब्रज चौरासी कोस की परिक्रमा कर रहे हैं।


ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा में चातुर्मास में सभी तीर्थों का वास होता है। मान्यता के अनुसार एक बार श्यामसुन्दर ने प्रयागराज की परीक्षा लेने के लिए प्रयागराज को बुलाया और उसे तीर्थों का राजा बनाया। श्यामसुन्दर ने प्रयागराज से कहा कि वे राधारानी के साथ रासलीला पर जा रहे हैं, इसलिए वे सभी तीर्थों पर नियंत्रण करें। कुछ समय बाद जब श्यामसुन्दर वापस लौटे तो उन्होंने तीर्थराज से पूछा कि उन्हें किसी प्रकार की असुविधा तो नही हुई।

 

इस पर तीर्थराज ने कहा कि जहां सभी तीर्थों ने उसके आदेश का पालन किया वहीं मथुरा तीर्थ ने उसके आदेश का पालन नही किया। इस पर श्यामसुन्दर ने प्रयागराज से कहा कि उन्हें तीर्थों का राजा बनाया गया था लेकिन उसे अपने घर का राजा नही बनाया गया था।श्यामसुन्दर ने कहा कि मथुरा तीर्थ उनका घर है इसलिए उस पर किसी का अधिकार नही चलता।
इसके बाद प्रयागराज को अपनी भूल का अहेसास हुआ और उन्होंने श्यामसुन्दर से अपनी भूल के लिए क्षमा मांगते हुए उनसे प्रायश्चित के रूप में सजा देने का अनुरोध किया तो श्यामसुन्दर ने उसे आदेश दिया कि वह सभी तीर्थों को लेकर चातुर्मास में ब्रज निवास करेगा। यही कारण है कि चातुर्मास में ही श्यामसुन्दर ने नन्दबाबा और मां यशोदा को ब्रज चैरासी कोस में स्थित सभी तीर्थों के दर्शन कराए थे।


ब्रज चौरासी कोस में केदारनाथ,बद्रीनाथ, यमुनोत्री ,गंगेात्री, नीमसार मिश्रिक, सोमनाथ, जगन्नाथपुरी आदि सभी तीर्थ हैं जो चातुर्मास में ब्रज में ही विराजते हैं। इसी ब्रज चौरासी कोस में शेरगढ के पास पीरपुर गांव के बाहर चौरासी कोस परिक्रमा मार्ग पर मां काली का सिद्ध मन्दिर है जिसमें द्वापर युग से अग्नि प्रज्वलित हेा रही है तथा यहां पर नन्दबाबा और मां यशोदा ने देवी की पूजा आराधना अपनी तीर्थयात्रा के दौरान की थी।


मथुराधीश और नवनीत प्रिया मंदिर जतीपुरा के महन्त के अनुसार बल्लभकुल सम्प्रदाय के मन्दिरों में चातुर्मास में वर्ष भर होनेवाले होली, दीपावली, अन्नकूट जैसे त्योहार मनाए जाते हैं, इन्हे मनोरथ कहा जाता है तथा यह भक्त की सुविधा के अनुसार मनाये जाते हैं। बल्लभकुल सम्प्रदाय के द्वारकाधीश मन्दिर में होली का मनोरथ आज मनाया गया जिसमें श्रद्धालुओं ने होली का आनन्द लिया।

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द्वारकाधीश मन्दिर के जनसंपर्क अधिकारी राकेश तिवारी ने बताया कि इस बार 25 सितंबर से द्वारकाधीश मन्दिर से बागीश जी महराज के सानिध्य में ब्रजयात्रा निकाली जाएगी इस ब्रजयात्रा में देश के विभिन्न भागों के लगभग दस हजार भक्तों के भाग लेने की संभावना है।कुल मिलाकर चातुर्मास और अधिक मास में ब्रज का कोना कोना कृष्ण भक्ति से रंग गया है।

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