(Krishi Vigyan Kendra Raigarh) निकरा ग्राम जुनवानी में कड़कनाथ कुक्कुट पालन से बढ़ेगी आमदनी

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अनिता गर्ग

(Krishi Vigyan Kendra Raigarh) निकरा ग्राम जुनवानी में कड़कनाथ कुक्कुट पालन से बढ़ेगी आमदनी

(Krishi Vigyan Kendra Raigarh) रायगढ़ !  कृषि विज्ञान केंद्र रायगढ़ द्वारा निकरा परियोजना अंतर्गत अंगीकृत ग्राम जुनवानी में खेती के साथ-साथ अतिरिक्त आमदनी बढ़ाने की दृष्टि से कड़कनाथ कुक्कुट पालन पर जोर दिया जा रहा है। परियोजना के अन्वेषक एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक  आर.के.स्वर्णकार के मार्गदर्शन में साथ ही सह अन्वेषक श्री के डी महंत (मृदा वैज्ञानिक) एवं वरिष्ठ अनुसन्धान सहायक श्री मनोज साहू के विशेष प्रयास पर ग्राम के चयनित किसानों को कड़कनाथ के चूजे वितरित किये गये एवं इसके रखरखाव तथा व्यवसायिक प्रबंधन हेतु तकनीकी जानकारी दी गई।

जिससे ग्राम के लाभान्वित किसानों ने इस पहल सहयोग के लिए ख़ुशी व्यक्त किये। केंद्र के पशु पालन वैज्ञानिक डॉ एस.सी.पी सोलंकी ने कहा कि इसके माँस मे मिलेनिन नामक रंगद्रव्य होता है जिससे इसका मांस काला होता है। इसकी त्वचा, चोच, टांग, पंजा और तलवा गहरे भूरे रंग का की होती है। कलगी, ललरी, लोलकी हल्के से गहरे भूरे अथवा बैगनीरंग के होते है। इसके तीन किस्मे जेट ब्लैक, पैन्सिल एवं गोल्डेन होते हैं। इसका माँस विशिष्ट स्वाद वाला होता है। माँस मे अन्य कुक्कुट प्रजाति (18-20 प्रतिशत) की तुलना मे प्रचुर प्रोटीन (25 प्रतिशत) पायी जाती है।

(Krishi Vigyan Kendra Raigarh) साथ ही यह उच्च गुणवत्ता वाला प्रोटीन है। हमारे शरीर के लिए आवश्यक 8 अमीनो एसिड इसके प्रोटीन मे पाये जाते है। इसके अलावा इसमे कूल 18 अमीनो एसिड पाये जाते है। चूकि कड़कनाथ एक विशिष्ट और अत्यंत पुरानी देसी प्रजाति है इसलिए इसका रख-रखाव बहुत आसान है। परियोजना के सह अन्वेषक  के.डी.महंत ने कहा कि कड़कनाथ अत्यंत गर्मी और सर्दी की जलवायु मे भी भली भाँति जीवित रहते है। यह कुक्कुट भारत में पायी जाने वाली एक महत्वपूर्ण और अत्यंत पुरानी प्रजाति है। निकरा परियोजना के वरिष्ठ अनुसन्धान सहायक श्री मनोज साहू ने कहा की कड़कनाथ को मुक्त परिसर प्रणाली एवं अर्धसघन प्रणाली मे भी रखा जा सकता है।

परन्तु व्यावसायिक रूप से इन प्रणालियों मे प्रतिपक्षी आय बहुत कम आती है। अत: व्यावसायिक स्तर पर कड़कनाथ का सघन प्रणाली डीप लिटर प्रणाली उत्तम है। कड़कनाथ नस्ल अन्य नस्लों से बीमारियों के लिए प्रतिरोधी है परंतु रानीखेत और मरेक्स बीमारी के मामले पाए गए है। अत: जीवाणु एवं विषाणु जनित रोगो से बचाव के लिए समायानुसार टीकाकरण करना आवश्यक है। इस कार्य के सफलता में केंद्र के सभी वैज्ञानिकों का विशेष योगदान रहा।

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