Unique example : हिन्दू भी मजलिस और मातम में शामिल होकर गंगा जमुनी संस्कृति की पेश करते है अनूठी मिसाल

Unique example :

Unique example : शिराज-ए-हिन्द के मोहर्रम में हिन्दू भी करते हैं मजलिस

 

Unique example : जौनपुर ! शिराज-ए-हिन्द जौनपुर के मोहर्रम में सिर्फ शिया मुसलमान ही नहीं बल्कि हिन्दू भी मजलिस और मातम में शामिल होकर गंगा जमुनी संस्कृति की अनूठी मिसाल पेश करते हैं ।

also read : Commonwealth Games : एलेक्स ने राष्ट्रमंडल खेलों में जीता पहला स्वर्ण पदक


हैदराबाद और लखनऊ के बाद शिराज-ए-हिन्द जौनपुर का स्थान मुहर्रम में आता है। यहां के विश्व प्रसिद्ध इस्लाम के चेहल्लुम होता है, जहां तुर्बत की जियारत करने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं।

शिराज-ए-हिन्द जौनपुर मरकजी मुहर्रम कमेटी के अध्यक्ष सैय्यद शहन्शाह हुसैन रिजवी ने शुक्रवार को ‘यूनीवार्ता’ को बताया कि जौनपुर की अजादारी देश में विशिष्ट स्थान रखती है, इसलिए शिराज-ए-हिन्द जौनपुर को अजादारी का मरकज कहा जाता है।


उन्होंने कहा कि मुहर्रम माह का चांद दिखते ही पूरी शिया जमात के मुसलमान गमगीन हो जाते हैं, सभी लोग काला वस्त्र धारण कर लेते हैं। वहीं महिलायें अपनी चूड़ियां तोड़ देती हैं। दो माह आठ दिन तक चलने वाले मुहर्रम के दौरान जौनपुर में सौ से अधिक जुलूस निकाले जाते हैं।

चांद दिखते ही इमाम हुसैन के गम में लोग डूब जाते हैं। उनका कहना है कि अगर 29 जुलाई को चांद दिखा तो 30 जुलाई से नहीं तो 31 जुलाई से मुहर्रम शुरू हो जायेगा ।


रिजवी ने बताया कि शिराज-ए-हिन्द जौनपुर में पहली मुहर्रम को मुफ्ती मुहल्ले में अंगार-ए-मातम (जलते अंगारों पर चलकर मातम करना) होता है और बाजार भुआ से जुलूस अलम निकलता है। दूसरी मुहर्रम को हमाम दरवाजा से जुलजनाह व अलम का जुलूस निकलता है। तीसरी मुहर्रम को कई जगहों पर जुलूस निकलता है।


चार मुहर्रम को मखदमूशाह अढ़न से जुलूस जुलजनाह और तुर्बत निकलता है जो कल्लू मरहूम इमामबाड़े से होता हुआ ताड़तला ईमामबाड़ा पर जाकर समाप्त होता है। वहां एक ताबूत निकलता है जिसे जुलजनाह से मिलाया जाता है।

पाँचवीं मुहर्रम को चहारसू इमामबाड़ा से जुलुस अलम निकलता है, जो कल्लू मरहूम के इमामबाड़े पर जाकर समाप्त होता है। इसके साथ ही छतरीघाट (पुरानी बाजार) ईमामबाड़े से जुलूस जुलजनाह निकलता है जो इमामबाड़ा दालान कोठियाबीर सदर इमामबाड़ा होते हुए पुनः छतरीघाट पर जाकर समाप्त होता है और नकी फाटक तथा मुफ्ती मोंहल्ला से तुर्बत और अलम निकलता है।


उन्होंने कहा कि मोहर्रम की छठी तारीख को कटघरे से जुलूस-ए-अलम उठता है जो ओलन्दगंज, शाहीपुल, चहारसू होता हुआ हमाम दरवाजे के इमामबाड़ा पर समाप्त हेाता है।

इसके साथ ही कल्लू इमामबाड़ा के पास से तुरबत निकलती है और तकरीर होती है, और तुुरबत को अलम से मिलाया जाता है। सातवीं मोहर्रम को हर मुहल्ले से जुलूस निकलता है।

रिजवी ने बताया कि आठवीं मोहर्रम को देश में मशहूर जंजीरों का मातम ऐतिहासिक अटाला मस्जिद पर होता है। इसमें जुलूस जुलजनाह व झूला अली असगर इमामबाड़ा नाजिम अली से निकल कर अटाला मस्जिद से हेाता हुआ राजा बाजार के इमामबाड़ा में समाप्त होता है, इसमें पूरे शहर की अंजुमने नौहा व मातम करती है।

नौंवीं मोहर्रम की रात शहर व देहात में ताजिया इमाम चैक पर रखा जाता है, रात भर मजलिस व मातम होता है। इसे शब—ए आशूर कहा जाता है।दस मोहर्रम को ताजियों को सदर इमामबाड़ा लाकर गमगीन माहौल में दफन किया जाता है , इस दिन लोग भूखे रहते हैं और सायंकाल सदर इमामबाड़े में मजलिसे शामे गरीबां होती है।

उन्होने बताया कि मोहर्रम महीने में प्रतिदिन हर मुहल्ले में जुलजनाह अलम का जुलूस निकलता रहता है। मोहर्रम के जुलूस के बाद जौनपुर का प्रसिद्ध ऐतिहासिक अलम नौचन्दी व जुलूस-ए-अमारी इमामबाड़ा स्व. मीर बहादुर अली दालान पुरानी बाजार से निकलता है। इस वर्ष 01 सितम्बर 2022 को अलम नौचन्दी व जुलूस-ए-अमारी है। इसमें देश और प्रदेश के कोने-कोने से लोग आते हैं और धर्म गुरू मजलिस को सम्बोधित करते हैं।

फिदा हुसैन अंजुमन अहियापुर में डढ़े दर्जन से अधिक हिन्दू शामिल है जो हर वर्ष मोहर्रम में ताजिया रखते है और मातम भी करते है। इसके अलावा यहां पर कई शब्बेदारियां होती हैं। जहां 24 घंटे लगातार नौहाख्वानी और सीनाजनी का सिलसिला चलता है।

also read : https://jandhara24.com/news/107339/cbse-result-2022-class-12th-class-12th-result-can-be-seen-on-this-website-cbseresults-nic-in/

 

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

MENU