Bird Village Menar पर्यटन क्षेत्र का बड़ा खज़ाना हैं उदयपुर जिले का बर्ड विलेज मेनार 

Bird Village Menar

Bird Village Menar राजस्थान में वाइल्ड लाइफ टूरिज्म प्रदेश के पर्यटन का अहम हिस्सा

 

Bird Village Menar जयपुर !   राजस्थान में परिंदों का गांव “बर्ड विलेज ” के नाम से विख्यात उदयपुर जिले की वल्लभनगर तहसील में स्थित मेनार गांव में पर्यटन क्षेत्र का खज़ाना छिपा है जहां पक्षियों की 250 से अधिक प्रजातियां देखने को मिलती है जिनमें सौ से अधिक प्रवासी पक्षी हैं।

परिंदों के इस गांव में पर्यटकों को मेवाड़ की शौर्य गाथाएं, परम्पराएं, सभ्यता, प्राकृतिक, संस्कृति, विरासत, पुरातत्व पर्यटन एवं संरक्षण का संगम भी देखने को मिलता है। इसके अलावा यहां की बारूद की होली भी खासी प्रसिद्ध है वहीं मेनार के अधिकतर निवासी पाक कला व्यवसाय में कार्यरत हैं।

अपनी पर्यटन विविधता के लिए प्रसिद्ध राजस्थान में वाइल्ड लाइफ टूरिज्म प्रदेश के पर्यटन का अहम हिस्सा है और बर्डिंग में राजस्थान का कोई सानी नहीं है और भरतपुर का केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान सबसे प्रसिद्ध पक्षी अभ्यारण्य में गिना जाता है जो कि प्रदेश की सबसे पहली दो रामसर साइट्स में से एक है।

Bird Village Menar  लेकिन इन दिनों प्रदेश में उदयपुर से चालीस किलोमीटर दूर स्थित मेनार पक्षी ग्राम चर्चाओं में है क्योंकि इसे जल्द ही रामसर साइट घोषित किया जाने वाला है साथ ही मेनार ग्राम का चयन पर्यटन मंत्रालय द्वारा “ट्रेवल फॉर लाइफ” के तहत “बेस्ट टूरिज़्म विलेज कॉम्पिटीशन 2023” में सिल्वर श्रेणी में हुआ है।

मेनार गांव में 250 प्रकार की चिड़ियाएं देखी जा सकती हैं, जिनमें 100 से अधिक प्रवासी पक्षी हैं। पक्षी प्रेमी ग्रामीणों ने तालाबों को पक्षियों के लिए संरक्षित एवं समर्पित रखा है। गत 19 जुलाई को मेनार गांव के ब्रह्म तालाब और ढंड तालाब को वेटलैंड घोषित किया गया है। वन विभाग द्वारा इसे रामसर साइट घोषित करने के लिए प्रस्ताव तैयार कर भेजा गया हैं।

मेनार गांव अपने आप में इसलिए भी अनूठा है कि यहां पर पर्यटकों को मेवाड़ की शौर्य गाथाएं, परम्पराएं, सभ्यता, प्राकृतिक, संस्कृति, विरासत एवं पुरातत्व पर्यटन व संरक्षण का संगम देखने को मिलता है। जो एक ऐसा सुखद अहसास है जो पर्यटकों को मेनार के अलावा कहीं नहीं मिलता।

Bird Village Menar  इस गांव में सामुदायिक संरक्षण एवं वन संरक्षण के तालमेल का बेहतरीन उदाहरण भी देखने को मिलता है। पक्षीविदों का कहना है कि यहां के पक्षियों में इंसान के प्रति डर नहीं है वह उनके सामने भी सहज रहते हैं बल्कि बेहद नजदीक से यहां पक्षियों को देखा एवं महसूस किया जा सकता है।

यहां के स्वयं सेवक इतने सजग हैं कि फोटोग्राफर्स को पक्षियों को उड़ा कर तस्वीर लेने की सख्त मनाही है, जिसे भी फोटो खींचनी है वह उसे यहां सहज रूप से भी उपलब्ध हो जाती है। मेनार गांव में वॉलियन्टर्स को पक्षी मित्र के नाम पुकारा जाता है। इन पक्षी मित्रों की जागरूकता एवं संवेदनशीलता के कारण ही मेनार आज वैश्विक पर्यटन मंच पर अपनी सशक्त उपस्थित दर्ज करवा रहा है। पक्षी मित्रों सहित पक्षीविदों का कहना है कि यहां का वातावरण प्रवासी पंछियों को इतना भाया है कि कुछ पक्षी अपने पुराने संसार में नहीं लौटे और वेइस गांव के माहौल में खुद को ढ़ाल लिया।

Bird Village Menar  ब्रिटिशकाल में छह मार्च 1832 को जॉन टेल्सटन नामक एक अंग्रेज अपने दल बल के साथ यहां आया था जिनकी संख्या पचास के करीब रही होगी। जॉन से जब यहां हजारों की तादाद में पक्षियों को देखा तो उसने एक पक्षी को नाश्ते के लिए गोली मार दी। उसके गोली मारते ही सारे पक्षी सतर्क व आक्रमक मुद्रा में आ गए उन्होंने आकाश में एक विशेष आकृति बनाई जिसे देख ग्रामीण वहां पहुंचे और उन्होंने अंग्रेज दल को वहां से बाहर निकाल कर दम लिया।

मेनार, मेनारिया ब्राह्मणों का गांव है जिन्होंने मुगल काल में मेवाड़ के महाराणा प्रताप के युद्ध में समर्थन करते हुए मुगलों की सैन्य छावनी को तहस-नहस कर दिया और मुगलों को पराजय का सामना करना पड़ा। इसके बाद से यहां पर बारूद की होली खेली जाती है, जिसे स्थानीय भाषा में जमराबीज कहते हैं।

इस गांव में सौ से अधिक प्रवासी पक्षी नवंबर से मार्च तक रहते हैं लेकिन इनमें मुख्यतः डेमोसाइल क्रेन (कुरजां), पेलीकन (हवासील), ओस्प्रे( समुद्री बाज), फ्लेमिंगोज ( राजहंस), रेड किर्स्टेड पोचार्ड, बार हैडेड गूज, ग्रेलैग गूज आदि शामिल हैं।

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इन पक्षियों में ग्रेट क्रिस्टेड ग्रीव पक्षी जो यहां आने वाले पर्यटकों का सबसे अधिक ध्यान अपनी ओर खींचता है। इसे स्थानीय भाषा में इसे शिवा डुबडुबी कहा जाता है। हिमालय की तराई से मेनार आने वाला यह पक्षी पिछले दस सालों से यहीं है। कंलगीधारी यह पक्षी पानी से कभी बाहर नहीं आता, इसके घोंसले पानी पर तैरते हैं औऱ यह प्रजनन भी पानी में ही करता है। शिवाडुबडुबी अपने बच्चों को अपनी पीठ पर बैठा कर पानी की सैर करवाता है और खाना खिलाता है। ऐसे पक्षियों की कई प्रजातियां यहां पाई जाती है।

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