Bjp भाजपा के लिए झारखंड क्यों मुश्किल?

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Bjp भाजपा के लिए झारखंड क्यों मुश्किल?

Bjp दिल्ली में अरविंद केजरीवाल चाहे कितना भी हल्ला मचाएं हकीकत यह है कि दिल्ली में कोई ऑपरेशन लोटस नहीं चल रहा था। भाजपा उनकी सरकार गिराने का जरा सा भी प्रयास नहीं कर रही थी। इसलिए ऑपरेशन विफल होन का सवाल ही नहीं है। हां, भाजपा पूरी शिद्दत से झारखंड सरकार गिराने की कोशिश कर रही है लेकिन कामयाबी नहीं मिल पा रही है। सारी केंद्रीय एजेंसियां झारखंड में सत्तारूढ़ गठबंधन के पीछे लगी हैं, न्यायपालिका में मामले दायर किए गए हैं, जिनकी सुनवाई चल रही है, चुनाव आयोग में शिकायत हुई है, जिसका फैसला आया हुआ है और लोकपाल में भी मामला लंबित है। भाजपा के राजनीतिक प्रयास अपनी जगह हैं। इसके बावजूद वह कई कारणों से कामयाब नहीं हो पा रही है।

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पहला कारण संख्या का है। भाजपा ने कर्नाटक, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में सफलतापूर्वक ऑपरेशन लोटस चलाया तो उसका कारण यह था कि दो राज्यों- कर्नाटक और महाराष्ट्र में भाजपा जीती थी पर दूसरी पार्टियों ने चुनाव बाद गठबंधन करके भाजपा की सरकार नहीं बनने दी थी। मध्य प्रदेश में भाजपा बहुमत से सिर्फ सात सीट पीछे रह गई थी। इसलिए इन तीन राज्यों में ऑपरेशन सफल हुआ। झारखंड में ऐसी स्थिति नहीं है। वहां भाजपा चुनाव हारी है और उसके मुख्यमंत्री भी चुनाव हारे थे। उसे सिर्फ 25 सीटें मिली थीं।

झारखंड की 81 सदस्यों की विधानसभा में सहयोगियों सहित उसके कुल विधायक 30 होते हैं, बहुमत से 11 कम। दूसरी ओर जेएमएम, कांग्रेस और राजद का चुनाव पूर्व गठबंधन पूर्ण बहुमत से जीता हुआ है।

दूसरा कारण जनभावना का है। पिछले विधानसभा चुनाव के बाद झारखंड में चार सीटों पर उपचुनाव हुए हैं और चारों पर भाजपा हारी है। एक बड़बोले सांसद, जिन्होंने दुमका और बरहेठ सीट पर उपचुनाव की भविष्यवाणी की है उनके चुनाव क्षेत्र में भी एक विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुआ था और वहां भी भाजपा हारी थी। दुमका, बेरमो, मधुपुर और मांडर इन चार सीटों पर उपचुनाव हुए और चारों पर भाजपा हारी। तभी कांग्रेस, राजद या जेएमएम के विधायक पाला बदलने से पहले 10 बार सोच रहे हैं।उनको अंदाजा है कि जनता गठबंधन सरकार के खिलाफ नहीं है।

Bjp तीसरा कारण, भाजपा नेताओं का बड़बोलापन है, जिसने राज्य सरकार को बचाव के उपाय करने के लिए अलर्ट कर दिया। भाजपा के नेता पहले दिन से कह रहे हैं कि सरकार गिर जाएगी। ट्विट करके या बयान देकर नेता बताते रहे कि कांग्रेस या जेएमएम के कितने विधायक भाजपा के संपर्क में हैं। इससे राज्य सरकार अलर्ट हो गई। मुख्यमंत्री ने गठबंधन विधायकों की निगरानी शुरू करा दी।

Small talk छोटी सी बात का बत्तंगड़

उनकी आवाजाही के साथ साथ बाहर से रांची आने वालों पर भी नजर रखी जाने लगी। इस वजह से कम से कम तीन प्रयास विफल हुए। कांग्रेस के तीन विधायक पैसे के साथ पकड़े गए और एक साल में दो बार मुकदमा भी दर्ज हुआ। इस बार भी भाजपा के बड़बोले नेताओं की वजह से पेंच फंस गया है। बिहार का घटनाक्रम भी एक कारण बना है, जिससे गठबंधन के विधायकों का हौसला बढ़ा है।

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