Traditional Holi : यहां 60 सालों से गोबर के कंडे से जलाई जाती है होली, पारंपरिक परिधान में की जाती है पूजा अर्चना…देखिये वीडियो

Traditional Holi : यहां 60 सालों से गोबर के कंडे से जलाई जाती है होली, पारंपरिक परिधान में की जाती है पूजा अर्चना

Traditional Holi : यहां 60 सालों से गोबर के कंडे से जलाई जाती है होली, पारंपरिक परिधान में की जाती है पूजा अर्चना

रमेश गुप्ता, अश्वनी जांगड़े

Traditional Holi : भिलाई। होली का पर्व आते ही होलिका दहन को लेकर अलग ही उत्सुकता रहती है। वैसे तो होलिका दहन की तैयारियां हर जगह होती है लेकिन भिलाई में एक ऐसी भी जगह है जहां पर पारंपरिक रूप से होली जलाई जाती है। यहां महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में विधिवत पूजा अर्चना कर होलिका दहन करती हैं। खास बात यह है

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Traditional Holi : कि इस होलिका में लकड़ियों से ज्यादा गोबर के कंडों का इस्तेमाल किया जाता है। खुर्सीपार में पिछले 60 वर्षों से इस प्रकार कंडे की होलिका का दहन किया जा रहा है।

हम बात कर रहे हैं न्यू खुर्सीपार भिलाई में होने वाले होलिका दहन की। यहां होलिका दहन की तैयारियां घरों में एक माह पहले से ही हो जाती हैं। हर घर में गोबर के आकर्षक कंडे तैयार किए जाते हैं। गोबर के कंडो के साथ कंडो की माला भी तैयार की जाती है। होलिका दहन के लिए लकड़ियों का इस्तेमाल नाममात्र के लिए होता है।

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वहीं पूरी होलिका को गोबर के कंडों से ही तैयार किया जाता है। न्यू खुर्सीपार स्थित पंडित जवाहर लाल नेहरू स्कूल परिसर में होलिका दहन की तैयारियां की जाती है।

विधिवत पूजा के बाद जलाई गई होलिका
गोबर के कंडो की होलिका तैयार होने के बाद महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में यहां पहुंची। स्कूल परिसर में पूरा उत्सव का माहौल दिखा। पूरे परिवार के साथ विधिवत पूजा अर्चना कर महिलाओं ने होलिका की परिक्रमा की। बच्चों से लेकर बड़ों के साथ यहां उत्सव का माहौल दिखा। पूजा अर्चना के बाद होलिका का दहन किया गया।

इस दौरान महिलाओं ने होली के गीत भी गए और सूखी होली खेलकर जश्न भी मनाया। होलिका दहन के दौरान दिनभर यहां उत्सव का माहौल दिखा। हर परिवार ने पहुंचकर होलिका में अपने हिस्से के कंडों की आहूति दी।

छिपा है पर्यावरण सरंक्षण का संदेश
न्यू खुर्सीपार में होने वाले इस पारंपरिक होलिका दहन में पर्यावरण सरंक्षण का भी संदेश छिपा है। होलिका दहन में अधिक से अधिक गोबर के कंडों का इस्तेमाल लकड़ियों के बचत का संदेश दिया जाता है। लकड़ियां बचेंगी तो हमारे जंगल बचेंगे जो आने वाले भविष्य के लिए जरूरी है। न्यू खुर्सीपार में होने वाले इस आयोजन की चर्चा पूरी भिलाई में

होती है। इस होलिका दहन को देखने भी दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं। एक खास संदेश के साथ गोबर के कंडो की होली का अद्भूत नजारा बस यहीं दिखता है।स्थानीय निवासी शिरिष अग्रवाल का कहना है कि हर साल न्यू खुर्सीपार में परंपरागत होलिका दहन किया गया। गोबर के कंडों के साथ पिछले 60 वर्षों से होलिका दहन किया जाता है। हर साल की तरह इस साल भी भव्य स्वरूप में होलिका दहन किया गया।

संतोष अग्रवाल ने कहा होलिका दहन हमारे खुर्सीपार से पिछले 50-60 सालों से मनाया जा रहा है। इस आयोजन में सभी परिवारों का सहयोग रहता है। सभी अपने घरों में गोबर का कंडा बनाते हैं और यहां पर होलिका सजाई जाती है। होलिका दहन का भव्य स्वरूप यहीं दिखता है।

रतन लाल अग्रवाल ने बताया समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति जो आज हमारे बीच नहीं है। उन्होंने इस तरह की होली मनाने की शुरुआत की। यहां पूरा परिवार मिलकर परंपरागत होलिका दहन करता है। यह होली भिलाई ही नहीं पूरे छत्तीसगढ़ में अनोखी है। हर साल यह होली और भी भव्यता के साथ जलाई जा रही है।

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