BJP’s new strategy भाजपा की नई रणनीति

BJP's new strategy

वेद प्रताप वैदिक

BJP’s new strategy भाजपा की नई रणनीति

BJP’s new strategy  भाजपा ने पहले राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति नियुक्त किए। और अब उसने अपने संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति का पुनर्गठन कर दिया। इन दोनों निर्णयों में नरेंद्र मोदी, अमित शाह और जगतप्रकाश नड्डा ने बहुत ही व्यावहारिक और दूरदर्शितापूर्ण कदम उठाया है। इन चारों मामलों में सत्तारुढ़ नेताओं का एक ही लक्ष्य रहा है- 2024 का अगला चुनाव कैसे जीतना? इस लक्ष्य की विरोधी दल आलोचना क्या, निंदा तक करेंगे। वे ऐसा क्यों नहीं करें?

BJP’s new strategy  उनके लिए तो यह जीवन-मरण की चुनौती हैं? उनका लक्ष्य भी यही होता है लेकिन इस मामले में कांग्रेस के मुकाबले भाजपा की चतुराई देखने लायक है। उसने एक आदिवासी महिला को राष्ट्रपति बनाकर देश के आदिवासियों को भाजपा से सीधा जोड़ लेने की कोशिश की है और भारत की महिला मतदाताओं को भी आकर्षित किया है। उप-राष्ट्रपति के तौर पर श्री जगदीप धनखड़ को चुनकर उसने देश के किसान और प्रभावशाली जाट समुदाय को अपने पक्ष में प्रभावित किया है।

BJP’s new strategy  अब संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति के चुनाव में भी उसकी यही रणनीति रही है। इन संस्थाओं में से केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान के नाम हटाने पर काफी उहा-पोह मची हुई है। सडक़ मंत्री के तौर पर गडकरी की उपलब्धियॉ बेजोड़ हैं। माना जा रहा है कि इन दोनों सज्जनों में भावी प्रधानमंत्री बनने की योग्यता देखी जा रही है।

BJP’s new strategy  यह कुछ हद तक सच भी है लेकिन महाराष्ट्र से देवेंद्र फडऩवीस और मप्र से डॉ. सत्यनारायण जटिया को ले लिया गया है। ये दोनों ही बड़े योग्य नेता हैं। डॉ. जटिया तो अनुभवी और विद्वान भी हैं। वे अनुसूचितों का प्रतिनिधित्व करेंगे। शिवराज चौहान भी काफी सफल मुख्यमंत्री रहे हैं। लेकिन इन समितियों में किसी भी मुख्यमंत्री को नहीं रखा गया है।

जिन नए नामों को इन समितियों में जोड़ा गया है, जैसे भूपेंद्र यादव, ओम माथुर, सुधा यादव, बनथी श्रीनिवास, येदुयुरप्पा, सरकार इकबालसिंह, सर्वानंद सोनोवाल, के. लक्ष्मण, बी.एल. संतोष आदि- ये लोग विभिन्न प्रांतों और जातीय समूहों का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये सब भाजपा की चुनावी-शक्ति को सुद्दढ़ करने में मददगार साबित होंगे।

BJP’s new strategy  इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं माना जाना चाहिए कि ये नेता जिन वर्गों या जातियों से आते हैं, उनका कोई विशेष लाभ होनेवाला है। लाभ हो जाए तो उसे शुभ संयोग माना जा सकता है। जिन नेताओं के नाम हटे हैं, उन्हें मार्गदर्शक मंडल के हवाले किया जा सकता है, जैसे 2014 में अटलजी, आडवाणीजी और जोशीजी को किया गया था। वे नेता तो 8 साल से मार्ग का दर्शन भर कर रहे हैं। नए मार्गदर्शक नेता शायद मार्गदर्शन कराने की कोशिश करेंगे।

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