Triple it : ट्रिपल सी का धूम धड़ाका

अजय दीक्षित

Triple it : ट्रिपल सी का धूम धड़ाका

Triple it : आपने ट्रिपल आई.टी. का नाम सुना होगा । एक है– आई.आई.टी. अर्थात् इण्डियन इन्स्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी और दूसरा है ट्रिपल आई.टी. अर्थात् इण्डियन इन्स्टिट्यूट ऑफ इन्फोर्मेशन टेक्नोलॉजी । इसी तर्ज पर ट्रिपल सी का प्रयोग चलन में है । अर्थात् कॉमन सिविल कोड हिन्दी में समान नागरिक संहिता । इसका मतलब है कि पूरे देश में सिविल मामलों में सभी के लिए एक ही कानून होगा । सिविल मामले यानि विवाह, तलाक़, गोद लेना, पारिवारिक सम्पत्ति का बंटवारा, स्त्री-पुरुष सम्बन्ध, उत्तराधिकार के नियम, आदि-आदि, यानि लोगों के जीवन की दैनिक दिनचर्या सम्बन्धी मामलों में समान नियम ।

Triple it : भारत एक विविधा भरा देश है । हमारे संविधान में भारत को यूनियन ऑफ स्टेटस कहा गया है यानि राज्यों का संघ । भारत में कई धर्म वाले, कई सम्प्रदाय वाले, भिन्न-भिन्न कुनबा वाले, भिन्न-भिन्न जाति, समुदाय के सदस्य रहते हैं । एन्थोपोलोजीकल सर्वे ऑफ इण्डिया ने एक सौ खण्डों की किताब छापी है– पीपुल ऑफ इण्डिया । उसमें भारत के विभिन्न सम्प्रदायों, कुनबों, जातियों, धर्मों, सम्प्रदायों के रीति रिवाज़, उनके रहन-सहन, उनके तौर-तरीकों का जिक्र है ।

Triple it : अब जब से केन्द्र में भाजपा सरकार आई है और विभिन्न राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं वे समान नागरिक संहिता की बात करने लगे हैं । पिछले दिनों राज्यसभा में भाजपा के एक सांसद ने प्राइवेट बिल रक्खा समान नागरिक संहिता का । पहले तो इसे भाजपा के शीर्षस्थ नेतृत्व ने मना किया परन्तु बाद में बिल का समर्थन किया । बिल का विरोध करने वालों में न केवल मुसलमान थे अपितु बहुत से राजनैतिक दलों के हिन्दू, ईसाई, सिख, पारसी, जैन और बौद्ध भी थे । उनका कहना था कि भारत विविधताओं से भरा देश है ।

Triple it : यहां कॉमन सिविल कोड लागू नहीं किया जा सकता । परन्तु उपराष्ट्रपति जो राज्यसभा के अध्यक्ष भी हैं, उन्होंने विचार के लिए बिल को पेश करने की स्वीकृति दे दी ।

Triple it : असल में, बहुसंख्य हिन्दुओं वाली भाजपा मुसलमानों को सबक सिखाने के लिए यह बिल लाना चाहती है । उन्हें सख़्त एतराज़ है कि कोई मुसलमान चार शादियां कैसे कर सकता है । वह अपने दीनी मदरसे कैसे चला सकता है, यूं हिन्दुओं में भी ऐसी पाठशालाएं हैं जहां कम उम्र के बच्चों को ईश्वरीय शिक्षा दी जाती है ।

Triple it : असल में गुजरात, उत्तराखण्ड, मध्यप्रदेश, कर्नाटक आदि भाजपा शासित राज्यों ने अपने-अपने राज्यों में समान नागरिक संहिता के लिए प्रतिबद्धता जताई है । अब यह तो समान नहीं हुआ ? यदि देश में समान नागरिक संहिता लानी ही है तो फिर केन्द्र सरकार पहल करे । मेरी राय में भारत में समान नागरिक संहिता आग से खेलना है । यह विविधताओं भरा देश है ।

एक उदाहरण लेते हैं– विवाह । मुसलमानों में विवाह कान्ट्रेक्ट है– हिन्दुओं में वह संस्कार है, ईसाइयों में वह रीति है, आदिवासी समाज में वह प्रथा है । सिख गुरुद्वारे में जाकर गुरु ग्रन्थ साहब के साथ नतमस्तक हो जाते हैं उसे विवाह मान लिया जाता है । ज्यादातर हिन्दू समाज में यह संस्कार है जो सात फेरों के बाद पूरा होता है ।

Triple it : ईसाई गिरजाघर में जाकर वचन पढ़ते हैं और विवाह सम्पन्न माना जाता है । आदिवासी समाज में अलग-अलग समुदायों में अलग-अलग प्रथा है । तलाक के नियम भी अलग-अलग है । अभी तक विभिन्न सम्प्रदाय अपने धर्म या प्रथा का पालन करते हैं । आप बतलायें कि क्या भारत में सात फेरों के बाद ही विवाह माना जायेगा ? क्या यह मुसलमानों, ईसाइयों, सिखों को मान्य होगा ? आदिवासी समाज में छूट की अपनी प्रथा है । असल में बिना पढ़े, बिना मनन किये, राजनैतिक दलों के सडक़ छाप नेता अपनी बात रखते हैं ।

इन्हें न तो प्रथा, न संस्कार, न रीति-रिवाज़ और न ही नैतिकता का पता है । सरकारी नौकर दो शादी नहीं कर सकता । परन्तु दो-दो बीवियां रखकर व केन्द्र में मंत्री बन सकता है । रामविलास पासवान की दो पत्नियां रही हैं । दोनों से बच्चे भी हैं । मध्य प्रदेश में एक विधायक या मंत्री की चार पत्नियां हैं ।

Triple it : हिन्दुओं में शादी संस्कार है । वह सोलह संस्कार में से एक है । अब यदि कोई विवाह के बाद चुनाव के लिए अपने घोषणा पत्र में विवाह के कॉलम को सादा/खाली छोड़ देता है, तो वह वैध कैसे है ? परन्तु भारत में नियम आदमी की हैसियत देखकर लागू होते हैं । सतयुग में शिव जी ने सती का त्याग इसलिए किया था कि सती ने सीता का भेष रखकर परीक्षा लेनी चाहिए थी ।

अब क्योंकि शिव जी सीता जी को माता मानते हैं तो सती भी माता हो गई तो फिर वे सती को पत्नी कैसे मान सकते हैं । सभी जानते हैं कि त्रेता युग में राम ने एक साधारण नागरिक के कहने पर सीता का त्याग किया है । द्वापर में कहते हैं कृष्ण ने रुक्मणी का त्याग करके चौंसठ हजार शादियां की थीं । कलयुग में कितने अपनी पत्नी का त्याग किया, सभी जानते हैं ।

सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास में सब का क्या अर्थ है । अच्छा हो कि सत्तारूढ़ दल के प्रवक्ता और धुरन्धर हिन्दू धर्म शास्त्र ठीक से पढ़ लें । तो उन्हें राम और कृष्ण की सर्व समावेशी समाज की कल्पना की कुछ समझ आ जायेगी । पर्दे के पीछे का खेल बन्द होना चाहिये । यह भारत यदि मुसलमानों का नहीं है तो साफ तौर पर सरकार कहे कि वे दोयम दर्जे के नागरिक हैं ।

यूं सत्ताधारी दल के कुछ सिरफिरे मुसलमानों को पाकिस्तान जाने की सलाह दे चुके हैं । आज नेहरू के कामों और निर्णयों की बहुत आलोचना होती है । ऐसा न हो कि आने वाला समय वर्तमान सत्ताधारियों को भी कोसे । सद् बुद्धि ही समतामूलक समाज बना सकती है ।
हमारा उद्देश्य किसी की आलोचना करना नहीं है ।

किसी की गलती निकालना भी नहीं है । हम किसी खास विचारधारा के पक्षपाती भी नहीं है । हम तो भारत को विश्व का सिरमौर देखना चाहते हैं और यह ताज यदि मोदी जी को मिले तो हम तो प्रश्न ही होंगे । ईश्वर सबको सद्बुद्धि दे ।

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