Questions arising in the society on violence against women…!
– सुभाष मिश्र
राजधानी रायपुर में एक बालिका को सरेआम बेरहमी से पीटते हुए एक शख्स का वीडियो काफी वायरल हुआ। हालांकि इसके बाद पुलिस एक्शन में आई और आरोपी को गिरफ्तार कर लिया। लेकिन इस घटना ने कई सवाल समाज के सामने खड़े कर दिए हैं। आखिर एक इंसान इतना निर्दयी कैसे हो सकता है?
भारतीय समाज में महिलाएँ एक लंबे समय से अवमानना, यातना और शोषण का शिकार रही हैं। कुछ विचारधाराओं, संस्थागत रिवाज़ों और समाज में प्रचलित प्रतिमानों ने उनके उत्पीडऩ में काफी योगदान दिया है। इनमें से कुछ व्यावहारिक रिवाज़ आज भी व्याप्त हैं। पर्दे के पीछे महिला किसी न किसी तरह की हिंसा के शिकार तो होती ही रही हैं, लेकिन इस तरह एक अधेड़ शख्स द्वारा एक किशोरी को सरेआम प्रताडि़त करना, उस पर अनैतिक कार्य के लिए दबाव बनाने की हिंसात्मक गतिविधि को सड़क पर अंजाम देने का ये मामला बताता है कि लोगों पर किस तरह पागलपन सवार हो रहा है। पत्नी के टुकड़े-टुकड़े कर फ्रीज में रखने के मामले की क्रूरता को लेकर देशभर में चर्चा हुई। कहीं न कहीं इस तरह की घटनाओं के लिए समाज में आ रहे बदलाव भी जिम्मेदार हैं।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2015 में महिलाओं के विरूद्ध हिंसा के 3.29 लाख मामले, साल 2016 में 3.38 लाख मामले, साल 2017 में 3.60 लाख मामले और साल 2020 में 3.71 लाख मामले दर्ज किये गए। वहीं, साल 2021 में ये आंकड़ा बढ़कर 4.28 लाख को पार कर गया। इनमें से अधिकतर यानी 31.8 फीसदी पति या रिश्तेदार द्वारा की गई हिंसा के, 7.40 फीसदी बलात्कार के, 17.66 फीसदी अपहरण के, 20.8 फीसदी महिलाओं को अपमानित करने के इरादे से की गई हिंसा के मामले शामिल हैं।
आज महिलाएं एक तरफ सफलता के नए-नए आयाम गढ़ रही हैं तो वहीं दूसरी तरफ कई महिलाएं जघन्य हिंसा और अपराध का शिकार हो रही हैं। उनको पीटा जाता है, उनका अपहरण किया जाता है, उनके साथ बलात्कार किया जाता है, उनको जला दिया जाता है या उनकी हत्या कर दी जाती है। लेकिन क्या हम कभी ये सोचते हैं कि आखिर वे कौन-सी महिलाएं हैं जिनके साथ हिंसा होती है या उनके साथ हिंसा करने वाले लोग कौन है? हिंसा का मूल कारण क्या है और इसे खत्म कैसे किया जाए?
यदि हम महिलाओं के विरूद्ध हिंसा के सभी मामलों का अवलोकन करें तो हम पाएँगे कि सामान्यतया हिंसा की शिकार वे महिलाएं होती हैं- जो असहाय और अवसादग्रस्त होती हैं, जो अपराधकर्ताओं द्वारा की गई हिंसा के कारण भावानात्मक रूप से निर्बल हो गई हैं, जो दबावपूर्ण पारिवारिक स्थितियों में रहती हैं। जिनमें सामाजिक परिपक्वता की या सामाजिक अन्तर-वैयक्तिक प्रवीणताओं की कमी है, जिसके कारण उन्हें व्यवहार संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा जिन महिलाओं के पति प्राय: शराब पीते हैं वे भी अक्सर हिंसा का शिकार हो सकती हैं ।
पिछले दो दिनों से रायपुर में स्त्रियों पर आधारित एक साहित्यिक गोष्ठी चल रही है। इसमें महिलाओं के हालात पर कई तरह की बातें हो रही हैं, 21 सदी में महिलाओं की भूमिका और बदलाव को विचार विमर्श में लाया जा रहा है। तो दूसरी तरफ उन पर होने वाले अपराध की संख्या भी बढ़ रही है।
वैसे देखा जाए तो विश्व में नारी आंदोलन की नींव 19वीं शताब्दी में ही रखी गई। सरल शब्दों में कहें तो नारी आंदोलन की शुरुआत समाज द्वारा नारी को निम्नतर समझने से हुई। नारीवाद का महत्वपूर्ण सिद्धांत है कि इस पितृ सत्तात्मक समाज में स्त्री को हीन दर्जा प्राप्त है। यह समाज ही उसके लिए जीवन जीने के नियम और स्वरूप को गठित करता है। स्त्री के स्वतंत्र व्यक्तित्व को नकार देता है। नारी आंदोलन किसी पुरुष का नहीं बल्कि पितृसत्तात्मक विचार का विरोध करता है। यह आंदोलन मानता है कि स्त्री को भी पुरुष के बराबर सम्मान, अधिकार व अवसर मिले।
सामान्य महिला या लड़की ही नहीं, सोशल मीडिया के इस दौर में राजनीति, बिजनेस में सक्रिय महिलाओं को भी अपमानित कर मानसिक हिंसा का शिकार बनाया जाता है। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने ब्रिटेन में महिला राजनेताओं के बीच एक समान अध्ययन किया। उसमें एकत्र किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि महिला राजनेताओं के खिलाफ़ दुर्व्यवहार सभी राजनीतिक दलों की महिलाओं के साथ किया जाता है और सभी पार्टी लाइनों में इसकी मौजूदगी है। साल 2019 में ब्रिटेन में 18 महिला सांसदों ने दोबारा चुने जाने से इंकार किया और इसका एकमात्र कारण उन्होंने ऑनलाइन और ऑफ़लाइन उनके साथ हुए दुव्र्यवहार को माना।
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