You keep watching : हम दिखाएंगे, आप देखते रहिए…निशाने पर होंगे स्थानीय जनप्रतिनिधि

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 राजकुमार मल

You keep watching : हम दिखाएंगे, आप देखते रहिए…निशाने पर होंगे स्थानीय जनप्रतिनिधि

You keep watching : भाटापारा- कहा-देखेंगे ? मुख्यमंत्री के इस शब्द ने, माहौल अब ‘दिखाएंगे’, जैसी मानसिकता को जन्म दे दिया है। भरोसा नहीं राजनैतिक दलों पर। विश्वास नहीं है उन स्थानीय नेताओं पर जो मौके-बेमौके ‘जिला तो हम ही बनाएंगे’ और ‘भूपेश है, तो भरोसा है’ जैसे शब्दों के जुमले उछाला करते हैं। लिहाजा जवाब में ‘दिखाएंगे’ जैसे शब्द सुनाई देने लगे हैं।

You keep watching : चाल, चरित्र और चेहरा। सभी के एक जैसे ही हैं। यह बात पूरी तरह साफ हो चली है। 15 साल राज करने वाली भारतीय जनता पार्टी हर चुनाव के दौरान भरोसा दिलाती रही है। समय बदला, उम्मीदों के बीच कांग्रेस की वापसी हुई। मुख्यमंत्री बने भूपेश बघेल ने 4 बरस पूर्व विश्व आदिवासी दिवस पर ऐलान किया था कि जब सत्ता में आएंगे स्वतंत्र जिला बनेगा भाटापारा। लेकिन यही आयोजन जब दूसरी बार हुआ तो ‘देखेंगे’ कह कर टाल दिया।

सिर्फ चारागाह

You keep watching : भाटापारा को सिर्फ चारागाह ही समझा जाता है राजनैतिक दलों के बीच। विश्व आदिवासी दिवस के दौरान यह उस समय साफ दिखाई दिया, जब मुख्यमंत्री ने स्वतंत्र जिला के सवाल पर ‘देखेंगे’ जैसे शब्दों में जवाब दिए। इसके पहले 15 साल तक राज कर चुकी भारतीय जनता पार्टी भी ऐसा ही कर चुकी है। जीत दर्ज दिलाता रहा अपना क्षेत्र लेकिन जिस तरह छला गया, उसने निराशा या हताशा नहीं अब गुस्से को ही जन्म दे दिया है।

इच्छा शक्ति इनमें भी नहीं

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You keep watching : स्थानीय जनप्रतिनिधियों में भी स्वतंत्र जिला को लेकर इच्छाशक्ति नहीं है। निकाय,निगम और मंडल, की कमान संभालने तक ही रुचि दिखाने वाले स्थानीय नेताओं पर गुस्सा आने वाले दिनों में कभी भी उतरता नजर आ सकता है क्योंकि यही लोग सब का साथ- सबका विकास,अभी नहीं तो कभी नहीं और भूपेश है तो भरोसा है जैसे शब्दों के साथ जनसाधारण के बीच जाते हैं।

देखेंगे नहीं दिखाएंगे

स्वतंत्र जिला की मांग पर जिस अंदाज में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ‘देखेंगे’ कहा उसने जन मानस पर गहरी चोट पहुंचाई है। अब ‘हम दिखाएंगे’ जैसे बनते विचार के बीच मतदान का बहिष्कार, स्थानीय नेताओं से दूरी और”नोटा” का बटन जैसे विकल्पों पर गंभीरता से मंथन किए जाने के संकेत मिल रहे हैं याने खतरे की घंटी बज चुकी है, कांग्रेस और भाजपा के लिए।

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