who has to walk on the path of duty कर्तव्य पथ पर किसको चलना है?

who has to walk on the path of duty
  • अजीत द्विवेदी

  •  Path of duty कर्तव्य पथ पर किसको चलना है?

  • who has to walk on the path of duty
    who has to walk on the path of duty कर्तव्य पथ पर किसको चलना है?
  • Path of duty रायसीना की पहाडिय़ों पर बने राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट तक जाने वाली सडक़ का नाम राजपथ से बदल कर कर्तव्य पथ कर दिया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी सरकार के बेहद विवादित सेंट्रल विस्टा परियोजना के पहले चरण के पूरा होने के मौके पर इसका उद्घाटन किया। राजपथ का नाम पहले किंग्सवे था यानी राजा का रास्ता। देश की आजादी के बाद इसका नाम बदला गया।
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  • Path of duty चूंकि इस सडक़ के दोनों तरफ भारत सरकार के कार्यालय स्थित हैं, जहां से राज्य का काम चलता है, इसलिए इसका नाम राजपथ रखा गया। अब इसका नाम कर्तव्य पथ कर दिया गया है। नाम बदल जाने से क्या बदलेगा, इसका अंदाजा अभी नहीं लगाया जा सकता है।
  • Path of duty आखिर रेसकोर्स रोड का नाम बदल कर लोक कल्याण मार्ग कर देने से भला लोक का कौन सा कल्याण हुआ है? उस सडक़ पर प्रधानमंत्री का आवास है लेकिन जब सेंट्रल विस्टा परियोजना के तहत पीएम एन्क्लेव का काम पूरा हो जाएगा तो लोक कल्याण मार्ग से पीएम आवास हट जाएगा।
  • Path of duty बहरहाल, नाम बदलना इस सरकार का शगल रहा है। लुटियन की दिल्ली में ही कितनी सडक़ों के नाम बदले गए हैं। रेसकोर्स रोड का नाम लोक कल्याण मार्ग हो गया। औरंगजेब रोड का नाम एपीजे अब्दुल कलाम रोड हो गया।
  • राष्ट्रपति भवन के साथ वाली सडक़ डलहौजी रोड का नाम बदल कर औरंगजेब के भाई दारा शिकोह के नाम पर किया गया। अब राजपथ का नाम कर्तव्य पथ हो गया। यह सब पिछले पांच साल में हुआ है। लुटियन की दिल्ली के बाहर देश भर में शहरों, गलियों, सडक़ों, रेलवे स्टेशनों आदि के नाम बदले गए हैं। लेकिन राजपथ का नाम बदलने का मामला बाकी बदलावों से बहुत अलग है।
  • यह मुगल शासक या किसी अंग्रेज आतातायी के नाम पर बनी सडक़ नहीं है या घोड़ों पर रेस लगाने का भाव इसमें नहीं है। यह राजकाज को प्रतीकित करने वाली सडक़ है। फिर भी इसे कर्तव्य के साथ जोड़ा गया है तो इसका मकसद कुछ और है।
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    ध्यान रहे जब भी सरकारें अपनी जिम्मेदारी निभाने में सफल नहीं होती हैं तो जनता से सवाल करती हैं कि उसने देश के लिए क्या किया है। इन दिनों भी बार बार सोशल मीडिया में लोगों को सलाह दी जाती है कि वे यह न पूछें कि देश ने उनके लिए क्या किया है, बल्कि यह सोचें कि उन्होंने देश के लिए क्या किया है।
  • यह बड़ी होशियारी से सरकार को उसकी जिम्मेदारियों से मुक्त करने का प्रयास लगता है। इसके जरिए लोगों को समझाया जाता है कि देश बहुत विशाल है, इसकी आबादी बहुत ज्यादा है और पिछले 70 साल में कुछ नहीं हुआ है इसलिए सरकार को सब कुछ ठीक करने में समय लगेगा।
  • तब तक लोग इंतजार करें। इस बीच वे अपने कर्तव्य निभाएं और देश के विकास में योगदान करें। सरकार उनको रोजगार नहीं दे पा रही है या ज्यादा टैक्स लगा कर उनसे पैसे वसूल रही है तो वे इसे देशहित का काम समझ कर चुप रहें। ज्यादा टैक्स भर कर वे बुनियादी रूप से अपना कर्तव्य निभा रहे हैं।
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल लाल किले से अपने भाषण में ‘पांच प्राण’ का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि इनसे देश अगले 25 साल में विकसित देश बनेगा। उनका पांचवां प्राण कर्तव्य का है। उन्होंने देश के लोगों से अपने कर्तव्यों के पालन करने की अपील की। जब आप संविधान में कर्तव्यों से जुड़े अनुच्छेदों का इतिहास जानेंगे तो अपने आप समझ आ जाएगा कि प्रधानमंत्री मोदी की अपील का क्या मतलब है।
  • नागरिक कर्तव्यों का जिक्र मूल संविधान में नहीं था। संविधान सभा ने लंबी बहस के बाद जिस संविधान का निर्माण किया था और जिसे देश ने अंगीकार किया था, उसमें कर्तव्यों का अनुच्छेद नहीं था। उसमें अधिकारों और राज्य के नीति निर्देशक तत्वों से जुड़े अनुच्छेद थे।
  • संविधान के तीसरे परिच्छेद में अनुच्छेद 12 से 35 तक मौलिक अधिकारों का जिक्र है। उस समय संविधान सभा ने नागरिकों के कर्तव्य तय करने की जरूरत नहीं समझी थी। कर्तव्यों का अनुच्छेद 1976 में उस समय जोड़ा गया, जब देश में इमरजेंसी लगी थी। आपातकाल के समय इंदिरा गांधी की सरकार ने स्वर्ण सिंह कमेटी की सिफारिशों पर संविधान के 42वें संशोधन के जरिए मौलिक कर्तव्यों को जोड़ा।
  • संविधान के पार्ट चार-ए में इसे रखा गया है। पहले नागरिकों के 10 कर्तव्य बताए गए थे लेकिन 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने एक और कर्तव्य इसमें जोड़ दिया।
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    who has to walk on the path of duty कर्तव्य पथ पर किसको चलना है?

    प्रधानमंत्री ने या सरकार ने राजपथ का नाम कर्तव्य पथ करने के पीछे की दार्शनिक सोच के बारे में नहीं बताया है। हो सकता है कि लोगों को बताया जाए कि कर्तव्य पथ के जरिए सरकार चला रहे लोगों को संदेश दिया गया है कि वे अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक रहें। यह ट्विस्ट आ सकता है। लेकिन असल में इसका मकसद कुछ और है। पिछले कई सालों से लोगों को समझाया जा रहा है कि वे अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें।

  • उनके अधिकारों से ज्यादा जोर कर्तव्यों पर दिया जा रहा है। जैसे शहरों, कस्बों और गांवों को स्वच्छ रखने की बुनियादी व्यवस्था बनाए बगैर नागरिकों पर स्वच्छता की जिम्मेदारी डाल दी गई। लेकिन नागरिकों से कर्तव्यों के सम्यक निर्वहन की अपेक्षा तभी की जा सकती है, जब उनके सारे मौलिक अधिकार सुनिश्चित किए जाएं। यह अलग बात है कि नागरिक खुद ही ज्यादातर कर्तव्यों का निर्वहन करते हैं और अगर नहीं करते हैं तो उनका पालन कराने के लिए कानून है।
  • भारत में नागरिक कर्तव्य ऐसे हैं, जिनका पालन नहीं करने पर जेल हो सकती है। जैसे राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मान करना पहला कर्तव्य है। अगर नागरिक ऐसा नहीं करते हैं तो उनको जेल भेजने का कानून है। इसी तरह एक कर्तव्य देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता को बनाए रखने का है।
  • इसका भी पालन नहीं करने पर जेल भेजने का कानून है। पर्यावरण की रक्षा करना भी मौलिक कर्तव्य है और इसे भी पूरा नहीं करने पर जेल जाने का प्रावधान है। सरकारी संपत्ति की रक्षा करना भी मौलिक कर्तव्य है और इसमें भी विफल रहने पर जेल भेजा जा सकता है।
  • Path of duty आपसी सद्भाव बनाए रखना भी कर्तव्य है और इसके उल्लंघन पर भी जेल भेजने का कानून है। वाजपेयी सरकार ने 2002 में यह कर्तव्य जोड़ा कि हर माता-पिता का अपने छह से 14 साल के बच्चे को स्कूल भेजना उसका कर्तव्य है। लेकिन देश में 14 साल से कम उम्र के डेढ़ करोड़ के करीब बच्चे स्कूल जाने की बजाय काम करते हैं। यह दंडनीय अपराध है।
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    who has to walk on the path of duty कर्तव्य पथ पर किसको चलना है?

    Path of duty सोचें, कर्तव्यों का निर्वहन नहीं करने पर जेल भेजने के कानून हैं। लेकिन अधिकार नहीं मिले तो नागरिक कुछ नहीं कर सकता है। उसके लिए सरकारों की जिम्मेदारी तय नहीं हो सकती है। संविधान नागरिकों को सम्मान से जीने का अधिकार देता है। लेकिन करोड़ों लोग पशुओं जैसी बदतर जिंदगी बीता रहे हैं।

  • Path of duty लेकिन इसके लिए किसी सरकार की जिम्मेदारी नहीं बनती है। संविधान कानून के समक्ष सबकी समानता की बात करता है और सबको बोलने व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है। लेकिन देश में समानों के लिए समान कानून की व्यवस्था चलती है और बोलने पर पाबंदी नहीं तो पहरा जरूर लगा हुआ है।
  • Path of duty लोग भूख से मर रहे हैं, पीने का साफ पानी लोगों को नसीब नहीं है, कहीं बाढ़ में डूब कर लोग मर रहे हैं तो कहीं बारिश और वज्रपात से मर रहे हैं, कहीं लू और ठंड से लोग मरते हैं तो कहीं महामारी में ऑक्सीजन, दवा और इलाज की कमी से मर जाते हैं। सबके लिए अच्छी व सस्ती शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधा उपलब्ध नहीं है। पर इसके लिए किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जाता है। कहने की जरूरत नहीं है कि अधिकार छीन कर या उससे वंचित करके नागरिकों को कर्तव्यों के निर्वहन में लगाना देश को किस दिशा में ले जाएगा।

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