Bhatapara farming : गेहूं पर हमले के लिए.. तैयार हो रही बथुआ, चार और खरपतवार भी नजर आने लगे

Bhatapara farming :

राजकुमार मल

 

Bhatapara farming :  गेहूं पर हमले के लिए.. तैयार हो रही बथुआ, चार और खरपतवार भी नजर आने लगे

 

 

 Bhatapara farming :  भाटापारा– पांच प्रमुख खरपतवार तैयार हैं, गेहूं की फसल की बढ़वार रोकने के लिए क्योंकि समय पर की गई बोनी के बाद पहला पानी देने की तैयारी किसानों ने चालू कर दी है।

खरीफ के बाद रबी फसल। प्रदेश में इस बरस भी गेहूं की फसल बढ़े हुए रकबे में ली जा रही है। हमेशा की तरह, इस बरस भी खरपतवार प्रबंधन पर अच्छी खासी रकम खर्च करनी होगी क्योंकि गेहूं के खरपतवार तेजी से पोषक तत्व खींचते हैं। इसके अलावा छिड़काव किए गए उर्वरक से भी जल्द बढ़वार लेने में मदद मिलती है।

Bhatapara farming :  बेहद खतरनाक यह पांच

 

 

गेहूं की फसल के लिए बथुआ, खरतुआ, चटरी, मटरी,गेहूं का मामा और गुल्ली डंडा जैसे नाम वाले खरपतवार को बेहद खतरनाक माना जाता है। समूचे उत्तर भारत के गेहूं उत्पादक किसानों को बेहद नुकसान पहुंचाते हैं। यह नुकसान कीटनाशक प्रबंधन और कमजोर उत्पादन के रूप में सामने आता है। इस बार भी यह गेहूं के खेतों में देखे जाने लगे हैं।

Bhatapara farming :  हो रहे तैयार

 

समय पर की गई बोनी के बाद गेहूं की फसल में पहली सिंचाई का समय आ गया है। ऐसे में उर्वरक का छिड़काव भी किया जाएगा। यही समय खरपतवार की बढ़वार के लिए अनुकूल माना जाता है। नियंत्रण के लिए भी यही उम्र सही है। दवाओं का असर मुख्य फसल पर भले ही नजर ना आए लेकिन उत्पादन पर असर साफ तौर पर देखा जा सकेगा।

Bhatapara farming :  यह कीटनाशक प्रभावी

 

 

केवल चौड़ी पत्तियां या केवल सकरी पत्तियां हैं, तो इनके लिए क्रमशः सल्फोसल्फ्यूरान एवं मैट सल्फ्यूरान तथा क्लोनिडाफाप प्रोपेरजिल का छिड़काव किया जा सकता है। असर चौथे दिन गिरते हुए खरपतवार के रूप में देखा जा सकता है। छिड़काव के पूर्व खेत में नमी की मानक मात्रा का होना आवश्यक माना गया है। नमी के खत्म होने के साथ खरपतवार भी सूखते चले जाएंगे।

Bhatapara farming :  समय का रखें विशेष ध्यान

 

खरपतवार नियंत्रण के लिए सही समय का चयन बेहद आवश्यक है। शुरू के 25 से 35 दिन के बीच का समय खरपतवार नियंत्रण के लिए उपयुक्त होता है। यदि सही समय पर खरपतवारनाशी दवाओ का छिड़काव ना किया जाए तो उत्पादन पर 35 प्रतिशत तक प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

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डॉ. दिनेश पांडे, साइंटिस्ट (एग्रोनॉमी), बीटीसी कॉलेज ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर

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